स्वामी प्रभुदत्त ब्रह्मचारी-
संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी संस्कृत, हिंदी, ब्रजभाषा के प्रकाण्ड विद्वान तथा आध्यात्म के पुरोधा थे।
वे ‘ श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेव ‘ मंत्र के द्रष्टा थे
उनके जीवन के चार संकल्प थे – दिल्ली में हनुमान जी की ४० फुट ऊंची प्रतिमा की स्थापना, राजधानी स्थित पांडवों के किले (इन्द्रप्रस्थ) में भगवान विष्णु की ६० फुट ऊंची प्रतिमा की स्थापना, गोहत्या पर प्रतिबंध तथा श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति।
संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी का जन्म जनपद अलीगढ के ग्राम अहिवासीनगला में सम्वत् 1942 (सन १८८५ ई०) की कार्तिक कृष्ण अष्टमी (अहोई आठें) को परम भागवत पं॰ मेवाराम जी के पुत्र रूप में हुआ। विदुषी माता अयुध्यादेवी से संत सुलभ संस्कार प्राप्त कर आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया। सम्वत् 2047 (सन 1990 ई०) की चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को भौतिक देह का त्याग वृन्दावन में कर गोलोकधाम प्रविष्ट हो गए।
अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलनों में सक्रिय भाग लिया। फलस्वरूप उन्हें कठोर कारावास का दण्डश् भोगना पड़ा। भारत के स्वतंत्र होने पर राजनेताओं की विचारधारा से दु:खी होकर सदा के लिए राजनीति से अलग हो गए और झूसी में हंसस्कूल नामक स्थान पर वटवृक्ष के नीचे तप करने लगे। गायत्री महामंत्र का जप किया। वैराग्य भाव से हिमालय की ओर भी गए और फिर वृन्दावन आकर रहे।
श्री महाराज ब्रजभाषा के सिद्धहस्त कवि थे। उन्होंने सम्पूर्ण भागवत को महाकाव्य के रूप में छन्दों में लिखा था। “भागवत चरित‘ कोश्” ब्रजभाषा में लिखने का एकमात्र श्रेय श्री
स्वतंत्र भारत में गो-हत्या होते देखकर ब्रह्मचारी जी को बहुत दु:ख हुआ। गो-हत्या निरोध समिति बनायी गई, उसके वे अध्यक्ष बने। सन् १९६०-६१ में कश्मीर से कन्याकुमारी तक उन्होंने कई बार भ्रमण किया। सन् १९६७ में गो-हत्या के प्रश्न को लेकर उन्होंने ८० दिन तक ्व्रात किया और सरकार के विशेष आग्रह पर अपना व्रत भंग किया। वे रा. स्व. संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी के भी निकट रहे। इसी बीच पं॰ जवाहरलाल नेहरू जब हिन्दू समाज विरोधी “हिन्दू कोड बिल’ लाए, तो मित्रों के प्रोत्साहन से ब्रह्मचारी जी चुनाव में खड़े हुए। आखिर नेहरू जी को हिन्दू कोड बिल को वापस लेना पड़ा। दक्षिण भारत की यात्रा के समय उन्होंने एक स्थान पर २६ फुट की हनुमान जी की प्रतिमा देखी तो वैसी ही एक विशालकाय प्रतिमा बनवाने का और उसे दिल्ली के आश्रम में दिल्ली के कोतवाल के रूप में स्थापित करने का संकल्प लिया। ब्रह्मचारी जी भारतीय संस्कृति के स्तम्भ रहे। भारतीय संस्कृति व शुद्धि, महाभारत के प्राण महात्मा कर्ण, गोपालन, शिक्षा, बद्रीनाथ दर्शन, मुक्तिनाथ दर्शन, महावीर हनुमान जैसे उदात्त साहित्य की रचना की। ब्रह्मचारी जी द्वारा दिल्ली, वृन्दावन, बद्रीनाथ और प्रयाग में स्थापित संकीर्तन भवन के नाम से चार आश्रम आज भी सुचारू रूप से चल रहे हैं।
उनका संकीर्तन में अटूट लगाव था। वृन्दावन में यमुना के तट पर वंशीवट के निकट संकीर्तन भवन की स्थापना की तो प्रयाग राज प्रतिष्ठानपुर झूसीमें अनेकानेक प्रकल्पों के साथ संकीर्तन भवन प्रतिष्ठित किया।
एक बार गोरक्षाके प्रकरण पर वे वृंदावन में शासन के विरुद्घ आमरण अनशन पर बैठ गए। देश के लाखों लोग उनके साथ हो लिए। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के आग्रह एवं आश्वासन पर ही उन्होंने रस-पान किया था
स्वाधीनता आंदोलन में वे पं.जवाहरलाल नेहरू के साथ जेल में रहे थे। स्वाधीनता संग्राम काल में उनकी पत्रकारिता बेजोड थी। उन्होंने कई पन्नों का संपादन तथा प्रकाशन किया एवं सदैव खादी का प्रयोग किया। पूज्य ब्रह्मचारी जी ने अपने कर्म, धर्म, आचरण एवं लेखनी के द्वारा समाज को जो कुछ भी दिया वह लौकिक परिवेश में अलौकिक ही है। वे आशु कवि थे। श्रीमद्भागवत, गीता, उपनिषद, ब्रह्मसूत्र आदि अत्यंत दुरूह ग्रंथों की सरल सुबोध हिंदी में व्याख्या कर भक्तवर गोस्वामी तुलसीदास के अनुरूप जनकल्याण कार्य किया। उन्होंने श्री भागवत को 118 भागों में जन सामान्य की सरल भाषा में प्रस्तुत किया। उनके रचित ब्रजभाषा के सुललित छन्द (छप्पय) बोधगम्यएवं गेय है, जिनका आज भी स्थान-स्थान पर वाद्य-वृंद संगति के साथ पारायण कर लोग आनंदित होते हैं। इनके अतिरिक्त नाम संकीर्तन महिमा, शुक (नाटक), भागवत कथा की वानगी, भारतीय संस्कृति एवं शुद्धि, वृंदावन माहात्म्य, राघवेंद्र चरित्र, प्रभु पूजा पद्धति, कृष्ण चरित्र, रासपंचाध्यायी, गोपीगीत, प्रभुपदावली, चैतन्य चरितावली आदि लगभग 100 अन्य आध्यात्मिक ग्रंथों का प्रणयन किया।
श्रीश्रीचैतन्य-चरितावली (SHRI-SHRI-CHAITANYA-CHARITAVALI)- प्रस्तुत पुस्तक में मात्र चार सौ वर्ष पूर्व बंगाल में भक्ति और प्रेम की अजस्र धारा प्रवाहित करने वाले कलिपावनावतार श्री चैतन्य महाप्रभु का विस्तृत जीवन-परिचय है। स्वनामधन्य परम संत श्री प्रभुदत्त जी ब्रह्मचारी द्वारा प्रणीत यह ग्रन्थ श्री चैतन्य देव के सम्पूर्ण जीवन-चरित्र की सुन्दर परिक्रमा है।
प्रभुदत्त ब्रह्मचारी द्वारा रचित ब्रजभाषा के सुललित छन्द (छप्पय) बोधगम्य एवं गेय है, जिनका आज भी स्थान-स्थान पर वाद्य-वृंद संगति के साथ पारायण कर लोग आनंदित होते हैं।
निधन- संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने संवत 2047 (1990 ई.) के चैत्र माह में कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को भौतिक देह का त्याग प्रसिद्ध धार्मिक नगरी वृन्दावन, मथुरा में किया।
प्रभुदत्त ब्रह्माचारी आश्रम झूसी, प्रयागराज-
झूसी प्रयागराज जिले में एक कस्बा और नगर पंचायत हैं।प्रभुदत्त ब्रह्मचारी आश्रम झूसी प्रयागराज रेलवे स्टेशन से 12 km दूरी पर स्थित है । यह आश्रम गंगा नदी के किनारे पर है । यह आश्रम ब्रह्चारी जी की तपस्थली रहा है । उनका संकीर्तन में अटूट लगाव था। वृन्दावन में यमुना के तट पर वंशीवट के निकट संकीर्तन भवन की स्थापना की तो प्रयाग राज प्रतिष्ठानपुर झूसीमें अनेकानेक प्रकल्पों के साथ संकीर्तन भवन प्रतिष्ठित किया।
आज की राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी की नींव भी प्रयागराज में संकीर्तन भवन आश्रम में पड़ी, महाराज जी श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जी के निवेदन पर ही गुरु जी ने एक राजनैतिक विकल्प के तौर पर जनसंघ की स्थापना पर विचार किया।कालांतर में यही जनसंघ आज की भाजपा के रूप में परिवर्तित हुई।
पंडित श्री दीनदयाल उपाध्याय जी जनसंघ की स्थापना के समय पूज्य महाराज श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जी को ही प्रथम सभापति बनाना चाहते थे परंतु महाराज जी ने आरम्भ से ही पांच प्रतिज्ञाएँ कर रखी थी उनमें से एक यह भी थी कि “कभी किसी भी संस्था का न तो सदस्य बनूंगा और ना ही कोइ स्थायी पदाधिकारी”इस बजाय से जब पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने उनसे सभापति बनने के लिए आग्रह किया तो उन्होंने विनयपूर्वक इंकार करते हुए अवागढ़ के राव साहब कृष्णपाल सिंह जी का नाम सुझाया तभी सर्वप्रथम उत्तर प्रदेशीय जनसंघ की स्थापना हुई रावसाहब उसके सभापति हुए।इसके अनन्तर भारतीय जनसंघ बना जिसके सभापति पंडित श्यामाप्रसाद मुखर्जी हुए |
उस समय RSS व जनसंघ के सभी कार्यकर्ता पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी, श्री श्यामाप्रसाद मुखर्जी, नानाजी देशमुख, रज्जु भैया रावसाहब कृष्णपाल सिंह, श्री अटलविहारी वाजपेयी वसंतराव जी, भाऊराव देवरस आदि सभी पूज्य महाराज जी का सानिध्य और मार्गदर्शन प्राप्त करते रहे।
१. भगवती कथा (११८ खण्डों में) ३०/- प्रति खण्ड
२. भगवत चरित सप्ताह(मूल) १५१/-
३. भागवत चरित सटीक (दो भागो में) २०१/- प्रति खण्ड
४. बद्रीनाथ दर्शन २५/-
५. महात्मा कर्ण ७५/-
६. मतवाली मीरा २५/-
७. नाम संकीर्तन महिमा ७/-
८. भागवती कथा की बानगी ७/-
९. भारतीय संस्कृति और शुद्वि५/-
१०. प्रयाग महात्म्य १२/-
११. व्रन्दावन महात्म्य २/-
१२. प्रभुपूजा पद्धति ५/-
१३. गुरू भक्ति और एकलव्य ५/-
१४. गोविन्द दामोदर शरणागत स्तोत्र १०/-
१५. गोपालन शिक्षा १५/-
१६. मुक्तिनाथदर्शन ४०/-
१७. आलवन्दार स्तोत्रमूल तथा छप्पय छन्दों में ५/-
१८. श्री प्रभुपदावली ७/-
१९. परम साहसी बालक ध्रुव ७/-
२०. सार्थ छप्पय गीता २५/-
२१. हनुमत शतक ३/-
२२. महावीर हनुमान ३५/-
२३. भक्तचरितावली-२ (१) ६०/-
२४. भक्तचरितावली -२(२) ४०/-
२५. श्री सत्यनारायण व्रत कथा (महात्म्य) ५/-
२६. सूक्त -त्रय १२/-
२७. शुभ विवाह मंगलमय हो १०/-
२८. श्रीकृष्ण लीला दर्शन(तीन भागो में) २१/- प्रति खण्ड
२९. विल्व फल अमृत फल १२/-
३०. नर्मदादर्शन २०/-
३१. भागवत महिमा नाटक ५/-
३२. श्री छप्पय दुर्गासप्तसती २५/-
३३. हर्र! हरीतकी रसायन १०/-
३४. सतीधर्महिन्दू धर्म की रीढ़ है ७/-
३५. भगवती कथा में क्या-क्या है २५/-
३६. काया-कल्प तथा कल्प चिकत्सा ४०/-
३७. चैतन्य चरितावली (५ खण्डों में) ८०/- प्रति खण्ड
३८. अपनी निजी चर्चा २००/-
३९. हमारे श्री गोलवलकर जी २५/-
४०. भागवत चरित संगीत सुधा ५/-
४१. पंचकोशी परिक्रमा और प्रयाग महात्म्य २०/-
साभार:-
ओमन सौभरि भुर्रक, भरनाकलां, मथुरा
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