सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी व उनके पुत्रों के वंशज “ब्राह्मणों के परिचय” के साथ-साथ आप पढ़ेंगे की कैसी-कैसी भ्रांतियां अन्य समाजों में ब्राह्मणों के प्रति फैली हुई हैं?
सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी जोकि हिन्दू धर्म में एक प्रमुख देवता हैं। ये हिन्दुओं के तीन प्रमुख देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में से एक हैं। ब्रह्मा जी को सृष्टि का रचयिता कहा जाता है।
ब्रह्मा के हाथों में वेद ग्रंथों का चित्रण किया गया है। उनकी पत्नीं गायत्री के हाथों में भी वेद ग्रंथ है।
ब्रह्माजी देवता, दानव तथा सभी जीवों के पितामह हैं। सभी देवता ब्रह्माजी के पौत्र माने गए हैं, अत: वे पितामह के नाम से प्रसिद्ध हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार ब्रह्मा जी के चार मुख हैं। वे अपने चार हाथों में क्रमश: वरमुद्रा, अक्षरसूत्र, वेद तथा कमण्डलु धारण किए हैं।
ब्रह्मा जी के पुत्र:-
1. मरीचि 2. अत्रि 3. अंगिरस 4. पुलस्त्य 5. पुलह 6. कृतु 7. भृगु 8. वशिष्ठ 9. दक्ष 10. कर्दम 11. नारद 12. सनक 13. सनन्दन 14. सनातन 15. सनतकुमार 16. स्वायम्भुव मनु और शतरुपा 17. चित्रगुप्त 18. रुचि 19. प्रचेता 20. अंगिरा
ब्रह्मा की प्रमुख पुत्रियां:-
1. सावित्री 2. गायत्री 3. श्रद्धा 4. मेधा 5. सरस्वती
ब्रह्माजी के 7 पुत्र जोकि उत्तर दिशा में आकाश में सप्तर्षि के रूप में स्थित हैं-
मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलह, कर्तु, पुलस्त्य तथा वशिष्ठ ।
ब्रह्मा के प्रमुख पुत्रों की जन्म की अवस्था:-
1. मन से मारिचि।
2. नेत्र से अत्रि।
3. मुख से अंगिरस।
4. कान से पुलस्त्य।
5. नाभि से पुलह।
6. हाथ से कृतु।
7. त्वचा से भृगु।
8. प्राण से वशिष्ठ।
9. अंगुष्ठ से दक्ष।
10. छाया से कंदर्भ।
11. गोद से नारद।
12. इच्छा से सनक, सनन्दन, सनातन और सनतकुमार।
13. शरीर से स्वायंभुव मनु और शतरुपा।
14. ध्यान से चित्रगुप्त।
उपरोक्त सभी पुत्रों के ही वंशज आज भारत में निवास करते हैं।
ब्राह्मण कौन है?
ब्राह्मण शब्द ज्ञान साधना, शील, सदाचार, त्याग और आध्यात्मिक जीवन-वृत्ति के आधार पर अपना जीवन जीने वाले लोगों के लिए एक सम्मानित संबोधन है ।
जो आत्मा के द्वैत भाव से युक्त न हो; जाति गुण और क्रिया से भी युक्त न हो; षड उर्मियों और षड भावों आदि समस्त दोषों से मुक्त हो; सत्य, ज्ञान, आनंदस्वरूप, स्वयं निर्विकल्प स्थिति में रहने वाला, अशेष कल्पों का आधार रूप, समस्त प्राणियों के अंतस में निवास करने वाला, अंदर-बाहर आकाशवत संव्याप्त; अखंड आनंद्वान, अप्रमेय, अनुभवगम्य, अप्रत्यक्ष भासित होने वाले आत्मा का करतल आमलकवत परोक्ष का भी साक्षात्कार करने वाला; काम-राग द्वेष आदि दोषों से रहित होकर कृतार्थ हो जाने वाला; शम-दम आदि से संपन्न; मात्सर्य, तृष्णा, आशा, मोह आदि भावों से रहित; दंभ, अहंकार आदि दोषों से चित्त को सर्वथा अलग रखने वाला हो, वही ब्राह्मण है ।
न क्रुद्ध्येन्न प्रहृष्येच्च मानितोऽमानितश्च यः । सर्वभूतेष्वभयदस्तं देवा ब्राह्मणं विदुः ॥
भावार्थ: जो व्यक्ति सम्मान दिए जाने अथवा अपमान किये जाने पर न तो प्रसन्न होता है और न ही नाखुश, और जो सभी प्राणियों अभय देता है उसी को देवतागण ब्राह्मण कहते हैं ।
देवाधीनाजगत्सर्वं मन्त्राधीनाश्च देवता: ।
ते मन्त्रा: ब्राह्मणाधीना:तस्माद् ब्राह्मण देवता ।
भावार्थ:- सारा संसार देवताओं के अधीन है तथा देवता मन्त्रों के अधीन हैं और मन्त्र ब्राह्मण के अधीन हैं इस कारण ब्राह्मण देवता हैं ।
ब्राह्मण सिर्फ मंदिर में पूजा करता हुआ पुजारी नहीं है,
ब्राह्मण घर-घर भीख मांगता भिखारी नहीं है।
ब्राह्मण गरीबी में सुदामा-सा सरल है,
ब्राह्मण त्याग में दधीचि-सा विरल है।
ब्राह्मण विषधरों के शहर में शंकर के समान है,
ब्राह्मण के हस्त में शत्रु के लिए परशु कीर्तिवान है ।
हे शक्तिपुंज ब्राह्मण तुम, स्वशक्ति भूलकर रुको नहीं।
तुम रास्ते बाधाओं के देख, किसी के सम्मुख झुको नहीं ।
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ब्राह्मणों को सम्पूर्ण भारतवर्ष में विभिन्न उपनामों से जाना जाता है, जैसे -
पूर्वी उत्तर प्रदेश में शुक्ल,त्रिवेदी, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, दिल्ली, हरियाणा व राजस्थान के कुछ भागों में आदिगौड़, खाण्डल विप्र, ऋषीश्वर (गौर),वशिष्ठ, कौशिक, भारद्वाज ,सनाढ्य ब्राह्मण, राय ब्राह्मण त्यागी अवध (मध्य उत्तर प्रदेश) तथा मध्यप्रदेश के बुन्देलखंड से निकले जिझौतिया ब्राह्मण,रम पाल, राजस्थान, मध्यप्रदेश व अन्य राज्यों में वैष्णव(बैरागी)ब्राह्मण, बाजपेयी, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश ,बंगाल व नेपाल में भूमिहार, जम्मू कश्मीर, पंजाब व हरियाणा के कुछ भागों में महियाल, मध्य प्रदेश व राजस्थान में गालव, गुजरात में श्रीखण्ड,भातखण्डे अनाविल, महाराष्ट्र के महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण, मुख्य रूप से देशस्थ, कोंकणस्थ , दैवदन्या, देवरुखे और करहाड़े है. ब्राह्मणमें चितपावन एवं कार्वे, कर्नाटक में अयंगर एवं हेगडे, केरल में नम्बूदरीपाद, तमिलनाडु में अयंगर एवं अय्यर, आंध्र प्रदेश में नियोगी एवं राव, उड़ीसा में दास एवं मिश्र आदि तथा राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, बिहार में शाकद्वीपीय (मग)कहीं उत्तर प्रदेश में जोशी जाति भी पायी जाती है।
इनमें से अंगिरस गोत्री मूल निवासी सुनरखवासी(वृन्दावनवासी) व दाउजी के पंडा पुरोहित ब्राह्मण “आदिगौड़ सौभरेय अहिवासी ब्राह्मण” के नाम से जाने जाते हैं । “अहिवासी” इनकी उपाधि है ।
ब्राह्मण अपने जीवनकाल में सोलह प्रमुख संस्कार करते हैं-
*जन्म से पूर्व*-
1-गर्भधारण
2-पुन्सवन (गर्भ में नर बालक को ईश्वर को समर्पित करना)
3-सिमन्तोणणयन (गर्भिणी स्त्री का केश-मुण्डन *बाल्यकाल में*-
4-जातकर्म (जन्मानुष्ठान)
5-नामकरण
6-निष्क्रमण
7-अन्नप्रासन
8- चूडकर्ण
9- कर्णवेध * बालक के शिक्षण-काल में*-
10-विद्यारम्भ
11-उपनयन अर्थात यज्ञोपवीत्
12-वेदारम्भ
13-केशान्त अथवा गोदान
14-समवर्तनम् या स्नान
*वयस्क होने पर*-
15-विवाह तथा मृत्यु पश्चात
16-अन्त्येष्टि प्रमुख संस्कार
ब्राह्मणों के मुख्य 6 कर्तव्य (षट्कर्म) बताए गए हैं-
1. पठन
2. पाठन
3 यजन
4. याजन
5. दान
6. प्रतिग्रह।
ब्राह्मण के अधिकार –
1. अर्चा
2. दान
3. अजेयता
4. अवध्यता।
ब्राह्मण के 9 गुण-
1. सम
2. दम
3. तप
4. शौच
5. क्षमा
6. सरलता
7. ज्ञान
8. विज्ञान
9. आस्तिकता
ब्राह्मणों के प्रति जनमानस में कुछ भ्रांतियां-
ब्राह्मण भारत में आर्यों की समाज व्यवस्था अर्थात् वर्ण व्यवस्था का सबसे ऊपर का वर्ण है। आधुनिक इतिहासकार हमें सिखाते हैं कि भारत के ब्राह्मण सदा से दलितों का शोषण करते आये हैं जो घृणित वर्ण-व्यवस्था के प्रवर्तक रहे हैं और साथ वो यह भी कहते हैं कि ब्राह्मणों ने कभी किसी अन्य जाति के लोगों को पढने लिखने का अवसर नहीं दिया। बड़े बड़े विश्वविद्यालयों के बड़े बड़े शोधकर्ता यह सिद्ध करने में लगे रहते हैं कि ब्राह्मण सदा से समाज का शोषण करते आये हैं और आज भी कर रहे हैं, कि उन्होंने हिन्दू ग्रन्थों की रचना केवल इसीलिए की कि वे समाज में अपना स्थान सबसे ऊपर घोषित कर सकें ।
मैं इन सभी बातों का एक सिरे से खंडन करता हूँ आप जरा दिल और दिमाग से सोचें कि यदि विद्या केवल ब्राह्मणों की पूंजी रही होती तो वाल्मीकि जी रामायण कैसे लिखते और तिरुवलुवर तिरुकुरल कैसे लिखते?
ब्राह्मण समुदाय ही था जिसके कारण हमारे देश का बच्चा बच्चा गुरुकुल में बिना किसी भेदभाव के समान रूप से शिक्षा पाकर एक योग्य नागरिक बनता था? क्या हम भूल गए कि ब्राह्मण ही थे जो ऋषि मुनि कहलाते थे, जिन्होंने विज्ञान को अपनी मुट्ठी में कर रखा था?
पुराने समय के अनुसार जिन दो पुस्तकों में वर्णव्यवस्था (जाति व्यवस्था नहीं) का वर्णन आता है उनमें पहली पुस्तक है
महर्षि मनु ने मनुष्य के गुण, कर्म व स्वभाव पर आधारित समाज व्यवस्था की रचना कर की थी
(यहाँ देखें- ऋग्वेद- 10.10.11-12, यजुर्वेद-31.10-11, अथर्ववेद-19.6.5-6)।
भगवान बुद्ध क्षत्रिय थे, स्वामी विवेकानंद कायस्थ थे, पर अति उत्कृष्ट स्तर के ब्रह्मवेत्ता थे जिनमें ब्रह्मचेतना और धर्मधारणा जीवित और जाग्रत थी भले ही वो किसी भी वंश में क्यूं न उत्पन्न हुए हों।
दूसरी पुस्तक है
ब्राह्मण हमेशा से अहिंसावादी व पूर्ण रूप से शाकाहारी रहे थे और सात्विक भी और इसलिए उनकी वृतियां भी सात्विक रही थी। भारत का ब्राह्मण वह मृग है जिसे वन का प्रत्येक जन्तु इस मृग का शिकार करना चाहता है, उसे खा जाना चाहता है ।
यह पोस्ट किसी जातिवाद को बढ़ावा देने के लिए नहीं वरन ब्राह्मणों के विरुद्ध समाज में लोगों द्वारा फैलाई जा रही भ्रांतियां व नकारात्मकता के बारे में है । कृपया करके उनसे निवेदन है जो इन भ्रांतियों को अपने मस्तिष्क से निकालें और बास्तविक सच्चाई को जानें । वेदों, पुराणों, उपनिषद इत्यादियों को इनकी गहराइयों में जाकर पढ़ें फिर सही से ब्राह्मण समाज का आंकलन करें ।
:ओमन सौभरि भुर्रक, भरनाकलां (मथुरा)
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