Saturday, 17 July 2021

सती हरदेवी जी, पलसों

शिवशक्ति माँ सती हरदेवी – 


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सती अनुसूइया और माता सीता जैसा पतिव्रतधर्मी होना कलयुग में अत्यंत दुर्लभ है, यदि कोई है भी तो इनकी शक्ति उन्हीं के समतुल्य है । हमारे देश में सतीत्व को आदिकाल से ही स्त्री का आभूषण माना जाता रहा है ।

भारत भूमि पर चमत्कार पर चमत्कार अनादि कल से ही होते आये हैं,जिसमें ब्रजभूमि का स्थान अग्रिम रहा है |
बात सन 1980 की हैं जब एक हूबहू चमत्कार हुआ था | इतना बड़ा आँखों देखा चमत्कार, शायद देश की आजादी बाद हुआ हो | ब्रज मंडल के जिला- मथुरा,तहसील -गोवर्धन थाना -बरसाना गांव-पलसों (परशुराम खेड़ा ) में एक दिव्यांगना, ‘जिनका नाम शिव शक्ति हरदेवी जी’ ने स्वयं माँ पार्वती के रूप की झलक, साधारण नर- नारियों के बीच दिखाई | वाक़या कुछ इस तरीके से है –

गांव खायरा (बरसाना के पास ) में एक ‘सौभरि ब्राह्मण’ परिवार में जन्म लिया | बचपन से ही पूजा भावना में बड़ी लग्न थी |एक साधारण परिवार में जन्म लेते हुए और अपनी साधारण छबि को दर्शाते हुए, अपने मायके में ये खबर न होने दी की कोई दिव्यशक्ति का आगमन हुआ है |धीरे धीरे समय बीतता गया और शादी लायक हुई तो घर वालो ने वर ढूढ़ना प्रारम्भ किया और इस तरीके से ग्राम पलसों में से वर का चयन कर दिया गया |शादी होने के बाद दो बच्चे और २ बच्चियां हुई और जिंदगी सब ठीक ठाक चल रही थी| समय बीतते -बीतते उनके पति जी के महामारी हो गयी अचानक उनके जीवन ने अंगड़ाई लेना शुरू कर दिया, मानो मुसीबतो का पहाड़ टूट पड़ा हो |उपचार कराने बाद भी वे शौहर को ना बचा सकीं |जब की अंतिम संस्कार बारी आयी तो माँ हरदेवी जी मृत शरीर को अपने गोदी में रख कर अंतिम संस्कार के लिए जाने पर अपने सती होने का मनोभाव जताने लगीं |लेकिन ये बात किसी ने स्वीकार नही की क्योंकि ‘अभी बच्चे भी छोटे छोटे हैं’ इनकी तरफ भी तो देख लो, इस तरह आसपास के लोगो ने समझाया |लेकिन वो मानने को तैयार नही हुई और अपनी अंतिम यात्रा का भूत, सभी के सामने पेश कर दिया की मैं अपने पति संग सती होउंगी |ये सुनकर सब सन्न रह गए और कोहराम बढ़ गया |लेकिन जैसे-तैसे मृत शरीर को श्मशान तक ले गए और दाह संस्कार किया |लेकिन ऊपर धड़ वाला हिस्सा जला ही नही क्योंकि जिस जगह शिवशक्ति हरदेवी जी के हाथों का स्पर्श हुआ वहाँ से वो भाग बिना जले रह गया |लोगो ने खूब जलाने की कोशिश की पर सब नाकामयाब |आखिर उस हिस्से को गंगा में विसर्जन करने के लिए लोगो ने सुझाया |उधर हरदेवी जी का मन पूरी तरह से विरक्त हो चूका था और माने नही मान रही थी |उनके इस अवस्था को देखकर जिला चिकित्सालय को ले गए |वहाँ भी वही खुमार, न कोई दवा काम करे और न ही कोई सुझाव |घटना धीरे-धीरे विकराल रूप लेता जा रही थी |जिले के बड़े-बड़े अधिकारी आ चुके थे उनके कुछ समझ नही आ रहा था | उधर गंगा गए लोगों की तरफ से सूचनाएं आती हैं कि वो “ना जला हुआ हिस्सा” बार बार गंगा के तट कि ओर आ जाता है और पानी के साथ नही बह रहा है | तो लोगों को और प्रशाशन को विश्वास हो गया कि कोई ना कोई चमत्कार तो है और उस हिस्से को बापस लाने को बोल दिया गया | | लेकिन ये भी था कि भारत में सती प्रथा का चलन बंद और गैरकानूनी हो गया था तब उस समय इस घटना के विरुद्ध प्रशाशन भी आने लगा | अंत प्रशाशन को झुकना पड़ा और हरदेवी जी को बापस पलसों गांव लेकर आगये |
गांव के निकट एक मंदिर था उसमें उन्होंने अपना ध्यान लगाया,उसी समय वही पर एक बाबा आये जो बिलकुल अजनबी थे उन्होंने हरदेवी जी को सती होने की रीति रिवाज से वाकिफ कराया | और थोड़े समय बाद ही वहाँ से अंतरध्यान हो गए |उनको साक्षात् शिव का रूप बताते हैं | फिर तो उसके बाद हरदेवी जी ने पूरी तरह श्रृंगारयुक्त होकर अपने पति के उस भाग को लेकर उसी जगह जहाँ उनके शौहर कि चिता थी वही समाधि लगाकर बैठ गयी | ये सारा कोतुहल, वहाँ के और दूर -दूर से आये हुए लोग और साथ में पुलिस प्रशाशन भी, देख रहे थेे और इस घटना के गवाह बन रहे थे | वहाँ खड़ी भीड़ से वो कुछ कहना चाह रही थी लेकिन लोग सब जय जयकार के नारे लगाने कि वजह से सुन नही पाए | देखते ही देखते अपने दोनों हाथों को रगड़ते हुए अग्नि उत्पन्न की और अग्नि धीरे -धीरे नीचे से पूरे हिस्से में पहुँचने लगी |पल भर बाद उनके बैठने की स्थिति बिचलित हुई लोगों ने बांस के सहारे उसी स्थिति में लाने की सोचते, ‘कहीं उस से पहले ही’ वह यथावत हो गयीं | फिर इसके बाद लोगों ने घी डालना शुरू कर दिया, जयकारों से सारा क्षेत्र गूंजने लगा |जिसने भी सुना वह उसी स्थिति में भाग भाग के वहाँ पहुँचने लगे | और जिस समय ये घटना हो रही थी उसी समय वहाँ जगह-जगह ” केसर” की वर्षा हुई | साक्षी बताते हैं की उस समाधि वाली जगह पर कई महीनों तक अग्नि की लौह जलती रही | आज वहीँ पर उनकी समाधि बनी हुई है और मंदिर भी | वो जगह पूजनीय हो गई वहाँ बाहर से बड़ी दूर -दूर लोग आज भी मथ्था टेकने आते हैं सन २०१२ से श्रावण मास की अष्टमी को एक मेले का आयोजन होता है | उसका जिम्मा पूरे ग्रामवासी उठाते हैं | कलियुग में चमत्कार करने वाली ऐसी मातृशक्ति, शिवशक्ति को कोटि कोटि नमन करता हूं |

ओमन सौभरि भुर्रक, भरनाकलां, मथुरा


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