Saturday, 3 July 2021

माधवाचार्य जी बल्देव नगरी

माधवाचार्य जी-   ब्रिटिशराज में मंदिर को इसके साथ ही एक धक्का तब लगा जब ग्राउस मथुरा का कलेक्टर नियुक्त हुआ। ग्राउस  का विचार था कि बलदेव जैसे प्रभावशाली स्थान पर एक चर्च का निर्माण कराया जाय क्योंकि बलदेव उस समय एक मूर्धन्य तीर्थ स्थल था। अत: उसने मंदिर की बिना आज्ञा के चर्च निर्माण प्रारम्भ कर दिया। शाही जमाने से ही मंदिर की 256 एकड़ भूमि में मंदिर की आज्ञा के बगैर कोई व्यक्ति किसी प्रकार का निर्माण नहीं करा सकता था क्योंकि उपर्युक्त भूमि के मालिक जमींदार श्री दाऊजी हैं तो उनकी आज्ञा के बिना कोई निर्माण कैसे हो सकता था? परन्तु उन्मादी ग्राउस ने बिना कोई परवाह किये निर्माण कराना शुरू कर दिया।

 मंदिर के मालिकान श्री दाउजी जी महाराज की कृपा से उसे बलपूर्वक ध्वस्त करा दिया जिससे चिढ़-कर ग्राउस ने पंडावर्ग एवं अन्य निवासियों को भारी आतंकित किया ग्राउस ने हमारे समाज को निम्न श्रेणी में डाल दिया था

मंदिर मालिकान ने आगरा के एक मूर्धन्य सेठ एवं महाराज मुरसान के व्यक्तिगत प्रभाव का प्रयोग कर वायसराय से भेंट की और ग्राउस का स्थानान्तरण बुलन्दशहर कराया । जिस स्थान पर चर्च का निर्माण कराने की ग्राउस की हठ थीं उसी स्थान पर आज वहाँ बेसिक प्राइमरी पाठशाला है जो पश्चिमी स्कूल के नाम से जानी जाती है यह ग्राउस की पराजय का मूक साक्षी है।
  उसी ग्राउस के किये हुए कुकृत्य के विरुद्ध अपना गौरव पुनः प्राप्त करने के लिए विद्वान व स्वसमाज के शुभचिंतक श्री माधवाचार्य जी ने माननीय सुप्रीमकोर्ट में जाकर चुनौती दी थी और साक्ष्य दिये और अंत में अपने स्वसमाज की विजय हुई।
 ब्राह्मणत्व को बरकरार रखते हुए ग्राउस का विरोध किया क्योंकि ग्राउस ने जनरल कैटगरी से समाज को  सिड्यूल कास्ट में डालने की भरसक कोशिश की लेकिन इस के लिए माधवाचार्य जी ने अभूतपूर्व, अतुलनीय व प्रशंशनीय काम किया और समाज को जनरल कैटेगिरी में बने रहने के लिए अड़े रहे, उनके योगदान को स्वसमाज कभी भुला नहीं पायेगा ।
स्वसमाज को फिर से सामान्य कैटेगिरी में लाने में इस महान विभूति ने बडे ही गौरव का काम किया । ऐसे स्वसमाज के व्यक्तित्व को हृदय से हाथ जोड़कर नमन करता हूँ ।

:ओमन सौभरि भुर्रक, भरनाकलां

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