सौभरि ब्राह्मणों के अंतर्गत आने वाले उपगोत्र या अल्ल -
गोत्र और 'उपगोत्र/अल्ल'/ अवटंक / शासन का अंतर भी समझें। कन्फ्यूज नहीं होइएगा।
नामकरण शिशु जन्म के बाद पहला संस्कार कहा जा सकता है। कौन-सा शब्द कब बना या किसने बनाया इसका कोई आँकड़ा नहीं पाया जाता । किसी वस्तु, गुण, प्रक्रिया, परिघटना आदि को समझने-समझाने के लिये समुचित नाम देना आवश्यक है इसे ही नामकरण कहते हैं। 16 संस्कारों में नामकरण-संस्कार पंचम संस्कार है। यह संस्कार बालक के जन्म होने के ग्यारहवें दिन होता है । संस्कृत व्याकरण के रचनाकार महर्षि पाणिनि जी द्वारा गोत्र की परिभाषा- ‘अपात्यम पौत्रप्रभ्रति गोत्रम्’ अर्थात ‘गोत्र शब्द का अर्थ है बेटे के बेटे के साथ शुरू होने वाली (एक साधु की) संतान्। गोत्र, कुल या वंश की संज्ञा है जो उसके किसी मूल पुरुष के अनुसार होती है। गोत्र को हिन्दू लोग लाखो हजारों वर्ष पहले पैदा हुए पूर्वजों के नाम से ही अपना गोत्र के नाम चले आ रहे हैंं जिससे वैवाहिक जटिलताएं उतपन्न नहींं हो रही हैं और इसलिए वंशपरंपरा का बने रहना अत्यावश्यक है। गोत्रीय अथवा गोत्रज वे व्यक्ति हैं जो किसी व्यक्ति से पितृ पक्ष के पूर्वजों अथवा वंशजों की एक अटूट श्रृखंला द्वारा संबंधित हों। उदाहरणार्थ, किसी व्यक्ति के पिता, दादा और परदादा आदि उसके गोत्रज हैं। इसी प्रकार इसके पुत्र पौत्रादि भी उसके गोत्रीय अथवा गोत्रज हैं, या यों कहिए कि गोत्रज वे व्यक्ति हैं जिनकी धमनियों में समान रक्त का संचार हो रहा हो।
गोत्रीय से आशय उन व्यक्तियों से है जिनके आपस में पूर्वजों अथवा वंशजों की सीधी पितृ परंपरा द्वारा रक्तसंबंध हों। किसी व्यक्ति के पिता के अन्य पुरुष वंशज अर्थात् भाई, भतीजा, भतीजे के पुत्रादि भी गोत्रज कहलायेंगे । ब्राह्मणों के आज जितने गोत्र पाये जाते हैं वे सब वैदिक काल के सात मूल वंशों की ही शाखा-प्रशाखा हैं। ये सात वंश भार्गव, आंगिरस, आत्रेय, काश्यप, वसिष्ठ, आगस्त्य और कौशिक हैं। ये सातों वंश बाह्य विवाही थे अर्थात् किसी भी एक वंश का पुरुष उसी वंश की कन्या से विवाह नहीं कर सकता था। एक सामान गोत्र वाले एक ही ऋषि परंपरा के प्रतिनिधी होने के कारण भाई-बहिन समझे जाते हैं । गोत्र को बहिर्विवाही समूह माना जाता है अर्थात ऐसा समूह जिससे दूसरे परिवार का रक्त संबंध न हो अर्थात एक गोत्र के लोग आपस में विवाह नहीं कर सकते पर दूसरे गोत्र में विवाह कर सकते हैं ।
गोत्रीय से आशय उन व्यक्तियों से है जिनके आपस में पूर्वजों अथवा वंशजों की सीधी पितृ परंपरा द्वारा रक्तसंबंध हों। किसी व्यक्ति के पिता के अन्य पुरुष वंशज अर्थात् भाई, भतीजा, भतीजे के पुत्रादि भी गोत्रज कहलायेंगे । ब्राह्मणों के आज जितने गोत्र पाये जाते हैं वे सब वैदिक काल के सात मूल वंशों की ही शाखा-प्रशाखा हैं। ये सात वंश भार्गव, आंगिरस, आत्रेय, काश्यप, वसिष्ठ, आगस्त्य और कौशिक हैं। ये सातों वंश बाह्य विवाही थे अर्थात् किसी भी एक वंश का पुरुष उसी वंश की कन्या से विवाह नहीं कर सकता था। एक सामान गोत्र वाले एक ही ऋषि परंपरा के प्रतिनिधी होने के कारण भाई-बहिन समझे जाते हैं । गोत्र को बहिर्विवाही समूह माना जाता है अर्थात ऐसा समूह जिससे दूसरे परिवार का रक्त संबंध न हो अर्थात एक गोत्र के लोग आपस में विवाह नहीं कर सकते पर दूसरे गोत्र में विवाह कर सकते हैं ।
हिन्दू धर्म की सभी जातियों में गोत्र पाए गए है । गोत्र को लेकर आयुर्वेद में स्पष्ट रूप से लिखा है की यदि समान प्रकार के रक्त में यदि मेल होता है,और उससे संतान उत्पत्ति होती है तो उस संतान का रक्त अर्थात DNA कमजोर होगा जिससे उसमे कई प्रकार की बीमारियाँ होने की सम्भावना होती है जैसे की शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का कम होना ,शारीरिक विकृतियाँ होना ,वंशानुगत बीमारियाँ होना आदि आदि । वर्गीकरण प्रणाली से ही वनस्पतियों की प्रजाति, कुल और वैज्ञानिक नाम के बारे में पता चलता है। किसी भी जीव या वनस्पति को परिभाषित करते समय सबसे पहले उसके वर्गीकरण का ही जिक्र किया जाता है। नामकरण का प्रचलन वेदों के समय से ही है ।
गोत्र मातृवंशीय भी हो सकता है और पितृवंशीय भी। ज़रूरी नहीं कि गोत्र किसी आदिपुरुष के नाम से चले। एक ही समय में एक नाम से अनेक मनुष्य हो सकते हैं ।संभवतः उनकी विशिष्ट पहिचान के लिए पिता का नाम भी जोड़ दिया जाता था लेकिन ऐसी स्थिति भी होती थी कि किसी एक मनुष्य की एक से अधिक पत्नियां हों तब उन व्यक्तियों की पहिचान उनके माता के नाम से रहती थी । गोत्र तो पिता वाला ही रहता था लेकिन जो नाम है उनकी "माताओं के नाम से अल्ल" पड़ जाती थी। ठीक इसी तरह ब्रह्मृषि सौभरि जी के उपगोत्रों/अल्ल के नामकरण की भी यह परंपरा इनकी 50 पत्नियों के नाम पर हुई जो कि मान्धाता की पुत्रियां थी । इन्हीं के नाम से 50 उपगोत्रों/अल्ल का प्रादुर्भाव हुआ । इनके पुत्रों को उन्हीं के नाम से जाना जाने लगा ।
गोत्र मातृवंशीय भी हो सकता है और पितृवंशीय भी। ज़रूरी नहीं कि गोत्र किसी आदिपुरुष के नाम से चले। एक ही समय में एक नाम से अनेक मनुष्य हो सकते हैं ।संभवतः उनकी विशिष्ट पहिचान के लिए पिता का नाम भी जोड़ दिया जाता था लेकिन ऐसी स्थिति भी होती थी कि किसी एक मनुष्य की एक से अधिक पत्नियां हों तब उन व्यक्तियों की पहिचान उनके माता के नाम से रहती थी । गोत्र तो पिता वाला ही रहता था लेकिन जो नाम है उनकी "माताओं के नाम से अल्ल" पड़ जाती थी। ठीक इसी तरह ब्रह्मृषि सौभरि जी के उपगोत्रों/अल्ल के नामकरण की भी यह परंपरा इनकी 50 पत्नियों के नाम पर हुई जो कि मान्धाता की पुत्रियां थी । इन्हीं के नाम से 50 उपगोत्रों/अल्ल का प्रादुर्भाव हुआ । इनके पुत्रों को उन्हीं के नाम से जाना जाने लगा ।
इस से यहाँ यह बात भी सिद्ध हो रही है कि वैदिक युग में पुरूष प्रधानता जैसी कोई अवधारणा नहीं थी जो कि आजकल आप को वर्तमान समय में देखने को मिलता है । वैसे सभी ब्राह्मण गोत्रों का निर्धारण ऋषियों के नाम से होता आया है । ठीक ये सिद्धान्त भी यहाँ लागू होता है कि "गोत्र “अंगिरस” जोकि ब्रह्मा जी के पुत्र हैं" उनके नाम पर और उपगोत्र/अल्ल इनके प्रपौत्र ब्रह्मऋषि सौभरि जी, जिनकी 50 पत्नियों के नाम के आधार पर पड़ा ।
वर्तमान में समाज के सभी विवाह संबंधों में अपने पिताजी व माताजी के उपगोत्रों/अल्ल (इंटरनल गोत्र) को छोड़कर अन्य उपगोत्रों में नया रिश्ता जोड़ा जाता है ।
1- बादर 2- सोती (सत्ल) 3- पचौरी 4-भाट (भटेले) 5-पधान 6-रतिवार 7- गौदाने (गौदानी) 8-तगारे 9-दीगिया 10- नुक़्ते (बरगला) 11-भुर्रक(भेड़े)12- रमैया 13-कुम्हेरिया 14-इटोईया 15-सीहइयाँ 16-सैंथरिया 17-बसइया 18-नन्दीसरिया 19-बजरावत 20-परसैंया 21-करिया 22-नालौठिया 23-दुरकी 24-विहोन्याँ 25-ओखले 26-करौतिया 27-मुडिनिया 28-गागर 29-डामर 30-गलवाले31-छिरा 32-जयन्तिया 33-डिड्रोइया 34-तसिये35-दुर्गवार 36-दिरहरे 37-अझैयां 38-नायक 39-उमाड़िया 40-कांकर 41-रौसरिया 42-औगन 43-सिरौलिया 44-पलावार(पल्हा) 45- सिकरोरिया 46-चोचदिना 47-गलजीते 48- किलकिले 49-तागपुरिया 50-काठ
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अंगिरस गोत्री सौभरि ब्राह्मणों के पचासों उपगोत्र महर्षि सौभरि जी की 50 पत्नियों के नाम पर पड़े । 50 उपगोत्रों के नाम संस्कृतभाषा से उद्धरत हैं जिनमें 25 उपगोत्रों के अपभ्रंश नाम जोकि इस प्रकार हैं ।
माताओं के नाम/ उपगोत्र का नाम…
1- बद्रिका- बादर
2- श्रोत्या- श्रोती अथवा सोती
3-पंचरी- पचौरी
4-गोदानी-गोदाने
5-भटी- भाट अथवा भटेले
6-प्रधानी-पधान
7-रतिवरी-रतिवार
8-तगन्या-तगारे
9-प्रलिहा-पल्हा अथवा पलावार
10-दीर्घा-दीगिया
11- श्रीकर्पूरी- सिकरोरिया
12-नुक्ता-नुक़्ते अथवा बरगला
13-भाविक्रा- भुर्रक
14-रमणीय-रमैया
15-कुंभार्या -कुम्हेरिया
16-ईड़ा-इटोइयाँ
17-सिंहमुग्रा- सीहइयाँ
18-सन्तरी-सैंथरिया
19-वासुकी-बसैया
20-नद्या -नंदिसरिया
21- बज्रावली- बजरावत
22-अजहा-अझैया
23-प्ररसी- परसईयां
(Source- पुस्तक “सौभरिअमृत”।
2- श्रोत्या- श्रोती अथवा सोती
3-पंचरी- पचौरी
4-गोदानी-गोदाने
5-भटी- भाट अथवा भटेले
6-प्रधानी-पधान
7-रतिवरी-रतिवार
8-तगन्या-तगारे
9-प्रलिहा-पल्हा अथवा पलावार
10-दीर्घा-दीगिया
11- श्रीकर्पूरी- सिकरोरिया
12-नुक्ता-नुक़्ते अथवा बरगला
13-भाविक्रा- भुर्रक
14-रमणीय-रमैया
15-कुंभार्या -कुम्हेरिया
16-ईड़ा-इटोइयाँ
17-सिंहमुग्रा- सीहइयाँ
18-सन्तरी-सैंथरिया
19-वासुकी-बसैया
20-नद्या -नंदिसरिया
21- बज्रावली- बजरावत
22-अजहा-अझैया
23-प्ररसी- परसईयां
(Source- पुस्तक “सौभरिअमृत”।
ऐसे ही स्वसमाज के बहुत से गाँवों के नाम भी उपगोत्रों के नाम पर ही रखे गये हैं । जैसे- गाँव- सैंथरी और उपगोत्र-सैंथरिया, सीह-सीहइयाँ, परसों-परसईयाँ
कुम्हेर-कुम्हेरिया बहुत से गाँवों के नाम सौभरि जी की उपाधि स्वरूप मिले नाम के के ऊपर हैं जैसे- नगला अहिवासी, अहिवासियों का पुरा ।
आज भी स्वसमाजी जन अपने उपगोत्र के मूलगाँव में छोटे बच्चों का मुंडन अपनी रीति- रिवाज से कराते हैं । इनमें मघेरा व गाँव पैठागांव के पास उपगोत्री भाटों का मूलगाँव ‘भटैनी’ [पटैनी(वर्तमान नाम)] प्रमुख हैं ।गाँव मघेरा में भुर्रक उपगोत्र के लोग निवास करते हैं यहाँ वे अन्य उपगोत्रों की तुलना में बहुलता में हैं । वैसे भारतवर्ष में, गोत्र के नामकरण की परंपरा मातृवंशी भी रही है और पितृवंशी भी। ज़रूरी नहीं कि गोत्र किसी आदिपुरुष के नाम से चले। एक ही समय में एक नाम से अनेक मनुष्य हो सकते हैं । संभवतः उनकी विशिष्ट पहिचान के लिए पिता का नाम भी जोड़ दिया जाता है लेकिन ऐसी स्थिति भी होती है कि किसी एक मनुष्य की एक से अधिक पत्नियां हों तब उन व्यक्तियों की पहिचान उनके माता के नाम से रहती है । ठीक इसी तरह सौभरि जी के वंशजों के उपगोत्रों के नामकरण भी इनकी 50 पत्नियों के नाम पर हुई है जोकि रघुवंशी राजा मान्धाता की पुत्रियां थी । इन्हीं के नाम से स्वसमाज के 50 उपगोत्रों का प्रादुर्भाव हुआ ।
कुम्हेर-कुम्हेरिया बहुत से गाँवों के नाम सौभरि जी की उपाधि स्वरूप मिले नाम के के ऊपर हैं जैसे- नगला अहिवासी, अहिवासियों का पुरा ।
आज भी स्वसमाजी जन अपने उपगोत्र के मूलगाँव में छोटे बच्चों का मुंडन अपनी रीति- रिवाज से कराते हैं । इनमें मघेरा व गाँव पैठागांव के पास उपगोत्री भाटों का मूलगाँव ‘भटैनी’ [पटैनी(वर्तमान नाम)] प्रमुख हैं ।गाँव मघेरा में भुर्रक उपगोत्र के लोग निवास करते हैं यहाँ वे अन्य उपगोत्रों की तुलना में बहुलता में हैं । वैसे भारतवर्ष में, गोत्र के नामकरण की परंपरा मातृवंशी भी रही है और पितृवंशी भी। ज़रूरी नहीं कि गोत्र किसी आदिपुरुष के नाम से चले। एक ही समय में एक नाम से अनेक मनुष्य हो सकते हैं । संभवतः उनकी विशिष्ट पहिचान के लिए पिता का नाम भी जोड़ दिया जाता है लेकिन ऐसी स्थिति भी होती है कि किसी एक मनुष्य की एक से अधिक पत्नियां हों तब उन व्यक्तियों की पहिचान उनके माता के नाम से रहती है । ठीक इसी तरह सौभरि जी के वंशजों के उपगोत्रों के नामकरण भी इनकी 50 पत्नियों के नाम पर हुई है जोकि रघुवंशी राजा मान्धाता की पुत्रियां थी । इन्हीं के नाम से स्वसमाज के 50 उपगोत्रों का प्रादुर्भाव हुआ ।
अखिल भारत में सौभरि ब्राह्मण समाज गाँवों की संख्या का विवरण-
जिला मथुरा (उत्तर प्रदेश) यमुना के आर वाले गांव-
1.खानपूर 2.भदावल 3. नगरिया 4.खायरा 5. बिजवारी 6.डाहरौली 7.सीह 8.पलसों 9. भरनाकलां 10.भरनाखुर्द 11.पेलखू 12.मघेरा 13- सुनरख
यमुना के पार वाले जिला अलीगढ़, हाथरस, आगरा (उत्तर प्रदेश)
1.दिहौली 2.मलिकपुरा 3.आलमपुर 4.भांकरी 5.सोनोठ 6.अलीपुर 7.मड्राक 8.नगला अहिवासी 9.तिलौठी10. भोजगढ़ी11, पेठागांव 12. सासनी12.कोड़ा 13, जटौआ 14. महासिंह का नगला 15.हाथी की गढ़ी 16- दाऊजी
गंगा पार के गांव बरेली (उत्तर प्रदेश)-
1.खुर्द नबाबपुरा 2.सुकटिया 3.पृथ्वीपुर4.पिपरिया वीरपुर 5.चंद्रपुरा 6.सीतापुर 7. 8.केशरपुर 9.जगन्नाथपुर 10.बारशेर 11.दलीपुर 12.हरदासपुर 13.माहमूडपुर 14.चकरपुर 15.गोटिया
बदायूँ (उत्तर प्रदेश)-
1.भोजपुर,2.गुरयारी
1.भोजपुर,2.गुरयारी
जिला सीतापुर उत्तर प्रदेश-
1-अहिवासी पुरवा 2- टेडवा चेलावला3- निभा ढेरा 4- भकरी कला 5-
पकरिया6- गौरा अर्जुनपुर 7- खजुरिया अहिवासी 8- पिपरावा 9- भदसिया10- कलापुर 11- उमरिया 12-परसेहरामल जिला-जालौन, ओखलेपुरा ।
पकरिया6- गौरा अर्जुनपुर 7- खजुरिया अहिवासी 8- पिपरावा 9- भदसिया10- कलापुर 11- उमरिया 12-परसेहरामल जिला-जालौन, ओखलेपुरा ।
अलवर जिला में आने वाले गांव (राजस्थान)-
1. बदनगढ़ी 2. गारु 3.नगला सीताराम 4.नगला खूबा 5.नगला केसरी 6.नतौज 7.लाठकी 8. भोजपुरा 9. अर्र्रूआ 10.सामौली 11.रामनगर 12. बालूपुरा 13.खैर मेडा, करीले का नगला
भरतपुर जिला (राजस्थान)-
1. नयावास 2. मनोहरपुर 3. जहांगीरपुर 4. सितारा 5. अजयपुरा 6. बिसदे 7. सैंथरी 8. डीग 9. कुम्हेर 10. मूंडिया 11. पड़लवास 12. कुरकेंन 13.सरसई 14. उसरारौ 15.सिकरोरी
भिंड जिला (मध्यप्रदेश)
1.काठा 2.रारी 3.मछर्या 4.बन्थारी 5.बिरखडी 6.मिहोना 7.चंडौंक 8.छिडी 9.बोहरा 10.शिकारपुरा 11.कौनरपुरा 12.अहिवासियों का पुरा 13.सोनी 14.महाराजपुरा 15.जगन्नाथपुरा 16.सीताराम की लवण 17.बिरखडी डांग 18.पिपडी 19.नौनेरा 20.खेरिया चदन 21.खेरिया बेर 22.तरौली 23.बरौली 24.भिंड
ग्वालियर जिला (मध्यप्रदेश)-
1. रंगवन
1. रंगवन
जबलपुर जिला (मध्यप्रदेश) –
1.डिढोरा 2.उड़ना 3.भोरडा 4.मेढी 5.अमरपुर 6.खेड़ा 7.पथरोरा 8.पाटन 9.जटवा 10.जूरी 11.जूरीखुर्द 12.कटरा बेलखेड़ा 13.कौनरपुर
14.पथरिया 15.चंडवा 16 मेहंगवा17 सिंगौरी 18.राइयाखेड़ा 19.नोनी 20 खामदेही 21.भेड़ाघाट 22.शाहपुरा 23.बामनोढा 24.सुरई 25.भरदा 26.कुआखेड़ा 27.मेली 28.पिंडराई 29.गुबरा
30.जमखार 31.बेलखेड़ा बड़ा 32.कूड़ा 33.झालोंन 34.बदराई 35- सुनाचर
14.पथरिया 15.चंडवा 16 मेहंगवा17 सिंगौरी 18.राइयाखेड़ा 19.नोनी 20 खामदेही 21.भेड़ाघाट 22.शाहपुरा 23.बामनोढा 24.सुरई 25.भरदा 26.कुआखेड़ा 27.मेली 28.पिंडराई 29.गुबरा
30.जमखार 31.बेलखेड़ा बड़ा 32.कूड़ा 33.झालोंन 34.बदराई 35- सुनाचर
नरसिंहपुर जिला (मध्यप्रदेश)-
1.गातेगाँव श्रीधाम 2.बगलाइ 3.कोरेगांव 4 चांडाली 5.करेली
हरदा जिला (मध्यप्रदेश)- 1.हरदा 2. ऊडा 3.भाटरपेटिया 4.डोलरिया 5.टेमागांव 6.झाडबीड़ा 7.झिरिखेड़ा 8.घोघडामाफी9. बंदीमुहाड़िया10.सिराली 11.टिमरनी 12.गोंदागांवकलां 13.सुरजना 14.रनहाई
हरदा जिला (मध्यप्रदेश)- 1.हरदा 2. ऊडा 3.भाटरपेटिया 4.डोलरिया 5.टेमागांव 6.झाडबीड़ा 7.झिरिखेड़ा 8.घोघडामाफी9. बंदीमुहाड़िया10.सिराली 11.टिमरनी 12.गोंदागांवकलां 13.सुरजना 14.रनहाई
आगर जिला(मध्यप्रदेश)
1.आगर मालवा 2.बडागाँव
शाजापुर जिला (मध्यप्रदेश)
1.पोलायकला
शिहोड़ जिला (मध्यप्रदेश)
1.नसरुल्लागंज 2.मन्झली 3.बीरखेडी
होशंगाबाद जिला (मध्यप्रदेश)-
1. होशंगाबाद
2.सिवनी मालवा
2.सिवनी मालवा
विदिशा (मध्यप्रदेश)-
1.विदिशा 2. गंजबासोदा
Total- 160 से ज्यादा गांव हैं ।
साभार: पंडित ओमन सौभरि भुर्रक, गाँव-भरनाकलां, गोवर्धन, मथुरा(उत्तर प्रदेश) ।
संबंधित लिंक...
बहुत-बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteBahut Badiya
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeletebahut ache bhai
ReplyDeleteIsme sunachar nahi h jo bekheda k pas h
ReplyDeleteजी add कर दिया, सुधार के लिए आपका सुझाव प्रशंशनीय
DeleteBhaaiSaab, Mahrashtra mai bhi kuchh jila ya village hai jinme Brahmin ya saubhari log niwas rat hai... kripya unn jilo ke naam bhi bataye
DeleteGood a
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteबहुत सही जानकारी बहुत बहुत धन्यबाद एक कार्य और हो जाये जिससे समाज में सभी गाव् के सर्विस करने बाले शादी योग्य लड़को की सूची तैयार हो जाये तो अच्छा हे
ReplyDeleteM. M. Sharma, Udaipur
ReplyDeleteThanks, its very usefull information for our new generation to know about our community.
बहुत सराहनीय है
ReplyDeleteजय प्रकाश परसइयां
फरीदाबाद
बहुत अच्छी जानकारी दी आपको धन्यवाद उमेश भरनाकला
ReplyDeleteDamoh jila me Bamnoda bhi he
ReplyDeleteInformation good information
ReplyDeleteSuperb for good information
ReplyDeleteThere been 2 more villages in up. Hamirpur distic
ReplyDeleteDhanauri and biwar
बहुत बहुत धन्यवाद आप
ReplyDeleteJabalpur district mai konarpur nhi kuwarpur gaaon hai wo.
ReplyDeleteभाई साहब सोती गोत्र को श्रोत्रिय लिख सकते हैं,क्या.....
ReplyDeleteCan you upload its pdf so we all can download it and save
ReplyDeleteBahut sunder
ReplyDelete🙏🙏💐💐🙏🙏
ReplyDelete🙏🙏
ReplyDeleteDear all
ReplyDeleteSabhi ko mera Pranam
Mera gaun Almapur hai Aligarh Dist me Hamre yaha bhi ek bhavya Dau baba ka temple jo ki Bahut bhavya bna hua hai krpay mera Admin ji se Anuroth hai link me use bhi add kre agar koi or jankari leni ho to ap mugje contact kr sakte h
Dhanybaad
सर आप से एक ग्राम गलती से छुट गया जोकि उत्तरप्रदेश के संभल जिला एवं तहसील chandusi के पास नेहटा ग्राम है जो करीब दो सो वर्ष से इस ग्राम मैं रहते है कृपया करके इसे सूची मे सम्मिलित करे धन्यवाद
ReplyDeleteसौभरी महाराज की जय 🙏सौभरी मिशन🙏2022
ReplyDeleteमेरा सौभरीं समाज से निवेदन है कि
feacbook , Instagram , या जो भी डिजिटल साइट है उन पर अपना सर नाम #शर्मा , #पांडे , या अपना #गोत्र न रख कर अपना सर नाम सौभरी रखे ताकी हमरे समाज को भारत या दूसरे देश में लोग सौभरीं समाज के नाम से जाने Er.Anmol Saubhari Mumbai
Verry good
ReplyDeleteBahut Achi jaankari dhanyabad
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