सौभरि जी व उनकी वंशावली के घटनाक्रमों को जोड़कर व सुव्यवस्थित कर स्वसमाज के लोगों को ग्राफिक्स व वीडियो के जरिये और अधिक सुगमता से उनके जीवन की लीलाओं के करीब लाने के लिए एक छोटी सी पहल। इसके अलावा दृश्यकला/नाटक भी सूचना के सम्प्रेषण का एक शशक्त माध्यम है जिसके द्वारा शारीरिक भाव-भंगिमा, आवाज व संवादो के जरिये किसी भी घटना का चित्रण किया जा सकता है । यह कला एक दर्पण है जिसके माध्यम से मानव की छवि, भावना तथा व्यवहार को उकेरा जा सकता है ।
इसके तहत हमारे स्वसमाज के जन्मदात्रा ब्रह्मर्षि सौभरि जी के जीवन की घटनाओं को क्रमवार 5 भागों में वर्गीकृत किया है, वो निम्न लिखित हैं...
Part 1- प्रकृति की रचना का वर्णन, ब्रह्मा जी के पुत्रों का वर्णन , सबसे बडे पुत्र अंगिरा जी तथा उनके बेटे घोर, उनके पौत्र कण्व व प्रपौत्र सौभरि जी का चरित्र चित्रण ।
Part 2- पिता कण्वऋषि द्वारा सौभरि जी को गृहस्थ आश्रम संभालने के लिए समझाना, तपस्या व यमुना जल के अंदर ध्यान रखने की विद्या, गरुड़ से कालिया नाग को बचाना ।
Part 3- मछलियों को देखकर गृहस्थ आश्रम में जाने का विचार, राजा मांधाता के विवाह प्रस्ताव के लिये गमन व वार्ता, सौभरि जी का वेशभूषा व नवयौवन धारण कर राजा की 50 पुत्रियों से विवाह ।
Part 4- मान्धाता के यहाँ आकर सुनरख के पास विश्वकर्मा द्वारा महलों का निर्माण, सौभरि जी का गृहस्थ जीवन वर्णन, राजा मान्धाता का 50 बेटियों का हालचाल जानने के लिए सुनरख में आगमन व मिलाप, सौभरि जी का गृहस्थ मोह से त्याग, रानियों सहित वनगमन व वन में तपस्या का चित्रण, मोक्ष की ओर ।
Part 5- सौभरि जी के वंशजों का क्षेत्रवार वर्तमान स्थिति का वर्णन (कृषि, जनसंख्या, नौकरी, व्यापार धंधा, शिक्षा, पुरोहिताई, सामाजिक संगठन, घटनाक्रम, उत्सव इत्यादि) ।
ओमन सौभरि भुर्रक, भरनाकलां, मथुरा
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