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Monday, 16 August 2021
अंगिरा ऋषि से उत्पन्न अंगिरस गोत्र के बारे में जानिए ।
Sunday, 15 August 2021
अंगिरस गोत्री सौभरि ब्राह्मणों (आदिगौड़ अहिवासी ब्राह्मणों) का संक्षिप्त परिचय
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Saturday, 14 August 2021
ब्राह्मण समाज का क्षेत्र व गोत्रों के हिसाब से वर्गीकरण
ब्राह्मण गोत्र और गोत्रकार ऋषियों के नाम:-
साभार:- ओमन सौभरि भुर्रक, भरनाकलां, मथुरा
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Wednesday, 11 August 2021
योगी, संन्यासी, साधु, मुनि, ऋषि, महर्षि, राजर्षि, देवर्षि, ब्रह्मर्षि में क्या अंतर होता है?
A- योगी:- शिव-संहिता पाठ योगी को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है जो जानता है कि संपूर्ण ब्रह्मांड अपने शरीर के भीतर स्थित है, और योग-शिखा-उपनिषद दो प्रकार के योगियों का वर्णन करता है: पहले वो जो विभिन्न योग तकनीकों के माध्यम से सूर्य (सूर्या) में प्रवेश करते हैं और दूसरे वो जो योग के माध्यम से केंद्रीय नलिका (सुषुम्ना-नाड़ी) तक पहुंचते हैं ।
जैसे- आदि शंकराचार्य, योगी रामदेव बाबा ।
D- संन्यासी:- वह है जो त्याग करता है। त्यागी ही संन्यासी है। संन्यासी बिना किसी संपत्ति के एक अविवाहित जीवन जीता है तथा योग ध्यान का अभ्यास करता है या अन्य परंपराओं में, अपने चुने हुए देवता या भगवान के लिए प्रार्थनाओं के साथ भक्ति, या भक्ति ध्यान करता है। हिन्दू धर्म में संन्यासियों को तीन भागों में बांटा गया है:-
जैसे- स्वामी विवेकानंद
1. परिव्राजक:- वह संन्यासी जो सदा भ्रमण करता रहे जैसे शंकराचार्य, रामानुजाचार्य।
2. परमहंस:- यह संन्यासी की उच्चतम श्रेणी है। इसके अंतर्गत आते हैं।
3. यती:- यह शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘वह जो उद्देश्य की सहजता के साथ प्रयास करता है’। इसका उदाहरण, लक्ष्मण यती हैं।
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Sunday, 8 August 2021
ब्रजभूमि में महर्षि सौभरि जी नाम पर सबसे बड़े पार्क का निर्माण
इस स्थान पर उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा पवित्र तीर्थस्थल सुनरख, वृन्दावन में 460 एकड़ भू-भाग में महर्षि सौभरि वन (सिटी फॉरेस्ट) के रूप में एक पार्क का विकास किया जाएगा।
460 एकड़ में प्रस्तावित एशिया के सबसे बड़े "सौभरि वन" (सुनरख वन) में चार योग केंद्र स्थापित होंगे। इसके साथ ही पर्यटकों के लिए अन्य कई सुविधाएं भी होंगी। इस पूरे प्रोजेक्ट की अनुमानित लोग 325 करोड़ रुपये होगी।
इस वन में सरोवर, पौधरोपण, फव्वारे, आॅर्गेनिक खेती और साइिकल ट्रैक आदि को अलग अलग लोकेशन पर रखा जाएगा। इसमें पेट्रोल डीजल से चलने वाले वाहनों के बजाय बैटरी चालित वाहनों का संचालन आवागमन के लिए किया जाएगा।
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महर्षि सौभरि, कालिया नाग व गरुड़ की कथा
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Thursday, 5 August 2021
Business Tycoon Shobharam Sharma ji
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Wednesday, 4 August 2021
गोत्रकार ऋषि परिवारों की सदस्य सँख्या :-
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Tuesday, 3 August 2021
महर्षि सौभरि जी के चरित्र से संबंधित कुछ कथाएं
उन्होंने गंधर्व को श्राप देते हुए कहा 'तूने चोर की तरह मेरी सहधर्मिणी का हाथ पकड़ा है, इस कारण तू मूषक होकर धरती के नीचे और चोरी करके अपना पेट भरेगा।काँपते हुए गंधर्व ने मुनि से प्रार्थना की-'दयालु मुनि, अविवेक के कारण मैंने आपकी पत्नी के हाथ का स्पर्श किया था। मुझे क्षमा कर दें। ब्रह्मऋषि सौभरि ने कहा मेरा श्राप व्यर्थ नहीं होगा, तथापि द्वापर में महर्षि पराशर के यहाँ गणपति देव गजमुख पुत्र रूप में प्रकट होंगे (हर युग में गणेशजी ने अलग-अलग अवतार लिए) तब तू उनका डिंक नामक वाहन बन जाएगा, जिससे देवगण भी तुम्हारा सम्मान करने लगेंगे। सारे विश्व तब तुझें श्रीडिंकजी कहकर वंदन करेंगे।
इसी संदर्भ में...
एक बार की बात है कि गजमुखासुर नाम का एक दैत्य हुआ करता। अपने बल से उसने देवताओं की नाक में दम कर दिया। वह हर समय उन्हें परेशान करता रहता। उसे यह वरदान प्राप्त था कि वह किसी शस्त्र से पराजित नहीं हो सकता ना ही उसकी शस्त्र के प्रहार से मृत्यु हो सकती है। देवताओं को उसे हराने की कोई युक्ति नहीं सूझी तो उन्होंनें भगवान गणेश की शरण ली। गजमुखासुर से मुक्ति दिलाने के लिये भगवान गणेश ने उससे युद्ध किया। अब शस्त्र से वह हार नहीं सकता था तो भगवान गणेश ने अपने एक दांत को तोड़कर उससे उस पर प्रहार करना चाहा। अब गजमुखासुर को अपनी मृत्यु दिखाई देने लगी। वह चूहा बनकर भागने लगा लेकिन भगवान गणेश ने उसे मूषक रूप में ही अपना वाहन बना लिया।
इस के अतिरिक्त एक कथा और मिलती है जिसके अनुसार एक बहुत ही बलशाली मूषक ने ऋषि पराशर के आश्रम में भयंकर उत्पात मचा रखा था। उसने ऋषि के अन्न भंडार को नष्ट कर दिया, मिट्टी के पात्रों (बर्तनों) को तबाह कर दिया। यहां तक कि सभी वस्त्र, ग्रंथ आदि भी उसने कुतर डाले। महर्षि ने भगवान गणेश से प्रार्थना की, तब भगवान गणेश ने अपना पाश फेंका जो पाताल से मूषक घसीटा हुआ भगवान गणेश के सामने ले आया। अब मूषक भगवान गणेश की आराधना करते हुए उनसे अपने प्राणों की भीख मांगने लगा। भगवान गणेश ने कहा तुमने ऋषि को बहुत परेशान किया है इसकी सजा तुम्हें मिलनी चाहिये लेकिन चूंकि तुम मेरी शरण में हो इसलिये तुम्हारी रक्षा भी मैं करूंगा मांगो क्या मांगते हो। इससे मूषक का अंहकार फिर से जाग गया और बोला मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिये बल्कि आप मुझसे कुछ भी मांग सकते हो। भगवान गणेश उसका अंहकार देखकर थोड़ा हंसे और बोले चलो ठीक है फिर तुम मेरे वाहन बन जाओ। मूषक ने तथास्तु कह दिया फिर क्या था अपनी विशालकाय देह के साथ भगवान गणेश उस पर बैठ गये। मूषक उनके भार को सह न सका उसे अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ और श्री गणेश से प्रार्थना की कि वे उसकी क्षमता के अनुसार ही अपने शरीर का भार बना लें तब उसके अंहकार को चूर होता देख भगवान गणेश ने उसके अनुसार ही अपना वजन कम किया।
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एक बार मछुआरों ने मछली पकड़ने के लिए जाल डाला तो मछलियों के साथ सौभरि ऋषि भी जाल में फंसकर खिंच आये । भार अधिक लगने के कारण मछुआरों ने सोचा कि कोई बड़ी मछली जल में फंस गई है । जाल को जल से बाहर खींचा तो उन्हें पता चल कि ये तो सौभरि ऋषि है ।
मछुआरे डरकर घबराने लगे । ऋषि ने कहा – भैय्या ! जब हम तुम्हारे जाल में आ ही गए है तो तुम बेच दो हमे । मछुआरे सोच में पड़ गए और राजा के पास आकर सारी बात बताई । बात अब उनके मूल्य कि थी कि उनका मूल्य कैसे आँका जाये ? सभी दुविधा में पड़ गए । ऋषि द्वारा बताने पर निश्चय हुआ कि गाय के रोम – रोम में अनगिनत देवताओ का वास है , अतः राजा ने ऋषि के बदले में गाय देकर ऋषि को मुक्त करा दिया ।
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एक समय की बात है…
सम्राट मान्धातृ अथवा मांधाता, इक्ष्वाकुवंशीय नरेश युवनाश्व और गौरी पुत्र अयोध्या में राज्य किया करते थे | च्यवन ऋषि द्वारा संतानोंत्पति के लिए मंत्र-पूत जल का कलश पी गए थे | च्यवन ऋषि ने राजा से कहा कि अब आपकी कोख से बालक जन्म लेगा। सौ वर्षो के बाद अश्विनीकुमारों ने राजा की बायीं कोख फाड़कर बालक को निकाला। अब बालक को पालना, एक बड़ी समस्या थी, तो तभी इन्द्रदेव ने अपनी तर्जनी अंगुली उसे चुसाते हुए कहा- माम् अयं धाता (यह मुझे ही पीयेगा)। इसी से बालक का नाम मांधाता पड़ा।
वह सौ राजसूय तथा अश्वमेध यज्ञों के कर्ता और दानवीर, धर्मात्मा चक्रवर्ती सम्राट् थे | मान्धाता ने शशबिंदु की पुत्री बिन्दुमती से विवाह किया |उनके मुचकुंद, अंबरीष और पुरुकुत्स नामक तीन पुत्र और 50 कन्याएँ उत्पन्न हुई थीं। इधरअयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट राजा मान्धाता वर्षा न होने के कारण राज्य में अकाल पडने से बहुत दुखी थे। अपनी सहधर्मिणी से प्रजा के कष्टों की चर्चा कर ही रहे थे; कि घूमते-घूमते नारद जी सम्राट मान्धाताके राजमहल में पधारे। सम्राट ने अपनी व्यथा नारद जी को निवेदित कर दी। नारद जी ने अयोध्या नरेश को परामर्श दिया कि वे शास्त्रों के मर्मज्ञ, यशस्वी एवं त्रिकालदर्शी महर्षि सौभरि से यज्ञ करायें। निश्चय ही आपके राज्य एवं प्रजा का कल्याण होगा। राजा मान्धातानारद जी के परामर्श अंतर्गत ब्रह्मर्षि सौभरिके यमुना हृदस्थित आश्रम में पहुंचे तथा अपनी व्यथा कथा अर्पित की। महर्षि ने ससम्मान अयोध्यापति को आतिथ्य दिया और प्रात:काल जनकल्याणकारी यज्ञ कराने हेतु अयोध्यापति के साथ अयोध्या पहुंच जाते हैं।यज्ञ एक माह तक अनवरत रूप से अपना आनंद प्रस्फुटित करता है और वर्षा प्रारम्भ हो जाती है। सम्राट दम्पति ब्रह्मर्षि को अत्यधिक सम्मान सहित उनके आश्रम तक पहुंचाने आये।
साभार:-
ओमन सौभरि भुर्रक, भरनाकलां, मथुरा
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हिन्दू धार्मिक सम्प्रदायों के बारे में जानिए
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वेद क्या है?
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