अखिल भारतीय ब्राह्मण समाज
ब्राह्मण समुदाय को कल्हण (12 वीं सदी) की राजतरंगिणी के अनुसार पंचगौड़ ब्राह्मण और पंच-द्रविड़ ब्राह्मणों के पारंपरिक रूप में दो क्षेत्रीय समूहों में विभाजित किया गया हैं:-
कर्णाटकाश्च तैलंगा द्राविडा महाराष्ट्रकाः।
गुर्जराश्चेति पञ्चैव द्राविडा विन्ध्यदक्षिणे।
सारस्वताः कान्यकुब्जा गौडा उत्कलमैथिलाः।
पन्चगौडा इति ख्याता विन्ध्स्योत्तरवासिनः।
कर्णाटकाश्च तैलंगा द्राविडा महाराष्ट्रकाः।
गुर्जराश्चेति पञ्चैव द्राविडा विन्ध्यदक्षिणे।
सारस्वताः कान्यकुब्जा गौडा उत्कलमैथिलाः।
पन्चगौडा इति ख्याता विन्ध्स्योत्तरवासिनः।
उत्तर भारत के पंचगौड़ ब्राह्मणों में पाँच ब्राह्मणों को सम्मिलित किया जाता है। 'पंचगौड़' विभाग स्कंदपुराण के 'सह्याद्रि खंड' में भी मिलता है और किसी भी प्राचीन ग्रंथ में इसका उल्लेख नहीं है। इन ब्राह्मणों में जो शामिल किये जाते हैं, वे हैं-
1- गौड़ ब्राह्मण:- पंच गौड़ ब्राह्मणों में एक वर्ग ”गौड़” के नाम से जाना गया है। इतिहास में उल्लेखित सन्दर्भों के अनुसार ’गौड़ ब्राह्मण’ मूल रूप से पश्चिम बंगाल के "गौड़ प्रदेश" के मूल निवासी हैं जो कालान्तर में मध्य और उत्तर भारत के राज्यों में आकर बस गये। समस्त उत्तर भारतीय ब्राह्मण संयुक्त रुप से गौड़ कहलाते थे। परंतु लंका विजय के बाद, इन ब्राह्मणों में वर्ग या समूह स्थापित होने प्रारंभ हो गए। परंतु वर्गीकरण से पूर्व प्रभु परशुराम ने जिन ब्राह्मणों को शासन दिया सभी गौड़ वंश के भाग रहे हैं । गौड़ ब्राह्मण, आदि गौड़, श्री आदि गौड़ एक ही वंश है, आदिगौड़ (सृष्टि के प्रारंभ से गौड़ या आदि काल से ) । गौड़ ब्राह्मणों की प्रमुखतः निम्न शाखाएं मानी गई है:-
(अ) आदिगौड़ ब्राह्मण - मूलतः पश्चिमी उत्तरप्रदेश, हरियाणा और दिल्ली में रहने वाले दो तिहाई ब्राह्मण आदिगौड़ ब्राह्मण हैं। आदिगौड़ ब्राह्मण मूलतः वैष्णव सम्प्रदाय को मानने वाले हैं तथा सभी हिन्दू देवी देवताओं की समान रूप से आराधना करते हैं। प्राचीन काल में गेहूँ, सरसों, ज्वार, मक्का, गन्ने आदि की खेती करके जीवन-यापन करते थे। इनमें से कुछ आयुर्वेद की शिक्षा ग्रहण करके लोगों का इलाज करने लगे जो आगे जाकर व्यापार की ओर अग्रसर हुए, वहीं कुछ ने पूजा-पाठ को अपनी आजीविका बनाया और ’पंडित’ या ’पंडा’ कहलाये। दाऊजी (बल्देव नगर) के पंडे आदिगौड़ ब्राह्मण हैं। इनका मूल निवास "अहिवास क्षेत्र (सुनरख, वृन्दावन)" है ।
(ब) गौड़ ब्राह्मण - राजस्थान, उत्तर व मध्य भारत में आकर बसे गौड़ ब्राह्मणों ने अन्य विषेशणात्मक शब्द का प्रयोग न करके सिर्फ गौड़ शब्द को ही अपनाया। राजस्थान व पश्चिमी उत्तरप्रदेश के अधिकांश ब्राह्मण ये गौड़ ब्राह्मण हैं ।
(स) गुर्जर गौड़ - इतिहास के मुताबिक गौड़ ब्राह्मणों का एक वर्ग गुर्जरों के धर्म गुरू बने और मूलतः गुजरात और मध्य भारत के भू-भाग में बस गये। इन्होने अपने नाम के साथ गुर्जर शब्द लगा लिया। कालान्तर में ये गुर्जर गौड़ कहलाये।
2- सारस्वत
3- कान्यकुब्ज
4- मैथिल
5- उत्कल
1- एक वेद को पढ़ने वाले ब्रह्मण को पाठक कहा गया।
2- दो वेद पढ़ने वाले को द्विवेदी कहा गया, जो कालांतर में दुबे हो गया।
3- तीन वेद को पढ़ने वाले को त्रिवेदी कहा गया जिसे त्रिपाठी भी कहने लगे, जो कालांतर में तिवारी हो गया।
4- चार वेदों को पढ़ने वाले चतुर्वेदी कहलाए, जो कालांतर में चौबे हो गए।
5- शुक्ल यजुर्वेद को पढ़ने वाले शुक्ल या शुक्ला कहलाए।
6- चारो वेदों, पुराणों और उपनिषदों के ज्ञाता को पंडित कहा गया, जो आगे चलकर पाण्डेय, पांडे या पंडा, पंडिया हो गए।
7- शास्त्र धारण करने वाले या शास्त्रार्थ करने वाले शास्त्री की उपाधि से विभूषित हुए।
8- वेद अध्ययन करने वाले उपाध्याय
“मनु-स्मॄति” के अनुसार आर्यवर्त वैदिक लोगों की भूमि है। “गोत्र” शब्द का अर्थ संस्कृत भाषा में “वंश” है। ब्राह्मण जाति के लोगों में, गोत्रों को पितृसत्तात्मक रूप से माना जाता है। प्रत्येक गोत्र एक प्रसिद्ध ऋषि या ऋषि का नाम लेता है जो उनके जन्मदाता थे। समाज बनने के बाद अब देखा जाए तो भारत में सबसे ज्यादा विभाजन या वर्गीकरण ब्राह्मणों में ही है।
इसी प्रकार ब्राह्मणों में सबसे ज्यादा उपनाम (सरनेम या टाईटल ) भी प्रचलित है। ब्राह्मणों की श्रेणियां-
ब्राह्मणों को सम्पूर्ण भारतवर्ष में विभिन्न उपनामों से जाना जाता है, जैसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में दीक्षित, शुक्ल, द्विवेदी त्रिवेदी, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल में उप्रेती, दिल्ली, हरियाणा व राजस्थान के कुछ भागों में खाण्डल विप्र, ऋषीश्वर, वशिष्ठ, कौशिक, भारद्वाज, सनाढ्य ब्राह्मण, राय ब्राह्मण, त्यागी , अवध (मध्य उत्तर प्रदेश) तथा मध्यप्रदेश के बुन्देलखंड से निकले जिझौतिया ब्राह्मण,रम पाल, राजस्थान, मध्यप्रदेश व अन्य राज्यों में बैरागी वैष्णव ब्राह्मण, बाजपेयी, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश ,बंगाल व नेपाल में भूमिहार, जम्मू कश्मीर, पंजाब व हरियाणा के कुछ भागों में महियाल, मध्य प्रदेश व राजस्थान में गालव, गुजरात में श्रीखण्ड,भातखण्डे अनाविल, महाराष्ट्र के महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण, मुख्य रूप से देशस्थ, कोंकणस्थ , दैवदन्या, देवरुखे और करहाड़े है. ब्राह्मणमें चितपावन एवं कार्वे, कर्नाटक में निषाद अयंगर एवं हेगडे, केरल में नम्बूदरीपाद, तमिलनाडु में अयंगर एवं अय्यर, आंध्र प्रदेश में नियोगी एवं राव, उड़ीसा में दास एवं मिश्र आदि तथा राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, बिहार में शाकद्वीपीय कहीं-कहीं उत्तर प्रदेश में जोशी जाति भी पायी जाती है।
ब्राह्मण गोत्र और गोत्रकार ऋषियों के नाम:-
(1). अत्रि, (2). भृगु,
💐(3). आंगिरस 【अंगिरा-घोर-काण्व-सौभरि( आदिगौड़ अहिवासी ब्राह्मण】💐,
(4). मुद्गल, (5). पातंजलि, (6). कौशिक,(7). मरीच, (8). च्यवन, (9). पुलह, (10). आष्टिषेण, (11). उत्पत्ति शाखा, (12). गौतम गोत्र,(13). वशिष्ठ और संतान (13.1). पर वशिष्ठ, (13.2). अपर वशिष्ठ, (13.3). उत्तर वशिष्ठ, (13.4). पूर्व वशिष्ठ, (13.5). दिवा वशिष्ठ, (14). वात्स्यायन, (15). बुधायन, (16). माध्यन्दिनी, (17). अज, (18). वामदेव, (19). शांकृत्य, (20). आप्लवान, (21). सौकालीन, (22). सोपायन, (23). गर्ग, (24). सोपर्णि, (25). शाखा, (26). मैत्रेय, (27). पराशर, (28). अंगिरा, (29). क्रतु, (30. अधमर्षण, (31). बुधायन, (32). आष्टायन कौशिक, (33). अग्निवेष भारद्वाज, (34). कौण्डिन्य, (34). मित्रवरुण, (36). कपिल, (37). शक्ति, (38). पौलस्त्य, (39). दक्ष, (40). सांख्यायन कौशिक, (41). जमदग्नि, (42). कृष्णात्रेय, (43). भार्गव, (44). हारीत, (45). धनञ्जय, (46). पाराशर, (47). आत्रेय, (48). पुलस्त्य, (49). भारद्वाज, (50). कुत्स, (51). शांडिल्य, (52). भरद्वाज, (53). कौत्स, (54). कर्दम, (55). पाणिनि गोत्र, (56). वत्स, (57). विश्वामित्र, (58). अगस्त्य, (59). कुश, (60). जमदग्नि कौशिक, (61). कुशिक, (62). देवराज गोत्र, (63). धृत कौशिक गोत्र, (64). किंडव गोत्र, (65). कर्ण, (66). जातुकर्ण, (67). काश्यप, (68). गोभिल, (69). कश्यप, (70). सुनक, (71). शाखाएं, (72). कल्पिष, (73). मनु, (74). माण्डब्य, (75). अम्बरीष, (76). उपलभ्य, (77). व्याघ्रपाद, (78). जावाल, (79). धौम्य, (80). यागवल्क्य, (81). और्व, (82). दृढ़, (83). उद्वाह, (84). रोहित, (85). सुपर्ण, (86). गालिब, (87). वशिष्ठ, (88). मार्कण्डेय, (89). अनावृक, (90). आपस्तम्ब, (91). उत्पत्ति शाखा, (92). यास्क, (93). वीतहब्य, (94). वासुकि, (95). दालभ्य, (96). आयास्य, (97). लौंगाक्षि, (98). चित्र, (99). विष्णु, (100). शौनक, (101). पंच शाखा, (102).सावर्णि, (103).कात्यायन, (104).कंचन, (105).अलम्पायन, (106).अव्यय, (107). विल्च, (108). शांकल्य, (109). उद्दालक, (110). जैमिनी, (111). उपमन्यु, (112). उतथ्य, (113). आसुरि, (114). अनूप और (115). आश्वलायन।
साभार:- ओमन सौभरि भुर्रक, भरनाकलां, मथुरा
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