Monday, 16 August 2021

अंगिरा ऋषि से उत्पन्न अंगिरस गोत्र के बारे में जानिए ।

 अंगिरस गोत्र (अंगिरा वंशज) :- अंगिरा की पत्नी दक्ष प्रजापति की पुत्री स्मृति (मतांतर से श्रद्धा) थीं। अंगिरा के प्रमुख पुत्र जो कि इस प्रकार से हैं- महर्षि घोर उतथ्य, संवर्त और बृहस्पतिऋग्वेद में उनका वंशधरों का उल्लेख मिलता है। इनके अतिरिक्त और भी पुत्रों का उल्लेख मिलता है- हविष्यत्‌, उतथ्य, बृहत्कीर्ति, बृहज्ज्योति, बृहद्ब्रह्मन्‌ बृहत्मंत्र; बृहद्भास और मार्कंडेय। भानुमती, रागा (राका), सिनी वाली, अर्चिष्मती (हविष्मती), महिष्मती, महामती तथा एकानेका (कुहू) इनकी 7 कन्याओं के भी उल्लेख मिलते हैं। अंगिरा जी ने ऋषि मरीचि की बेटी सुरूपा व कर्दम ऋषि की बेटी स्वराट् और मनु ऋषि कन्या पथ्या से भी विवाह किया था । सुरूपा के गर्भ से बृहस्पति, स्वराट् से गौतम, प्रबंध, वामदेव, उतथ्य और उशिर ये 5 पुत्र जन्मे। पथ्या के गर्भ से विष्णु, संवर्त, विचित, अयास्य, असिज, दीर्घतमा, सुधन्वा ये 7 पुत्र जन्मे। 
 
 महाभारत के आदिपर्व के अनुसार बृहस्पति महर्षि अंगिरा के पुत्र तथा देवताओं के पुरोहित हैं। देवगुरु बृहस्पति की एक पत्नी का नाम शुभा और दूसरी का तारा है। उनकी तीसरी पत्नी ममता से भारद्वाज और कच नामक 2 पुत्र उत्पन्न हुए। प्रथम पुत्र कच 
 जिन्होंने शुक्राचार्य से संजीवनी विद्या सीखी और दूसरे पुत्र ऋषि भारद्वाज जिनके प्रमुख पुत्रों के नाम इस प्रकार से हैं- ऋजिष्वा, गर्ग, नर, पायु, वसु, शास, शिराम्बिठ, शुनहोत्र, सप्रथ और सुहोत्र। उनकी 2 पुत्रियां थीं रात्रि और कशिपा। 
 
घोर आंगिरस:- इसी अंगिरस गोत्र में घोर नाम के ऋषि पैदा हुए जिन्हें घोर आंगिरस कहा जाता है और जो भगवान श्री कृष्ण के विद्याधर गुरु भी कहे जाते हैं।

 आंगिरस ऋषियों के द्वारा स्थापित किए गए इस वंश की जानकारी ऋग्वेद, ब्रह्मांड, वायु एवं मत्स्य पुराण, भागवत पुराण, स्कंद पुराण, विष्णु पुराण, गर्ग संहिता इत्यादि में मिलती है। इनके पुत्र महर्षि काण्व जी जो कि एक ऋग्वैदिक ऋषि थे, इनके ऋग्वेद में बहुत मंत्र हैं जिनसे एक पुत्र हुआ। उनका नाम ब्रह्मर्षि सौभरि जी था इन्होंने यमुना नदी के जल में 60 हजार वर्ष तक तपस्या की । इसके बाद इक्ष्वाकु वंश के राजा मान्धाता की 50 पुत्रियों से इनका विवाह हुआ । ब्रह्मर्षि सौभरि ब्रज के अहिवास क्षेत्र (सुनरख, वृन्दावन) में रहते थे । इनके वंशज आदिगौड़ अहिवासी ब्राह्मण (आदिगौड़ सौभरेय ब्राह्मण) कहलाते हैं । महर्षि सौभरि जी के 50 पत्नियों से 5000 पुत्र उत्पन्न हुए जिनमें कुशक नाम के ऋषि हुये जिनका विवाह भारद्वाज ऋषि की बेटी रात्रि से हुआ था । इनके 50 पत्नियों से उत्पन्न संतानों के 50 अलग-अलग कुल हैं । इनके वंशज उत्तरप्रदेश के जिला मथुरा, अगर, हाथरस, अलीगढ़, सीतापुर, मध्यप्रदेश के जिला, भिंड मुरैना, ग्वालियर, जबलपुर इत्यादि व राजस्थान के भरतपुर, अलवर जिले में पाए जाते हैं ।
प्रसिद्ध महापुरुष:- श्री कल्याण देवाचार्य, प्रोफेसर माधवाचार्य पांडा जी, संत शिरोमणि प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जी, सती हरदेवी जी, प्रसिद्द चित्रकार जगन्नाथ मुरलीधर अहिवासी जी ।

साभार-  ओमन सौभरि भुरर्क, भरनाकलां, मथुरा

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