श्री दाउजी मन्दिर, बल्देव व अन्य स्वसमाज की अनेक ऐसी सामाजिक विरासतें हैं जहाँ पर एक पुस्तकालय या संग्रहालय टाईप का कोई ऐसा माध्यम नहीं है जिसके द्वारा अपने स्वसमाज की पुरातन वस्तुओं को लोगों के लिए पीढ़ी दर पीढ़ी उनके समक्ष दर्शनार्थ रख सकें लेकिन अभी भी यह विषय गौरवमयी समाज के बुद्धिजीवी लोगों के इतर है । निकट भविष्य में इस पर विचार किया जा सकता है । स्वसमाज के लिए यह कदम निश्चित रूप से लोगों को स्वाभिमानी व जागृत बनायेगा साथ ही अन्य सामाज के लोगों में जो कुछ भ्रांतियां फैली हुई हैं उनका वह बड़ी आसानी से उन्मूलन कर सकेंगे और यह तभी संभव है जब स्वसमाज का जन-जन अपने इतिहास के बारे में भलीभांति परिचित हो ।
🌷संग्रहालय एक ऐसा संस्थान है जो समाज की सेवा और विकास के लिए जनसामान्य के लिए होता है जिसमें मानव और पर्यावरण की विरासतों के संरक्षण उनके संग्रह, शोध, प्रचार या प्रदर्शन के लिए किया जाता है🌷 वहीं पुस्तकालय का अर्थ 'लेखन पुस्तकों और दस्तावेज' के स्वरूप को संरक्षित रखने की पद्धतियों और प्रणालियों से है। पुस्तकालय के लिए अलग से एक भवन कम से कम इतना बड़ा हो जहाँ 50-60 व्यक्ति एक साथ बैठकर पढ़ सकें । इनके रख-रखाव के लिए सदस्यता शुल्क भी महज 50-60 रुपये मासिक रख सकते हैं । यहाँ पर सामाजिक पुस्तकालय का उद्देश्य यह हो कि जनसाधारण बड़ी आसानी से अपने पूर्वजों, कला, संस्कृति इत्यादि को पुस्तकों के माध्यम से अपने मस्तिष्क में सँजो सके । उदार व्यक्ति यहाँ अपनी बहुमूल्य ग्रंथों व पुस्तकों का निजी संग्रह भेंट कर अपना योगदान दे सकते हैं ।
पुस्तकालय का सीधा असर सीधा पाठकों के बौद्धिक विकास पर पड़ता है । सामाजिक पुस्तकालय के पाठक न तो सीमित होते हैं और न इसके सीमित नियम ही होते हैं, अपितु इस प्रकार के पुस्तकालय तो विस्तृत नियमों के साथ अपने पाठकों की संख्या असीमित ही रखते हैं । यहाँ पुस्तकों का संग्रह, साहित्य, संगीत, कला, दर्शन, धर्म, राजनीति, विज्ञान, समाज, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय आदि का हो सकता है ।
प्रत्येक वर्ष 18 मई के दिन अन्तर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस मनाते हैं जिसका उपयोग शिक्षा, अध्ययन और मनोरंजन के लिये होता है। अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय परिषद के अनुसार, इसका मूल उद्देश्य ” संग्रहालय में ऐसी अनेकों चीज सुरक्षित रखी जाती हैं जो अपने पूर्वजों की सभ्यता की याद दिलाती हैं यहाँ पर रखी हर वस्तु हमारी सांस्कृतिक धरोहर तथा प्रकृति को प्रदर्शित करती है । इस दुनिया में 145 देशों में 35,000 से अधिक संग्रहालय विद्यमान हैं।
बालक, शिक्षा द्वारा समाज के आधारभूत नियमों, व्यवस्थाओं, समाज के प्रतिमानों एवं मूल्यों को सीखता है। बच्चा समाज से तभी जुड़ पाता है जब वह उस समाज विशेष के इतिहास से अभिमुख होता है।शिक्षा मानव को एक अच्छा इंसान बनाती है। शिक्षा के जरिये उचित ज्ञान, आचरण और तकनीकी दक्षता, शिक्षण और विद्या प्राप्ति, मानसिक सुधार आदि किये जा सकते हैं। शिक्षा व्यक्ति की उन सभी भीतरी शक्तियों का विकास है जिससे वह अपने वातावरण पर नियंत्रण रखकर अपने उत्तरदायित्त्वों का निर्वाह कर सके।
शिक्षा, समाज एक पीढ़ी द्वारा अपने से निचली पीढ़ी को अपने ज्ञान के हस्तांतरण का प्रयास है। इस विचार से "शिक्षा" एक संस्था के रूप में काम करती है, जो व्यक्ति विशेष को समाज से जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा समाज की संस्कृति की निरंतरता को बनाए रखती है।
क्यों ना हम भी ऐसी वस्तुओं को संग्रहित करें जो अपनी स्वसमाज के निकट संबंधित हो जिसमें स्वजनों की कृतियाँ, अभिलेख, पुरानी मूर्तियां, बरतन इत्यादि शामिल हों और उनको व्यवस्थित रखने के लिए एक सुनिश्चित स्थान भी ।
ओमन सौभरि भुर्रक, भरनाकलां, मथुरा
संबंधित लिंक...
No comments:
Post a Comment