तहसील छाता, गोवर्धन, मथुरा (उत्तरप्रदेश) के यमुना के पश्चिम दिशा वाले 12 गाँवों का विवरण-
1.भरनाकलां-
मूल नाम- भरनाकलां
ब्लॉक- चौमुहाँ
थाना-बरसाना
जिला- मथुरा
संभाग/मंडल- आगरा
प्रदेश- उत्तरप्रदेश
देश -भारत
महाद्वीप-एशिया
भाषा-हिन्दी
मानक समय-IST(UTC+5:30)
समुद्र तल से ऊँचाई-184
दूरभाष कोड़- 05662
विधानसभा क्षेत्र- छाता
तहसील-गोवर्धन
लोकसभा क्षेत्र- मथुरा
जनसंख्या-4500
परिवार-450
साक्षरता-75%
स्कूल/कॉलेज- सरस्वती शिशु मंदिर, प्राइमरी विद्यालय, कैप्टन राकेश इंटर कॉलेज
बैंक- सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया
हॉस्पिटल-गवरमेंट अस्पताल
मंदिर-बाँके विहारी मंदिर
बाजार-शनि बाजार
ब्लॉक- चौमुहाँ
थाना-बरसाना
जिला- मथुरा
संभाग/मंडल- आगरा
प्रदेश- उत्तरप्रदेश
देश -भारत
महाद्वीप-एशिया
भाषा-हिन्दी
मानक समय-IST(UTC+5:30)
समुद्र तल से ऊँचाई-184
दूरभाष कोड़- 05662
विधानसभा क्षेत्र- छाता
तहसील-गोवर्धन
लोकसभा क्षेत्र- मथुरा
जनसंख्या-4500
परिवार-450
साक्षरता-75%
स्कूल/कॉलेज- सरस्वती शिशु मंदिर, प्राइमरी विद्यालय, कैप्टन राकेश इंटर कॉलेज
बैंक- सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया
हॉस्पिटल-गवरमेंट अस्पताल
मंदिर-बाँके विहारी मंदिर
बाजार-शनि बाजार
विश्व के अन्य सभी देशों की तुलना में “भारत” वास्तव में आज भी गांवों का ही देश है। कला, संस्कृति, वेशभूषा के आधार पर आज भी ‘गांव’ देश की रीढ़ की हड्डी बने हुये हैं। प्रत्येक गांव का एक अपना ही महत्व होता है जिसका पता वहां रहने वाला ही जानता है। गांव में चक्की के मधुर गीत से ही सवेरा आरंभ होता है।
मेरा गांव भरनाकलां भी भारत के लाखों गांवों जैसा ही है । लगभग साढ़े चार सौ घरों की इस बस्ती का नाम भरनाकलां है !भरनाकलां गांव छाता-गोवर्धन रोड पर स्थित है । गांव के पूर्व में भरनाखुर्द, पश्चिम में ततारपुर, उत्तर में सहार, दक्षिण में पाली गांव स्थित है । गांव में खाद गोदाम भी है ।
गांव के तीनौं तरफ प्रमुख तालाब हैं इसके पूर्व में श्यामकुण्ड, पश्चिम में नधा एवं दक्षिण में मुहारी(मुहारवन) है ।
लोग हर क्षेत्र में कार्य करने में सक्षम होते जा रहे हैं।गांव में बारात के ठहरने के लिए बारात घर की भी व्यवस्था है । पीने के स्वच्छ जल की व्यवस्था गांववासियों ने बिना सरकार की सहायता लिए बगैर,स्वयं यहाँ के लोगों व्यवस्थित की गई है ।
अगर हम गांव की आबादी स्वसमाज के अनुसार देखते हैं तो करीब 50 प्रतिशत से ज्यादा की भागेदारी है और अगर अपने समाज के गोत्र के हिसाब से यहाँ, वर्गला, ईटोंइयाँ, कुम्हेरिया, पचौरी, भुर्र्क, तगर, परसैया आदि परिवार मिलते हैं । गाँव के उत्तर में कलकल करती हुई आगरा नहर बहती है । चारों और खेतों की हरियाली गाँव की शोभा बढ़ाती है । पूर्व और दक्षिण में भरतपुर फीडर(बम्बा)और पश्चिम में खार्ज बम्बा कृषि सिंचाई की पूर्ति करता है। गाँव से थोड़ी दूरी पर एक बड़ा सा बाँके विहारी जी का मंदिर है जिसके पास मुहारवन तालाब है । पाठशाला और अस्पताल गाँव के बाहर है । गाँव के सभी वर्णों के लोग यहाँ रहते हैं ।
गाँव में अधिकतर किसान रहते है ।मेरे गाँव में गेंहू, चना, मक्का,ज्वार, चावल, सरसों एवं गन्ने की उपज होती है । कुछ लोग भांग, तंबाखू का सेवन भी करते हैं अन्य जगहों की तुलना करने पर फिर भी मेरा गाँव अपने आप में अच्छा हैं । यहाँ प्रकर्ति की शोभा है, स्नेहभरे लोग हैं, धर्म की भावना है और मनुष्यता का प्रकाश है । रोजगार की वजह से दिल्ली की तरफ लोगों का पलायन बड़ी मात्रा में हो रहा है ।
गाँव में अधिकतर किसान रहते है ।मेरे गाँव में गेंहू, चना, मक्का,ज्वार, चावल, सरसों एवं गन्ने की उपज होती है । कुछ लोग भांग, तंबाखू का सेवन भी करते हैं अन्य जगहों की तुलना करने पर फिर भी मेरा गाँव अपने आप में अच्छा हैं । यहाँ प्रकर्ति की शोभा है, स्नेहभरे लोग हैं, धर्म की भावना है और मनुष्यता का प्रकाश है । रोजगार की वजह से दिल्ली की तरफ लोगों का पलायन बड़ी मात्रा में हो रहा है ।
हमारे गांव में जो आगरा नहर है वह नहर नहीं उसे ‘जीवन की धारा’ कहिए, क्योंकि जहाँ-जहाँ भी वह पहुंची है, सूखे खेतों में नया जीवन लहलहा उठा है। बंजर भूमि भी सोना उगलने लगी है। जब हम घर-द्वार से दूर किसी नगर में या वहां से भी दूर परदेश में होते हैं तो भी अपना गांव स्वप्न बनकर हमारे ह्रदय में समाया रहता है। रह-रहकर उसका स्मरण तन मन में उत्तेजना भरता रहता है।
यहाँ की दो-तिहाई से अधिक जनसंख्या गांवों में रहती है |आधे से अधिक लोगों का जीवन खेती पर निर्भर है इसलिए ‘गांवों के विकास’ के बिना देश का विकास किया जा सकता है, ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता | गाँव के अंदर ही बैंक, एटीएम व डाकघर स्थित है। यहाँ पक्की सड़कें एवं बिजली की उत्तम उचित व्यवस्था है ।
होली, दीवाली, रक्षाबंधन, दशहरा , शरद पूर्णिमा बडे धूमधाम से मनाये जाते हैं विशेषकर होली का त्यौहार बड़े ही हर्ष-उल्लास के साथ सब ग्रामवासी मनाते हैं । रंगवाली होली जिसे धुलैंडी बोलते हैं उसी दिन गाँव का मेला होता है । मेले वाले दिन सभी नाते- रिश्तेदार अपने-अपने रिश्तेदारों के यहाँ आते हैं । उस दिन गांव में दिन निकलते ही होली का खेल शुरू हो जाता है ।सब लोग हाथों में रंग, गुलाल लिए घरों से बाहर निकल कर सभी लोगों को रंग लगाते हैं और DJ और बाजे के साथ गांव की पूरी परिक्रमा करते हैं । ये एक जुलूस की तरह होता है । ये जुलूस होली के उत्सव में चार चांद लगा देता है । यह एकता का प्रतीक है । इसमें सभी धर्म-जाति के लोग होते हैं ।
क्षेत्रफल के हिसाब से वैसे गांव ‘तीन थोक’ में बँटा हुआ है, मेले की फेरी की शुरुआत 10 विसा के रामलीला स्थान से होती है । इसके बाद फेरी ‘पौठा चौक’से होते हुए ‘कुम्हरघड़ा हवा’की ओर बढ़ती है । इसके बाद 2.5 विसा की तरफ बढ़ते हैं जो कि ‘ईटोइयाँ परिवारों’ को रंग लगाते हुए आगे बढ़ते हुए शोभाराम प्रधान जी के घर के सामने लोग भांग का भोग लेते हैं ।
विश्राम लेने के बाद आगे बढ़ते हुए ‘कुम्हेरिया परिवारों’ की तरफ होते हुए 1.25 विसा में प्रवेश करते हैं, यहीं एक छोटा सा मंदिर भी है, सब लोग ठाकुर जी को रंग लगाते हैं । यहाँ आकर सारे ग्रामवासी ‘तीनों थोकौं’ इक्ट्ठे हो जाते हैं ।इस तरह से लोग धीरे -धीरे आगे रामलीला स्थान की तरफ ‘सेलवालों’ की पौरी से होते हुए चलते हैं ।
यहाँ से रास्ता थोड़ा सँकरा है इसलिए DJ वाली गाड़ी को निचले परिक्रमा मार्ग से निकालते हैं ।
यहाँ से रास्ता थोड़ा सँकरा है इसलिए DJ वाली गाड़ी को निचले परिक्रमा मार्ग से निकालते हैं ।
इसके बाद फेरी का प्रवेश फिर से 10 विसे में होता है और रामलीला में मैदान पर आकर इस रंगवाली होली का समापन क़रते हैं । सब लोग अपने-अपने घरों को चले जाते हैं और नहा-धोकर दोपहर से लगने वाले मेले की तैयारी करते हैं । सब के यहाँ पर 12 बजे के बाद रिश्तेदार आने लगते हैं । चारों तरफ खुशियों का नजारा होता है ।
शाम को करीब 3 बजे से ‘ भरनाकलां काली कमेटी’ की तरफ से ‘काली’, पट्टेबाजी, घायल प्रदर्शनी व अलग-अलग अनौखी झाकियां निकाली जाती है । सुबह वाली ‘होली की फेरी’ की तरह ही इसे पूरे गांव में होकर निकालते हैं ।
6:30 बजे शाम तक इसका समापन उसी रामलीला स्थान पर आकर हो जाता है ।फिर से सब अपने -अपने घर चले जाते हैं और अतिथियों की आवभगत करते हैं । पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं का भी बराबर योगदान इस दिन रहता है । वह सुबह से आने वाले सगे संबंधियों के लिए व्यंजनों की व्यवस्था करती हैं ।
इसके बाद करीब 11 बजे से रात को लोकनृत्य, नौटंकी, रसिया दंगल आदि का प्रोग्राम सुबह 4 बजे तक होता है । इस तरह से हर साल यही परंपरा सदियों से चली आ रही है ।
इसी तरह से ब्रज के अन्य गॉंवों में क्रमवार होली के मेले के आयोजन होते हैं । इसी तर्ज पर होली पर आपस मिलने के बहाने घर छोड़कर रह रहे शहरों में रहनेवाले अपनी समाज के लोग प्रतिवर्ष मात्र, नोएडा, ग्वालियर इत्यादि जगहों पर ‘होली मिलन’ समारोह क़रते हैं ।
2.भरनाखुर्द-
भरनाखुर्द गांव आगरा नहर की तलहटी में बसा हुआ है । गांव में ब्रजक्षेत्र का सबसे बड़ा कुंड ‘सूरजकुण्ड’ इसी गांव में स्थित है । आधे से ज्यादा गांव टीले पर बसा हुआ है ।
गांव में 80%आबादी स्वजनों (सौभरी ब्राह्मण समाज) की है । गांव के प्रवेश द्वार के पास बच्चों की शिक्षा के लिए महर्षि सौभरि इंटरकॉलेज बना हुआ है ।
गांव में 80%आबादी स्वजनों (सौभरी ब्राह्मण समाज) की है । गांव के प्रवेश द्वार के पास बच्चों की शिक्षा के लिए महर्षि सौभरि इंटरकॉलेज बना हुआ है ।
यह भूमि गोस्वामी कल्याणदेव जी की जन्मस्थली है जिनकी तपस्या से स्वयं ‘ब्रज के राजा कृष्ण के बड़े भ्राता’श्री बलदाऊ जी’ की मूर्ति स्वप्न में दिखी थी और इसके बाद ‘श्री दाऊजी मंदिर(बलदेव)’ का निर्माण कराया । यह स्थान मथुरा से 14KM दूर मथुरा-सादाबाद रोड पर स्थित है ।
आज उन्ही के प्रभाव से नए गांव’ दाऊजी’ की स्थापना हुई जहाँ उनके वंशज “दाउजी के मंदिर’ के पंडे-पुजारी हैं । यहाँ पर सम्पूर्ण देश-विदेशों से यजमान व दर्शनार्थी ‘रेवती मैया व दाउ बाबा के दर्शन करने आते हैं ।
सूरजकुण्ड होने की वजह से भरनाखुर्द गांव के निवासियों में सूर्य की तरह तेजवान व गर्मजोशी वाले हैं । इस गांव का मेला धुलैंडी के बाद चैत्र कृष्ण द्वितीया को मनाया जाता है । संयोगवश दाउजी का हुरंगा भी द्वितीया को ही मनाया जाता है ।
3.पेलखू-
पेलखू गांव भरनाकलां से 5 KM की दूरी पर स्थित है । यह गांव गोवर्धन तहसील के अन्तर्गत आता है । यहाँ पर स्वसमाज के अलावा गुर्जर भी बड़ी मात्रा में निवास करते हैं । स्वसमाज के अगर गोत्रों की बात की जाय तो “पधान पचौरी” व “भुर्रक” उपगोत्रों की बहुलता है ।करीब पूरे गांव में 500 घर के आसपास हैं जिनमें आधे स्वसौभरी जनों के हैं ।
अपने 12 गांव जो तहसील छाता और गोवर्धन के अंतर्गत आते हैं उनमें ‘पेलखू’ गांव ने शान्ति की मिसाल कायम की हैं क्योंकि स्वजनों के अलावा ‘गुर्जर’ भारी मात्रा में हैं । गांव पेलखू के पश्चिम में भरनाखुर्द, पूर्व में राल, उत्तर में शिवाल व दक्षिण में
कोनई गांव पड़ता है ।
कोनई गांव पड़ता है ।
4.मघेरा-
गांव मघेरा गोवर्धन-वृन्दावन मार्ग पर स्थित है । 12 गॉंवों से इकलौता गांव है जो कि मथुरा तहसील में आता है । गांव की सीमाएं गांव अझही, गांव राल, छटीकरा व गांव भरतिया से लगी हुई हैं । मघेरा गांव में स्वजन सौभरि ब्राह्मण समाज का बोलबाला है ।
उपगोत्र के हिसाब से ‘भुर्रक गोत्र’ बड़ी बहुलता में मिलता है । वो इस गांव के ‘भूमियां’ हैं जहाँ भी भुर्रक गोत्री अन्य गॉंवों व शहरों में रहते हैं वो सब यही के ‘मूल निवासी’ हैं । ज्यादातर यहाँ के लोग शहरों में निकले हुये हैं । अपने 12 गांवों की तुलना में यहाँ के निवासी सबसे ज्यादा ‘शहरी’ हैं ।
साक्षरता का जो अनुपात है, उसमें भी यह गांव अव्वल है । गांव का मेला को मनाया जाता है ।
5-पलसों-
पलसों गाँव सती स्वरूपा ‘श्री हरदेवी जी’ की कर्मस्थली व पुण्यस्थली है । यह गोवर्धन-बरसाना रोड़ पर स्थित गांव पलसों ‘परशुराम खेड़ा’ के नाम से भी जाना जाता है । शुरुआत से इस पावन गांव से बड़े-बड़े पहलवान होते रहे हैं । वर्तमान में तहसील गोवर्धन व छाता में पड़ने वाले सौभरि ब्राह्मण समाज के गांवों में जनसंख्या व क्षेत्रफल के हिसाब से दूसरे स्थान पर है ।
आसपास के गाँव जैसे, मडोरा, महरौली, भगोसा, डिरावली, छोटे नगले पलसों गांव की सीमा से लगे हुए हैं । गांव में उपगोत्रों के हिसाब से ‘परसईयाँ’ गोत्र बहुलता में पाया जाता है ।
गांव के समीप ही गोवर्धन- बरसाना सड़कमार्ग पर ‘श्री हरदेवी जी ‘ का मन्दिर बना हुआ है । पलसों एक बर्ष अंदर दो मेलों का आयोजन कराने वाला इकलौता स्वजातीय गांव है । होली के मेले का आयोजन चैत्र कृष्ण तृतीया को तथा ‘श्री सती हरदेवी जी’ का मेला श्रावण मास की शुक्ल अष्टमी को होता है ।
गांव के समीप ही गोवर्धन- बरसाना सड़कमार्ग पर ‘श्री हरदेवी जी ‘ का मन्दिर बना हुआ है । पलसों एक बर्ष अंदर दो मेलों का आयोजन कराने वाला इकलौता स्वजातीय गांव है । होली के मेले का आयोजन चैत्र कृष्ण तृतीया को तथा ‘श्री सती हरदेवी जी’ का मेला श्रावण मास की शुक्ल अष्टमी को होता है ।
गांव के प्रवेशद्वार स्थित श्री शंकर इंटर कॉलेज आज भी शिक्षा के मामले में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है ।
गांव के पास ही पेट्रोल पंप व बैंक भी है जो लोगों जनसुविधा के हिसाब से आदर्श गांव की ओर इंगित करता है । गांव के बाहर चारागाहों की तरह पशुओं के बैठने का भी पूरा इंतज़ाम है जिसे ‘राहमीन’ कहते हैं ।
गांव के पास ही पेट्रोल पंप व बैंक भी है जो लोगों जनसुविधा के हिसाब से आदर्श गांव की ओर इंगित करता है । गांव के बाहर चारागाहों की तरह पशुओं के बैठने का भी पूरा इंतज़ाम है जिसे ‘राहमीन’ कहते हैं ।
एक वृतांत के अनुसार परसों अथवा पलसों नामक गाँव गोवर्धन-बरसाना के रास्ते में स्थित है। ब्रजमण्डल स्थित भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े स्थलों में से यह एक है। जब अक्रूर जी, बलराम और कृष्ण दोनों भाईयों को मथुरा ले जा रहे थे, तब रथ पर बैठे हुए श्रीकृष्ण ने गोपियों की विरह दशा से व्याकुल होकर उनको यह संदेश भेजा कि मैं शपथ खाकर कहता हूँ कि परसों यहाँ अवश्य ही लौट आऊँगा तब से इस गाँव का नाम परसों हो गया।
6.सीह-
गांव सीह भी पलसों गांव से 2 KM दूर बरसाने की तरफ गोवर्धन-बरसाना रोड़ पर स्थित है ।
जैसा कि गांव का नाम है उसी से ज्ञात होता है कि यहाँ “सीहइयाँ’ उपगोत्र के लोग ‘भूमियां’ का ताज लिए हुए हैं । दो तिहाई लोग ‘सीहइयाँ’ उपगोत्र के हैं व इनके बाद उपगोत्र ‘सिरौलिया’ आते हैं ।
गांव में होली के मेले का आयोजन चैत्र कृष्ण चतुर्थी को मनाया जाता है
जैसा कि गांव का नाम है उसी से ज्ञात होता है कि यहाँ “सीहइयाँ’ उपगोत्र के लोग ‘भूमियां’ का ताज लिए हुए हैं । दो तिहाई लोग ‘सीहइयाँ’ उपगोत्र के हैं व इनके बाद उपगोत्र ‘सिरौलिया’ आते हैं ।
गांव में होली के मेले का आयोजन चैत्र कृष्ण चतुर्थी को मनाया जाता है
सबसे ज्यादा स्वजन ‘पुरोहिताई’ में इसी गांव से निकल कर देश के सभी हिस्सों में अपनी’ब्राह्मण कला संस्कृति’ का परिचय दे रहे हैं । गांव की सीमाएं पलसों, डिरावली, देवपुरा, डाहरौली, हाथिया गांव से सटी हुईं हैं ।
7.डाहरौली-
गांव डाहरौली गोवर्धन-बरसाना रोड़ पर स्थित है ।
जनसंख्या के हिसाब से छोटा गांव है । सीह की तरह ही पुरोहिताई में यह गांव भी अग्रणी है ।
राधारानी की जन्मस्थली बरसाना के बिल्कुल निकट है।
जनसंख्या के हिसाब से छोटा गांव है । सीह की तरह ही पुरोहिताई में यह गांव भी अग्रणी है ।
राधारानी की जन्मस्थली बरसाना के बिल्कुल निकट है।
अन्य गांवों की तुलना में सीह, पलसों, डाहरौली तीनौं गांवों में हल्की से राजस्थान की झलक देखने को मिलती है । यहाँ जलस्तर थोड़ा नीचा है ।
होलीदहन से एक दिन पहले फ़ाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी को गांव के मेले का आयोजन होता है ।
होलीदहन से एक दिन पहले फ़ाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी को गांव के मेले का आयोजन होता है ।
8. भदावल-
गांव भदावल छाता–बरसाना रोड पर स्थित है । भदावल गांव की सीमाएं तहसील छाता, नगरिया, खानपुर आदि गांवों से लगी हुई है। होली पर मनाया जाने वाला मेला धुलैंडी (रंगवाली होली) के दिन होता है ।
आगरा नहर की तलहटी में बसा हुआ है ।
आगरा नहर की तलहटी में बसा हुआ है ।
9.खानपुर-
खानपुर गांव छाता तहसील से 2 KM की दूरी पर बसा हुआ छोटा गांव है ।
गांव की स्थति अतीत में थोडी कमजोर थी लेकिन वर्तमान में अन्य स्वजातीय गांवों को विकास के मामले में कड़ी टक्कर दे रहा है।
लगभग सभी गांववासियों ने छाता में प्रॉपर्टी में इन्वेस्ट किया हुआ है ।
लगभग सभी गांववासियों ने छाता में प्रॉपर्टी में इन्वेस्ट किया हुआ है ।
कृषि के अलावा ट्रैक्टरों का बिजनैस भी विकास को नया आयाम देता है ।
इसकी गांव की 5 गांवों में होती है और वो गांव हैं खायरा, भदावल, नगरिया, खानपुर, बिजवारी ।
गांव के मेले का आयोजन …..
इसकी गांव की 5 गांवों में होती है और वो गांव हैं खायरा, भदावल, नगरिया, खानपुर, बिजवारी ।
गांव के मेले का आयोजन …..
10.नगरिया-
नगरिया गांव भी आगरा नहर से थोड़ा आगे छाता-बरसाना मार्ग पर स्थित है ।
उपगोत्रों के हिसाब से ‘दुरकी’ उपगोत्र के लोग यहाँ बहुसंख्यक हैं । जनसंख्या के लिहाज से यह 12 गांवों में सबसे छोटा गांव है ।
उपगोत्रों के हिसाब से ‘दुरकी’ उपगोत्र के लोग यहाँ बहुसंख्यक हैं । जनसंख्या के लिहाज से यह 12 गांवों में सबसे छोटा गांव है ।
लेकिन कृषि के मामले में यह गांव सभी गाँवों से ऊपर है । होली पर मनाया जाने मेला….
11.-बिजवारी-
बिजवारी गांव बरसाना-नंदगांव मार्ग पर स्थित है ।
मुख्य रोड़ से आपको करीब 3 KM चलना पड़ता है गांव की ओर । यह भी छोटा सा गांव है और “रौसरिया उपगोत्री” यहाँ के भूमियां हैं ।
गांव के पास में ही बहुत मनोहर तालाब है ।
बिजवारी गांव की सीमाएं गांव खायरा, नन्दगांव आदि गांवों से लगी हुई हैं ।
होली के उपलक्ष्य में आयोजित होने वाले मेलों में बिजवारी का मेला सबसे पहले फाल्गुन शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है जिसे ‘बिजवारी छठ मेला’ के नाम से भी पुकारते हैं ।
वृतांत के अनुसार बिजवारी नन्दगाँव से डेढ़ मील दक्षिण-पूर्व तथा खायरा गाँव से एक मील दक्षिण में स्थित है। इस स्थान का श्रीकृष्ण तथा बलराम से घनिष्ठ सम्बंध है। प्रसंग जब अक्रूर जी, बलराम और कृष्ण दोनों भाईयों को मथुरा ले जा रहे थे, तब यहीं पर दोनों भाई रथ पर बैठे थे। उनके विरह में गोपियाँ व्याकुल होकर एक ही साथ “हे प्राणनाथ!” ऐसा कहकर मूर्च्छित होकर भूतल पर गिर गईं। उस समय सब को ऐसा प्रतीत हुआ, मानो आकाश से विद्युतपुञ्ज गिर रहा हो। विद्युतपुञ्ज का अपभ्रंश शब्द ‘बिजवारी’ है। अक्रूर जी दोनों भाईयों को लेकर बिजवारी से पिसाई, सहार तथा जैंत आदि गाँवों से होकर अक्रूर घाट पहुँचे और वहाँ स्नान कर मथुरा पहुँचे। बिजवारी और नन्दगाँव के बीच में अक्रूर स्थान है, जहाँ शिलाखण्ड के ऊपर श्रीकृष्ण के चरण चिह्न हैं। सौभरि जी के मंदिर के जो महंत हैं वो उन्ही के वंशज “सौभरेय ब्राह्मण” ही हैं ।
मुख्य रोड़ से आपको करीब 3 KM चलना पड़ता है गांव की ओर । यह भी छोटा सा गांव है और “रौसरिया उपगोत्री” यहाँ के भूमियां हैं ।
गांव के पास में ही बहुत मनोहर तालाब है ।
बिजवारी गांव की सीमाएं गांव खायरा, नन्दगांव आदि गांवों से लगी हुई हैं ।
होली के उपलक्ष्य में आयोजित होने वाले मेलों में बिजवारी का मेला सबसे पहले फाल्गुन शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है जिसे ‘बिजवारी छठ मेला’ के नाम से भी पुकारते हैं ।
वृतांत के अनुसार बिजवारी नन्दगाँव से डेढ़ मील दक्षिण-पूर्व तथा खायरा गाँव से एक मील दक्षिण में स्थित है। इस स्थान का श्रीकृष्ण तथा बलराम से घनिष्ठ सम्बंध है। प्रसंग जब अक्रूर जी, बलराम और कृष्ण दोनों भाईयों को मथुरा ले जा रहे थे, तब यहीं पर दोनों भाई रथ पर बैठे थे। उनके विरह में गोपियाँ व्याकुल होकर एक ही साथ “हे प्राणनाथ!” ऐसा कहकर मूर्च्छित होकर भूतल पर गिर गईं। उस समय सब को ऐसा प्रतीत हुआ, मानो आकाश से विद्युतपुञ्ज गिर रहा हो। विद्युतपुञ्ज का अपभ्रंश शब्द ‘बिजवारी’ है। अक्रूर जी दोनों भाईयों को लेकर बिजवारी से पिसाई, सहार तथा जैंत आदि गाँवों से होकर अक्रूर घाट पहुँचे और वहाँ स्नान कर मथुरा पहुँचे। बिजवारी और नन्दगाँव के बीच में अक्रूर स्थान है, जहाँ शिलाखण्ड के ऊपर श्रीकृष्ण के चरण चिह्न हैं। सौभरि जी के मंदिर के जो महंत हैं वो उन्ही के वंशज “सौभरेय ब्राह्मण” ही हैं ।
12-खायरा गाँव-(सौभरेय ब्राह्मण समाज का सबसे बृहदगाँव)-
खायरा गाँव-(सौभरेय ब्राह्मण समाज का सबसे बृहदगाँव)-
गांव खायरा छाता-बरसाना मार्ग पर स्थित है । यह स्वजाति सौभरि ब्राह्मण समाज व अपने इस क्षेत्र का सब से बड़ा तख्त गॉंव है । इस गांव ने “12 गांवों की राजधानी” के नाम से प्रसिद्धी पायी हुई है । लगभग 12000 की जनसंख्या वाले इस गांव में होली के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला मेला ब्रज की अंतिम होली के दिन चैत्र कृष्ण पंचमी को मनाया जाता है जिसे रंगपंचमी के नाम से भी जाना जाता है । यहां पर होली के मेले का आयोजन मुख्य रूप से ‘पड़ाव’ जगह पर होता है । इस दिन क्षेत्र के विधायक व प्रशासन अधिकारी मौजूद रहते हैं । इस दिन 12 गांवों के अलावा आसपास के गांवों से भी लोगों का तांता लगा रहता है । अच्छे से अच्छी मनोहर झांकियां निकाली जाती हैं साथ में पुरूस्कृत भी किया जाता है । रात्रि को स्वांग, रसियादंगल, डांस कॉम्पिटिशन इत्यादि तरह के मनोहारी खेल होते हैं ।
यह ब्रज के १२ वनों में से एक है। यहाँ श्री कृष्ण-बलराम सखाओं के साथ तर-तरह की लीलाएं करते थे। यहाँ पर खजूर के बहुत वृक्ष थे। यहाँ पर श्री कृष्ण गोचारण के समय सभी सखाओं के साथ पके हुए खजूर खाते थे।यहाँ खदीर के पेड़ होने के कारण भी इस गाँव का नाम ‘खदीरवन’ पड़ा है। खदीर (कत्था) पान का एक प्रकार का मसाला है। कृष्ण ने बकासुर को मारने के लिए खदेड़ा था। खदेड़ने के कारण भी इस गाँव का नाम ‘खदेड़वन’ या ‘खदीरवन’ है।
गांव का नाम भगवान कृष्ण के गौरवशाली इतिहास से भी जुड़ा हुआ है । यहाँ पर ब्रज के प्रसिद्ध वनों में एक खदिरवन भी यहीं स्थित है । इसी वन में कंस द्वारा भगवान कृष्ण को मारने के लिए भेजे गये बकासुर राक्षस का वध स्वयं बाल कृष्ण ठाकुर जी ने किया था । बकासुर एक बगुले का रूप धारण करके श्रीकृष्ण को मारने के लिए इसी वन में पहुंचा था जहाँ कान्हा और सभी ग्वालबाल खेल रहे थे। तब बकासुर ने बगुले का रूप धारण कर कृष्ण को निगल लिया और कुछ ही देर बाद कान्हा ने उस बगुले की चौंच को चीरकर उसका वध कर दिया।
एक वृतांत के अनुसार उस समय बकासुर की भयंकर आकृति को देखकर समस्त सखा लोग डरकर बड़े ज़ोर से चिल्लाये ‘खायो रे ! खायो रे ! किन्तु कृष्ण ने निर्भीकता से अपने एक पैर से उसकी निचली चोंच को और एक हाथ से ऊपरी चोंच को पकड़कर उसको घास फूस की भाँति चीर दिया। सखा लोग बड़े उल्लासित हुए।
‘खायो रे ! खायो रे !’ इस लीला के कारण इस गाँव का नाम ‘खायारे’ पड़ा जो कालान्तर में ‘खायरा’ हो गया।
‘खायो रे ! खायो रे !’ इस लीला के कारण इस गाँव का नाम ‘खायारे’ पड़ा जो कालान्तर में ‘खायरा’ हो गया।
ओमन सौभरि भुर्रक, भरनाकलां, मथुरा
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