इक्कीसवीं सदी का समाज, “कहां है, कैसा है, कैसा बनने वाला है, कहां पहुँचने वाला है” यह एक विशद विषय था लेकिन इस सदी ने समाज में “नवजागरण का सूत्रपात” किया । जाति संसार के आधुनिक शिक्षा से प्रभावित लोगों ने सामाजिक रचना, रीति-रिवाज व परम्पराओं को तर्क की कसौटी पर कसना आरम्भ कर स्वजनों में एक प्रबल राष्ट्रीय चेतना को जन्म दिया तथा यह चेतना उत्तरोत्तर बलवती होती गई और और धीरे -धीरे ये सामाजिक तथा परंपरागत सुधारों मे नियोजित हो गई। इस शिक्षा के प्रभाव में आकर ही स्वजनों ने अन्य जातिगत सभ्यता और रीति-रिवाज के बारे में ढेर सारी जानकारियाँ एकत्र कीं तथा ‘अपनी सभ्यता से अन्य समाजों क़ी तुलना’ कर सच्चाई को जाना। इन समाज सुधारकों में एक संस्था “अखिल भारतीय सौभरेय ब्राह्मण संघ ” ने अहम् भूमिका निभायी है | इसे ‘प्रगतिशील समाज के निर्माण का उद्देश्य’ के लिए सामने रखा गया, जिससे समाज में पनपी समस्याओं, अन्धविश्वासों, कुरीतियों का निराकरण होकर स्वजनों का एकीकरण जाए। फलतः इसके अन्तर्गत कृषि मे विकास, शिक्षा में प्रगति, स्वास्थ्य व पोषण में विकास, स्त्रियों की दशा में सुधार, वैवाहिक स्थिति में सुधार आदि जैसे महत्वपूर्ण कार्य हुए। यह एक समाज की वो माला है जो बीजरूपी स्वजनों को पिरोये हुए है | निश्चित ही नई सदी में बहुत सारी चीजें काफी चमकदार दिख रहीं है। बीस साल या पचास साल पहले के मुकाबले समाज काफी आगे दिखाई दे रहा है। यहाँ पर कुछ ऐसे घटक हैं जिन्होंने पुनर्जागरण क्रांति को सफल बनाने की कोशिश की है । वैसे कृषि हमारे मूल व्यवसायों में से एक हैं,रीढ़ कि हड्डी है ।
1- सौभरेय शूरमाओं को समय-समय पर सम्मानित करना जिन्होंने सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, साहित्य, कला, संस्कृति इत्यादि क्षेत्रों में योगदान दिया हो ।
2- 10th,12th कक्षा के मेधावी छात्रों के साथ-साथ राजकीय व केंद्रीय नौकरियों में जगह बनाने वाले बच्चों को पुरस्कृत करना ।
3- समस्त सौभरि ब्राह्मण समाज को एक वेबसाइट के जरिये सेंट्रलाइज्ड करना व वैबफॉर्म के जरिये डेटा एकत्रित करना जिसमें आने वाला नया स्वजन यूजर नाम, नम्बर, मेल आइडी,स्थान व उपगोत्र का विवरण भर सकें ।
4- मासिक व वार्षिक पत्रिकाओं का प्रकाशन { सौभरेय दर्पण पत्रिका} व गांवों को छोड़कर शहरों की ओर पलायन किये हुए लोगों द्वारा होलीमिलन समारोह का आयोजन ।
5- समाज में व्याप्त कुरीतियां व रुढियों का उन्मूलन जैसे, दहेजप्रथा, बालविवाह, अशिक्षा क्योंकि अशिक्षित व रुढियों में जकड़ा हुआ समाज कभी भी विकास नहीं कर सकता ।
6- क्षेत्रीय स्तर पर ब्लड डोनेशन, आँखों के ऑपरेशन इत्यादि के लिये चिकित्सीय कैम्प लगवाना
7- प्रांतीय प्रतिनिधि सम्मान समारोह एवं परिचय सम्मेलन ।
8- ब्रह्मा जी लेकर सौभरि जी व आज के अपने स्वसमाज तक के ऊपर एक डॉक्यूमेंट्री तैयार करवाना ।
9- दाऊजी मन्दिर अथवा गोवर्धन कुन्ज में पुस्तकालय की व्यवस्था व स्वसमाज की बहुमूल्य रचनाओं व वस्तुओं के संग्रह के लिये 'मिनी संग्रहालय का निर्माण' ।
10- "अखिल भारतीय सौभरेय ब्राह्मण" सर्वसमाज का वार्षिक सम्मेलन का आयोजन करवाना ।
11- मृत्युभोज पर पूर्णतया प्रतिबंध एवं सामूहिक विवाह सम्मेलन ।
12- सामुदायिक भवन, धर्मशाला व समाज की विरासतों की देखभाल के लिये जन-जन की भागीदारी करवाना ।
13- किसान गौरव सम्मान
14- स्वसमाज के विद्वानों, पुरोहितों व भागवताचार्य को सम्मानित करना ।
तीनों प्रदेशों(उत्तरप्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश) के अंतर्गत आने वाले सभी स्वसमाज के गाँवों से ऐसे प्रतिभावान जो डॉक्टर, इंजीनियर, छात्र-छात्राएं, कलाकार, संगीतकार, खिलाड़ी, बिजनेसमैन, समाजसेवी, अध्यापक, प्रशासनिक अधिकारी जिन्होंने कड़ी मेहनत कर अपने परिवार व समाज का नाम रोशन किया है । हम उनके लग्न, संघर्ष, अचीवमेंट्स आदि आपके समक्ष इस पेज के माध्यम से रखने की कोशिश करेंगे ताकि नई पीढ़ी के बच्चे व युवा उनसे प्रेरित होकर अपने परिवार व समाज का नाम रोशन कर पाएं ।
वैसे "प्रतिभा" परिचय की मोहताज नहीं होती है । एक प्रतिभाशाली व्यक्ति में एक, दो, कम और अक्सर कई क्षेत्रों के बारे में उच्च क्षमता होती है। किसी भी समाज के उत्थान की पहली सीढ़ी 'हौसला अफजाई का एकजुट समर्थन' है, क्योंकि उसी हौसले से समाज की युवा पीढ़ी के लोग ही हर क्षेत्र में प्रगति कर सकते हैं। किसी भी व्यक्ति की प्रगति उसके परिवार व समाज पर बहुत निर्भर करती है। इसलिए बच्चों को वो सुविधाएं प्रदान करें जो जरूरतन हों ताकि वे हर क्षेत्र में आगे बढ़ें। सच्ची प्रतिभा जल एवं वायु के वेग की भाँति होती है कोई कितना भी प्रतिबंधित करे कभी न कभी, कहीं न कहीं से बाहर आ ही जाती है । ऐसे हमारे स्वसमाज के होनहारों को समाज से परिचित कराने की जरूरत है। इससे प्रतिभावानों व समाज का सीना गर्व से चौड़ा होता है और हौसला दोगुना । समाज इनके सपने और इनके हौसलों की उड़ान को सम्मान देकर पंख लगाने जैसा काम कर सकता है।
आप सभी स्वजनों से अनुरोध है कि आप अपने-अपने गांव से ऐसी प्रतिभाओं को चिन्हित करें व उनके नाम भेजें ताकि उन प्रतिभाओं को आप सबसे रूबरू करा सकें। वो प्रतिभावान आप में से भी कोई भी हो सकता है।
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समाज के तीनों अक्षरों के मेल से बनता है "सभ्य मानव जगत" और इन्हीं तीनों शब्दों का सूक्ष्म रूप है 'समाज' और इसमें भी एक समाज की छोटी इकाई 'स्वसमाज' जो कि अपने लोगों का ऐसा समूह होता है जो बाहर के लोगों के मुकाबले अपने लोगों से काफी ज्यादा मेलजोल रखता है। किसी स्वसमाज के अंतर्गत आने वाले व्यक्ति एक दूसरे के प्रति परस्पर स्नेह तथा सहृदयता का भाव ज्यादा रखते हैं। दुनिया के सभी समाज अपनी एक अलग पहचान बनाते हुए अलग-अलग रस्मों-रिवाज़ों का पालन करते हैं। एक ही समाज लोग अन्य प्रदेशों में निवास करने के बाद भी इनके रहन-सहन, वेश-भूषा, याज्ञिक अनुष्ठानों व पूजा प्रचलन, खान-पान, बोलीभाषा आदि मिलती जुलती प्रतीत होती हैं । समाज के अंदर मनाये जाने वाले त्योहार समाज के परिवारों के मिलन के बीच की कड़ी होते हैं । यदि यूं कहें कि इस मिलन से पारिवारिक और सामाजिक सामंजस्य बढ़ता है तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी । स्वसमाज द्वारा की गई इस पहल से समाज को एक मंच पर लाया जा सकता है और इससे सामाजिक व पारिवारिक रिश्तों की कड़ी और अधिक मजबूत होगी ।
रोजगार की तलाश में आज गांवों से हर कोई पलायन कर शहरों में बसता जा रहा है हमारा समाज भी इस पलायन से अछूता नहीं है । अच्छे रोजगार,बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा व्यवस्था व अच्छे रहन सहन की सुविधाओं के लिए समाज के लोग भी शहरों में बस रहे है चूँकि गांवों की अपेक्षा शहरों में जातीय समाज के लोगों से मिलना जुलना सीमित रहता है, रिश्तेदारों से भी थोड़ी दूरियां बन जाती है और सबसे ज्यादा परेशानी तब आती है जब बच्चे बड़े होकर रिश्ते करने लायक हो जाते है ऐसे में सीमित संपर्कों के चलते रिश्ते तलाशने और भी मुश्किल हो जाते हैं । वैसे भी हर व्यक्ति इस सम्बन्ध में अपने पारिवारिक सदस्यों व रिश्तेदारों पर निर्भर रहता है जिनका भी दायरा सीमित होता है । कई बार किसी का बच्चा उतना पढ़ा लिखा होता है कि उसके लिए जीवन साथी की तलाश अपने सीमित दायरे में करना बहुत मुश्किल हो जाता है । समाज को ऐसी ही मुसीबतों से निजात दिलाने के लिए एक सौभरेय ब्राह्मण वैवाहिक वेब साईट की शुरुआत की जरुरत है। इस वेब साईट में अपने बच्चों को रजिस्टर कर उनके लायक प्रोफाइल देखकर रिश्ते के लिए पसंद की प्रोफाइल के बच्चे के परिजनों से संपर्क कर रिश्ता किया जा सकता है । इस वेब साईट की सहायता से समाज के योग्य युवाओं के लिए योग्य वर तलाशने का जरुरी व महत्तवपूर्ण मंच साबित होगा ।
आज समाज में रीतिरिवाज, अन्धविश्वास, अशिक्षा, दहेजप्रथा, बालविवाह, गरीबी, अधिकारों का हनन, शोषण, कुरीतियाँ, दिखावा आदि बुराइयों का बोलबाला जगह-जगह दिखाई पड़ ही जाता है। ये सभी कारक समाज के विकास में बाधक हैं। इन बुराइयों के प्रसार में हम सब जिम्मेदार हैं शायद यह कहना गलत नहीं होगा क्योंकि जब तक दिखावा-प्रदर्शन व सामाजिक कुरीतियों पर रोक नहीं लगेगी तब तक सामाजिक बुराइयों का निर्मूलन नहीं होगा और इससे समाज के सर्वांगीण विकास का जो सपना है वो महज एक सपना ही बना रहेगा। मुद्दों की जानकारी फैलाने के लिए आप सोशल मीडिया का यूज कर सकते हैं। जानकारी भरे आर्टिकल्स पोस्ट करें, आप जो भी कुछ कर रहे हैं, उसके बारे में लिखें ।
आयोजित होने वाले स्वसमाज कार्यक्रमों को अटेंड करने, सपोर्ट तथा फंड डोनेट करने के लिए अपने फ्रेंड्स को बुलाएँ। फेसबुक, ट्विटर, इन्स्टाग्राम आदि ये सभी शुरुआत करने के लिए काफी अच्छे प्लेटफॉर्म साबित होंगे। आप स्वसमाज द्वारा किए जाने वाले कामों को सपोर्ट करने के लिए मौजूदा NGO व चैरिटी को ऑनलाइन मनी डोनेट कर सकते हैं, हालांकि ऐसा करने से पहले, एक बार आपको उनके द्वारा इन पैसों को खर्च करने के तरीकों के ऊपर रिसर्च जरूर कर लें । आप चाहें तो सीधे NGO व चैरिटी द्वारा किये गए शोशलफंडिंग का जायज़ा लेने स्वयं भी उन जगहों पर जा सकते हो जहाँ पर ये काम कर रहे हैं और वहाँ देखें कि उनके पास में इस फंड को यूज करने के सारे प्लान्स तैयार हैं या नहीं। अक्सरकर लोग पैसे को इस्तेमाल करने तरीके को जाने बिना आपको ऐसे ही पैसे नहीं दे देंगे। स्वसमाज की स्वयंसेवी संस्थाएँ एक लंबे से अग्रणी भूमिका निभाती रही हैं इन्होंने जनता के प्रति सेवा, सरोकार और घनिष्ठता के उत्कृष्ट गुणों का परिचय दिया है। इसके अलावा नये कार्यक्रमों को प्रारम्भ करने एवं उनका सफलतापूर्वक क्रियान्वयन करने की क्षमता भी दर्शाई है ।
समाज में रहने वाले लोगों के अनुभव सकारात्मक बदलाव लाने के लिए बेहद जरूरी हैं । व्यक्ति समाज को बनाने-बिगाड़ने की तो खूब बातें करता है लेकिन बड़ी विडम्बना है कि खुद को छोडकर पूरा समाज बदल देना चाहता है। समाज को तभी बदला जा सकता है जब हमारी मानसिकता बदलेगी।
किसी भी समाज के उत्थान के लिए सबसे महत्वपूर्ण तीन चीजें है जो निम्न लिखित हैं-
1- समय 2 - परिश्रम 3- धन
अगर आप 24 घंटे में से 1 घंटे का भी समय निकल कर अपने समाज के लोगों से फ़ोन के माध्यम से, फेसबुक के माध्यम से, पत्राचार से या फिर अधिक समय मिले तो समाज के लोगों से मिलकर के समाज के बारे में चर्चा कर सकते हैं ।
परिश्रम का अर्थ है कि एक वर्ष में कम से कम एक बार तो हम अपने समाज के लोगों से मिलने दूसरे जिलों या प्रदेशों में जाकर सम्मेलन या बैठक के जरिये लोगों से संवाद करें, और ये हो सकता है । यदि हम यही सोचेंगे कि समाज के लिए कौन दौड़ धूप करे तो हमें कुछ भी हासिल नहीं होगा |
यह तो आप सभी भलीभांति जानते ही हैं कि किसी भी संगठन को मजबूत बनाने के लिए धन की आवश्यकता बहुत जरूरी है और आपका कर्तव्य है कि अपने सामाजिक संगठन को मासिक या सालाना आर्थिक मदद ज़रूर करें । अपने रोज़ के खर्चे में से मात्र 1₹ बचा के यदि जोड़ें तो वर्ष में 365 दिन होते हैं 1 रूपये के हिसाब से यह धनराशि पप्रति व्यक्ति द्वारा 365 रूपये हो जाती है जो कि सामाजिक सहयोग के लिए काफी मददगार साबित होगी । समाज के उत्थान के लिए हमें मिलकर आगे आना होगा 'विकास मुहिम' की इस आवाज को मजबूत व बुलन्द करना होगा, तभी हम सार्थक परिणाम ला सकते हैं।
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🌷स्वसमाज के लिए बहुत से विचार अक्सरकर मन में आते हैं। ऐसे सैकड़ों प्रश्न हैं जिन पर आप अपनी राय दे सकते हैं जो निम्नलिखित हैं-
1- क्या समाज की कार्यकारिणी में सदस्य केवल समाज के सम्मानित एवं वरिष्ठ व्यक्ति होने चाहिए?
2- क्या सामाजिक सोच केवल एक उम्रदराज व्यक्ति की ही है ?
3- क्या समस्त जिलेवार इकाईयों को कम से कम वर्ष में एक बार कार्यकारिणी की बैठक आवश्यक करनी चाहिए ?
3- क्या समाज को मजबूत बनाने के लिए सामाजिक संगठन बनाना आवश्यक है?
4- क्या स्वसमाज में ऐसे किसी सामाजिक संघठन की वास्तव में आवश्यकता है जो समाज के नैतिक मूल्यों की परवाह व रीति रिवाजों की देख-रेख करे?
5- क्या अलग-अलग संघठन से समाज में कुछ फायदा हो सकता है?
6-क्या हम सभी समाज के बारे में गम्भीर हैं ?
सामाजिक कार्यो का एक समग्र मॉडल होना चाहिए, जिससे बेहतर परिणाम प्राप्त हो सके और समाज का हित हो?
7- क्या ऐसा सामाजिक फॉरम होना चाहिए जिससे समाज के बच्चे-बच्चे को सामाजिक जानकारियाँ समय-समय पर प्राप्त होती रहें?
8- क्या हमारा समाज एक मंच पर एकत्रित हो सकता है?
9- क्या स्कूलों, धर्मशालाओं के निर्माण से समाज को लाभ है?
10- क्या आज तक सभी समाज के लोग स्वसमाज के लिये हितचिंतक नहीं थे?
11- क्या समाज में वही व्यक्ति समाज के लिए कार्य कर सकता है जिसका घर में जिम्मेदारी का भार कम है?
12- क्या समाज की युवा पीढ़ी समाज के बारे में भलीभांति जानती है?
क्या अलग-अलग सोच और द्वेष से समाज कभी हट पायेगा?
13-क्या आज के डिजिटल जमाने में सोशल मीडिया के के जरिये घर पर बैठे-बैठे समाज को नई दिशा दे सकते हैं ?
14- क्या आज अस्तित्व में कोई ऐसा सामाजिक संघठन हैं जिनकी समाज को जरूरत है?
15- क्या कोई भी ऐसा व्यक्ति समाज में नहीं है जो कि समाज को एक विचार और नियम के सूत्र में बाँध के रख सके?
16- क्या अखिल स्वसमाज को नियंत्रण करने वाली कार्यकारिणी व प्रणाली है जो समाज को सही दिशा में ले जा सके ?
17- क्या समाज के कार्यकर्ता एक सामाजिक न हो कर सिर्फ दिखावटी रह गए हैं ?
18- क्या ऐसा व्यक्ति जो समाज के नियमों का उल्लंघन करे वो सामाजिक नहीं हो सकता?
क्या स्वसमाज की संस्था या कमैटी की देख-रेख में सामाजिक गतिविधि का संचालन होना चाहिए ?🌷
साभार: पंडित ओमन सौभरि भुर्रक, मथुरा (उत्तर प्रदेश) ।
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