Saturday, 8 February 2020

दाऊजी मंदिर व बल्देव नगरी



श्रीकृष्ण के बडे भईया व ब्रज के राजा बलदाउ जी की नगरी बल्देव मथुरा जनपद में ब्रजमंडल के पूर्वी छोर पर स्थित है। मथुरा से 21 कि०मी० दूरी पर एटा-मथुरा मार्ग के मध्य में स्थित है। गोकुल एवं महावन जो कि पुराणों में वर्णित वृहदवन के नाम से विख्यात हैं, इसी मार्ग पर पड़ते हैं। यह स्थान पुराणोक्त विद्रुमवन के नाम से निर्दिष्ट है। यहाँ पर गोस्वामी श्री कल्याण देवाचार्य जी वंशज श्री दाऊजी के सेवा करते हैं । ये सभी ब्राह्मण ब्रह्मर्षि सौभरि जी संतान हैं और अंगिरस इनका गोत्र है
इनके अपने स्वसमाज में 50 आस्पद हैं जिनमें उपगोत्र तगारे यहाँ के सेवायत हैं जिनको पंडा जी कहकर पुकारते हैं ।



दाऊजी के मंदिर में दाऊ बाबा की अत्यन्त मनोहारी विशाल प्रतिमा एवं उनकी सहधर्मिणी ज्यौंतिस्मती "रेवती जी" का विग्रह है। यह एक विशालकाय देवालय है जो कि एक दुर्ग की भाँति सुदृढ प्राचीरों से आवेष्ठित है। मन्दिर के चारों ओर सर्प की कुण्डली की भाँति परिक्रमा मार्ग में एक पूर्ण पल्लवित बाज़ार है। इस मन्दिर के चार मुख्य दरवाजे हैं, जो क्रमश: सिंहचौर, जनानी ड्योढी, गोशालाद्वार या बड़वाले दरवाज़े के नाम से जाने जातेहैं। मन्दिर के पीछे एक विशाल कुण्ड है जो कि बलभद्रकुण्ड के नाम से पुराणों में वर्णित है। इसे क्षीरसागर के नाम से  भी पुकारते हैं।



श्री हलधर दाऊजी का मूर्तिरूप- बृजराज दाउजी की मूर्ति देवालय में पूर्वाभिमुख 2 फुट ऊँचे संगमरमर के सिंहासन पर स्थापित है। पौराणिक आख्यान के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के पौत्र श्रीवज्रनाभ ने अपने पूर्वजों की पुण्यस्मृति में तथा उनके उपासना क्रम को संस्थापित करने हेतु 4 देवविग्रह तथा 4 देवियों की मूर्तियाँ स्थापित की थीं जिन में से श्रीबलदेवजी का यही विग्रह है जो कि द्वापरयुग के बाद कालक्षेप से भूमिस्थ हो गया था। पुरातत्ववेत्ताओं का मत है यह मूर्तिपूर्व कुषाण कालीन है जिसका निर्माण काल 2 सहस्र या इससे अधिक होना चाहिये। ब्रजमण्डल के प्राचीन देवस्थानों में यदि श्रीबलदेव जी विग्रह को प्राचीनतम कहा जाय तो कोई अत्युक्ति नहीं। ब्रज के अतिरिक्त शायद ही कहीं इतना विशाल वैष्णव श्रीविग्रह दर्शन को मिलें। यह मूर्ति क़रीब 8 फुट ऊँची एवं साढे तीन फुट चौडी श्याम वर्ण की है। पीछे शेषनाग सात फनों से युक्त मुख्य मूर्ति की छाया करते हैं। मूर्ति नृत्यमुद्रा में है, दाहिना हाथ सिर से ऊपर वरद मुद्रा में है एवं बाँये हाथ में चषक है। विशाल नेत्र, भुजाएं-भुजाओं में आभूषण, कलाई में कंडूला उत्कीर्णित हैं। मुकट में बारीक नक्काशी का आभास होता है पैरों में भी आभूषण प्रतीत होते हैं तथा कटि में धोती पहने हुए हैं मूर्ति के कान में एक कुण्डल है तथा कण्ठ में वैजन्ती माला उत्कीर्णित हैं। मूर्ति के सिर के ऊपर से लेकर चरणों तक शेषनाग स्थित है। शेषनाग के तीन वलय हैं जो कि मूर्ति में स्पष्ट दिखाई देते हैं और योग शास्त्र की कुण्डलिनी शक्ति के प्रतीक रूप हैं क्योंकि पौराणिक मान्यता के अनुसार बलदेव जी शक्ति के प्रतीक योग एवं शिलाखण्ड में स्पष्ट दिखाई देती हैं जो कि सुबल, तोष एवं श्रीदामा सखाओं की हैं।


बलदेव जी के सामने दक्षिण भाग में दो फुट ऊँचे सिंहासन पर रेवती जी की मूर्ति स्थापित हैं जो कि बलदेव जी के चरणोन्मुख है और रेवती जी के पूर्ण सेवा-भाव की प्रतीक है। यह मूर्ति क़रीब पाँच फुट ऊँची है। दाहिना हाथ वरदमुद्रा में तथा वाम हस्त क़मर के पास स्थित है। इस मूर्ति में भी सर्पवलय का अंकन स्पष्ट है। दोनों भुजाओं में, कण्ठ में, चरणों में आभूषणों का उत्कीर्णन है। उन्मीलित नेत्रों एवं उन्नत उरोजों से युक्त विग्रह अत्यन्त शोभायमान लगता हैं। सम्भवत: ब्रजमण्डल में बलदेव जी से प्राचीन कोई देव विग्रह नहीं।
 ऐतिहासिक प्रमाणों में चित्तौड़ के शिलालेखों में जो कि ईसा से पाँचवी शताब्दी पूर्व के हैं, बलदेवोपासना एवं उनके मन्दिरों की भी पुष्टि हुई है। अर्पटक, भोरगाँव नानाघटिका के शिला लेख जो कि ईसा के प्रथम द्वितीय शाताब्दी के हैं, जुनसुठी की बलदेव मूर्ति शुंगकालीन है तथा यूनान के शासक अगाथोक्लीज की चाँदी की मुद्रा पर हलधारी बलराम की मूर्ति का अंकन सभी “बलदेव जी की पूजा उपासनाऐं वंजनमान्यओं के प्रतीक” हैं।

मूर्तिकाप्राकट्य का घटनाकाल- बलदेव मूर्ति के प्राकट्य का भी एक बहुत रोचक इतिहास है। 16वीं शताब्दी में मुग़ल साम्राज्य का प्रतिष्ठा सूर्य मध्यान्ह में था। अकबर अपने भारीश्रम, बुद्धि चातुर्य एवं युद्ध कौशल से एक ऐसी सल्तनत की प्राचीर के निर्माण में रत था जो कि उस के कल्पनालोक की मान्यता के अनुसारक भी न ढहें और पीढी-दर-पीढी मुग़लिया ख़ानदान हिन्दुस्तान की सरज़मीं पर निष्कंटक अपनी सल्तनत को क़ायम रखकर गद्दी एवं ताज का उपभोग करते रहें।






मुगल काल में मन्दिर की दशा- उस धर्माद्वेषी शंहशाह औरंगजेब का मात्र संकल्प समस्त हिन्दूदेवी-देवताओं की मूर्तिभंजन एवं देवस्थान को नष्ट-भ्रष्ट करना था। एक बार जब वह मथुरा के केशवदेव मन्दिर एवं महावन के प्राचीनतम देवस्थानों को नष्ट-भ्रष्ट करता आगे बढा तो उसने बलदेव जी की ख्याति सुनी व निश्चय किया कि क्यों न इस मूर्ति को तोड़ दिया जाय फलत: मूर्ति भंजनी सेना को लेकर आगे बढ़ा। कहते हैं कि सेना निरन्तर चलती रही जहाँ भी पहुँचते बलदेव की दूरी पूछने पर दो कोस ही बताई जाती जिससे उसने समझा कि निश्चय ही बल्देव कोई चमत्कारी देवविग्रह है, किन्तु अधमोन्मार्द्ध सेना लेकर बढ़ता ही चला गया जिसके परिणाम-स्वरूप कहते हैं कि भौरों और ततइयों (बेर्रा) का एक भारी झुण्ड उसकी सेना पर टूट पडा जिससे सैकडों सैनिक एवं घोडे आहत होकर काल कवलित हो गये। औरंगजेब ने स्वीकार किया देवालय का प्रभाव और शाही फ़रमान जारी किया जिसके द्वारा मंदिर को 5 गाँव की माफी एवं एक विशाल नक्कार खाना निर्मित कराकर प्रभु को भेंट किया एवं नक्कार खाना की व्यवस्था हेतु धन प्रतिवर्ष राजकोष से देने के आदेश प्रसारित किया। वहीं नक्कार खाना आज भी मौजूद है और यवन शासक की पराजय का मूक साक्षी है।

इसी फरमान-नामे का नवीनीकरण उसके पौत्र शाहआलम ने सन् 1796 फसली की ख़रीफ़ में दो गाँव और बढ़ा कर यानी 7 गाँव कर दिया जिनमें खड़ेरा, छवरऊ, नूरपुर, अरतौनी, रीढ़ा आदि जिसको तत्कालीन क्षेत्रीय प्रशासक (वज़ीर) नज़फखाँ बहादुर के हस्ताक्षर से शाही मुहर द्वारा प्रसारित किया गया तथा स्वयं शाहआलम ने एक पृथक्से आदेश चैत्र सदी 3 संवत 1840 को अपनी मुहर एवं हस्ताक्षर से जारी किया। शाह आलम के बाद इस क्षेत्र पर सिंधिया राजवंश का अधिकार हुआ। उन्होंने सम्पूर्ण जागीर को यथा स्थान रखा एवं पृथक्से भोग राग माखन मिश्री एवं मंदिर के रख-रखाव के लिये राजकोष से धन देने की स्वीकृति दिनाँक भाद्रपद-वदी चौथ संवत 1845 को गोस्वामी कल्याण देव जी के पौत्र गोस्वामी हंसराज जी, जगन्नाथ जी को दी। यह सारी जमींदारी आज भी मंदिर श्री दाऊजी महाराज एवं उनके मालिक कल्याण वंशज, जो कि मंदिर के पण्डा पुरोहित कहलाते हैं, उनके अधिकार में है।

मुग़लकाल में एक विशिष्ट मान्यता यह थी कि सम्पूर्ण महावन तहसील के समस्त गाँवों में से श्री दाऊजी महाराज के नाम से पृथक्देव स्थान खाते की माल गुजारी शासन द्वारा वसूल कर मंदिर को भेंट की जाती थी, जो मुगल काल से आज तक “शाही ग्रांट” के नाम से जानी जाती हैं, सरकारी खजाने से आज तक भी मंदिर को प्रति वर्ष भेंट की जाती है।

ब्रिटिश शासन काल में मंदिर- इसके बाद फिरंगियों का जमाना आया। ब्रज का यह मन्दिर सदैव से ही देश-भक्तों के जमावड़े का केन्द्र रहा और उनकी सहायता एवं शरण-स्थल का एक मान्य-स्रोत भी। जब ब्रिटिश शासन को पता चला तो उन्होंने मन्दिर के मालिका पण्डों को आगाह किया कि वे किसी भी स्वतन्त्रता प्रेमी को अपने यहाँ शरण न दें परन्तु आत्मीय सम्बन्ध एवं देश के स्वतन्त्रता प्रेमी मन्दिर के मालिकों ने यह हिदायत नहीं मानी, जिस से चिढ़कर अंग्रेज शासकों ने मन्दिर के लिये जो जागीरें भूमि एवं व्यवस्थाएं पूर्वशाही परिवारों से प्रदत्त थी उन्हें दिनाँक 31 दिसम्बरसन् 1841 को स्पेशल कमिश्नर के आदेश से कुर्की कर जब्त कर लिया गया और मन्दिर के ऊपर पहरा बिठा दिया जिस से कोई भी स्वतन्त्रता प्रेमी मन्दिर में न आ सके परन्तु किले जैसे प्राचीरों से आवेष्ठित मन्दिर में किसी दर्शनार्थी को कैसे रोक लेते? अत: स्वतन्त्रता संग्रामी दर्शनार्थी के रूप में आते तथा मन्दिर में निर्बाध चलने वाले सदावर्त एवं भोजन व्यवस्था का आनन्द लेते ओर अपनी कार्य-विधि का संचालन करके पुन:अपने स्थान को चले जाते। अत: प्रयत्न करने के बाद भी गदर प्रेमियों को शासन न रोक पाया।

बलभद्र कुंड (क्षीरसागर)- वैसे बलदेव में मुख्य आकर्षण श्री दाऊजी का मंदिर है किन्तु इसके अतिरिक्त क्षीर सागर तालाब जो कि क़रीब 80 गज चौड़ा 80 गज लम्बा है।जिसके चारों ओर पक्के घाट बने हुए हैं जिसमें हमेशा जल पूरित रहता है उस जल में सदैव जैसे दूध पर मलाई होती है उसी प्रकार काई (शैवाल) छायी रहती है। दशनार्थी इस सरोवर में स्नान आचमन करते हैं,पश्चात दर्शन को जाते हैं।

पर्वोत्सव- बलदेव छठ  व चैत्र कृष्ण द्वितीया को दाऊजी का हुरंगा जो कि ब्रजमंडल के होली उत्सव का मुकुटमणि है, अत्यन्त सुरम्य एवं दर्शनीय हैं और इसे बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है ।। चैत्र कृष्ण रंगपंचमी को होली उत्सव के बाद 1 वर्ष के लिये इस मदन-पर्व को विदायी दी जाती है। वैसे तो बलदेव में प्रतिमाह पूर्णिमा को विशेष मेला लगता है फिर भी विशेष कर चैत्रपूर्णिमा, शरदपूर्णिमा, मार्गशीर्ष पूर्णिमा एवं देवछट को भारी भीड़ होती है। इसके अतिरिक्त वर्ष-भर हजारों दर्शनार्थी प्रतिदिन आते हैं।भगवान विष्णु के अवतारों की तिथियों को विशेष स्नान भोग एवं अर्चना होती है तथा 2 बार स्नान श्रृंगार एवं विशेष भोग राग की व्यवस्था होती है। यहाँ का मुख्य प्रसाद माखन एवं मिश्री है तथा खीर का प्रसाद, जो कि नित्य भगवान ग्रहण करते हैं ।

दर्शन का समयक्रम- यहाँ दर्शन का क्रम प्राय: गर्मी में अक्षय तृतीया से हरियाली तीज तक प्रात: 6 बजे से 12 बजे तक दोपहर 4 बजे से 5 बजे तक एवं सायं 7 बजे से 10 तक होते हैं। हरियाली तीज से प्रात: 6 से 11 एवं दोपहर 3-4 बजे तक एवं रात्रि 6-1/2 से 9 तक होते हैं।


यहाँ की विशेषताएं-  समय पर दर्शन, एवं उत्सवों के अनुरूप यहाँ की समाज को गाय की अत्यन्त प्रसिद्ध है। यहाँ की साँझीकला जिसका केन्द्र मन्दिर ही है जो कि अत्यन्त सुप्रसिद्ध है। बलदेव नगरी के लोगों में पट्टेबाजी का, अखाड़ेबन्दी (जिसमें हथियार चलाना लाठी भाँजना आदि) का बड़ा शौक़ है समस्त मथुरा जनपद एवं पास-पड़ौसी जिलों में भी यहाँ का `काली का प्रदर्शन' अत्यन्त उत्कृष्ट कोटि का है। बलदेव के मिट्टी के बर्तन बहुत प्रसिद्ध हैं। यहाँ का मुख्य प्रसाद माखन मिश्री तथा श्री ठाकुर जी को भाँग का भोग लगने से यहाँ प्रसाद रूप में भाँग पीने के शौक़ीन लोगों की भी कमी नहीं। भाँग तैयार करने के भी कितने ही सिद्धहस्त-गुरु हैं । यहाँ की समस्त परम्पराओं का संचालन आज भी मन्दिर से होता है। यदि सामंती युग का दर्शन करना हो तो आज भी बलदेव में प्रत्यक्ष हो सकता है। आज भी मन्दिर के घंटे एवं नक्कारखाने में बजने वाली बम्ब की आवाज से नगर के समस्त व्यापार व्यवहार चलते हैं।

यहाँ पर दर्शनार्थ के लिये आने वाले महापुरुष-
                  जीर्णोद्धार से पहले का दृश्य

महामना मालवीय जी, पं०मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, मोहनदास करमचन्दगाँधी (बापू) माता कस्तूरबा, राष्ट्रपति डॉ०राजेन्द्रप्रसाद, राजवंशी देवीजी, डॉ०राधाकृष्णजी, सरदार बल्लभभाई पटेल, मोरारजी देसाई, दीनदयाल जी उपाध्याय, जैसे श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ, भारतेन्दु बाबू हरिशचन्द्रजी, हरिओमजी, निरालाजी, भारत के मुख्यन्यायाधीश जस्टिस बांग्चू ,के०एन० जी जैसे महापुरुष बलदेव दर्शनार्थ आ चुके हैं |


ओमन सौभरि भुर्रक, भरनाकलां, मथुरा


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सौभरेय ब्राह्मण समाज के उपगोत्रों का वर्णन
महर्षि सौभरि जी का काव्य के माध्यम से वर्णन

Thursday, 16 January 2020

महर्षि सौभरि जी ने राजा मान्धाता को यमुना मैया के 1000 नाम इस प्रकार बताये ।

महर्षि सौभरि वर्णन- श्रीविष्णुमहापुराणे चतुर्थांशो! द्वितीयोऽध्यायः २


🌹श्रीपराशर उवाच - 
यावच्च ब्रह्मलोकात्स ककुद्मी रैवतो नाभ्येति तावत्पुण्यजनसंज्ञा राक्षसास्तामस्य पुरीं कुशस्थलीं नजघ्नुः १
तच्चास्य भ्रातृशतं पुण्यजनत्रासाद्दिशो भेजे २
तदन्वयाश्च क्षत्रियास्सर्वदिक्ष्वभवन् ३
वृष्टस्यापि वार्ष्टकं क्षत्त्रमभवत् ४
नाभागस्यात्मजो नाभागसंत्रोभवत् ५
तस्याप्यंबरीषः ६
अंबरीषस्यापि विरूपोभवत् ७
विरूपात्पृषदश्वो जज्ञे ८
ततश्च रथीतरः ९
अत्रायं श्लोकः
एते क्षत्रप्रसूता वै पुनश्चांगिरसाः स्मृताः
रथीतराणां प्रवराः क्षत्त्रोपेता द्विजातयः इति १०
क्षुतवतश्च मनोरिक्ष्वाकुः पुत्रो जज्ञे घ्राणतः ११
तस्य पुत्रशतप्रधाना विकुक्षिनिमिदंडाख्यास्त्रयः पुत्रा बभूवुः १२
शकुनिप्रमुखाः पंचाशत्पुत्राः उत्तरापथरक्षितारो बभूवुः १३
चत्वारिंशदष्टौ च दक्षिणापथभूपालाः १४
स चेक्ष्वाकुरष्टकायाश्श्राद्धमुत्पाद्य श्राद्धार्हं मांसमानयेति विकुक्षिमाज्ञापयामास १५
स तथेति गृहीताज्ञो विधृतशरासनो वनमभ्येत्यानेकशो मृगान् हत्वा श्रांतोतिक्षुत्परीतो विकुक्षिरेकं शशमभक्षयत्
श्षॐ च मांसमानीय पित्रे निवेदयामास १६
इक्ष्वाकुकुलाचार्यो वशिष्ठस्तत्प्रोक्षणाय चोदितः प्राह
अलमनेनामेध्येनामिषेण दुरात्मना तव पुत्रेणैतन्मांसमुपहतं यतोऽनेन शशो भक्षितः १७
ततश्चासौ विकुक्षिर्गुरुणैवमुक्तश्शशादसंज्ञामवाप पित्रा च परित्यक्तः १८
पितर्युपरते चासावखिलामेतां पृथ्वीं धर्मतश्शाशास १९
शशादस्य तस्य पुरंजयोनाम पुत्रोभवत् २०
तस्येदं चान्यत् २१
पुरा हि त्रेतायां देवासुरयुद्धमतिभीषणमभवत् २२
तत्र चातिबलिभिरसुरैरमराः पराजितास्ते भगवंतं विष्णुमाराधयांचक्रुः २३
प्रसन्नश्च देवानामनादिनिधनोखिलजगत्परायणो नारायणः प्राह २४
ज्ञातमेतन्मया युष्माभिर्यदभिलषितं तदर्थमिदं श्रूयताम् २५
पुरंजयो नाम राजर्षेश्शशादस्य तनयः क्षत्त्रियवरो यस्तस्य शरीरेहमंश्नो स्वयमेवावतीर्य तानश्षोआ!नसुरान्निहनिष्यामि तद्भवद्भिः पुरंजयोऽसुरवधार्थमुद्योगं कार्यतामिति २६
एतच्च श्रुत्वा प्रणम्य भगवंतं विष्णुममराः पुरंजयसकाशमाजग्मुरूचुश्चैनम् २७
भोभोः क्षत्त्रियवर्यास्माभिरभ्यर्थितेन भवतास्माकमरातिवधोद्यतानां कर्तव्यं साहाय्यमिच्छामः तद्भवतास्माकमभ्यागतानां प्रणयभंगो न कार्य इत्युक्तः पुरंजयः प्राह २८
त्रैलोक्यनाथो योयं युष्माकमिंद्र ः! शतक्रतुरस्य यद्यहं स्कंधाधिरूढो युष्माकमरातिभस्सह योत्स्ये तदहं भवतां सहायः स्याम् २९
इत्याकर्ण्य समस्तदेवैरिंद्रे ण च बाढमित्येवं समन्विच्छितम् ३०
ततश्च शतक्रतोर्वृषरूपधारिणः ककुदि स्थितोऽतिरोषसमन्वितो भगवतश्चराचरगुरोरच्युतस्य तेजसाप्यायितो देवासुरसंग्रामे समस्तानेवासुरान्निजघान ३१
यतश्च वृषभककुदि स्थितेन राज्ञा दैतेयबलं निषूदितमतश्चासौ ककुत्स्थसंज्ञामवाप ३२
ककुत्स्थस्याप्यनेनाः पुत्रोऽभवत् ३३
पृथुरनेनसः ३४
पुथोर्विष्टराश्वः ३५
तस्यापि चांद्रो युवनाश्वः ३६
चांद्र स्य तस्य युवनाश्वस्य शावस्तः यः पुरीं शावस्तीं निवेशयामास ३७
शावस्तस्य बृहदश्वः ३८
तस्यापि कुवलयाश्वः ३९
योसावुदकस्य महर्षेरपकारिणं दुंदुनामानमसुरं वैष्णवेन तेजसाप्यायितः पुत्रसहस्रैरेकविंशद्भिः परिवृतो जघान दुंदुमारसंज्ञामवाप ४०
तस्य च तनयास्समस्ता एव दुंदुमुखनिश्वासाग्निना विप्लुष्टा विनेशुः ४१
दृढाश्वचंद्रा श्वकपिलाश्वाश्च त्रयः केवलं शो!षिताः ४२
वृढाश्वाद्धर्यश्वः ४३
तस्माच्च निकुंभः ४४
निकुंभस्यामिताश्वः ४५
ततश्च कृशाश्वः ४६
तस्माच्च प्रसेनजित् ४७
प्रसेनजितो युवनाश्वोभवत् ४८
तस्य चापुत्रस्यातिनिर्वेदान्मुनीनामाश्रममंडले निवसतो दयालुभिर्मुनिभिरपत्योत्पादनायेष्टः कृता ४९
तस्यां च मध्यरात्रौ निवृत्तायां मंत्रपूतजलपूर्णं कलशं वेदिमध्ये निवेश्य ते मुनयः सुषुपुः ५०
सुप्तेषु तेषु अतीव तृट्परीतस्स भूपालस्तमाश्रमं विवेश ५१
सुप्तांश्च तानृषीन्नैवोत्थापयामास ५२
तच्च कलशमपरिमेयमाहात्म्यमंत्रपूतं पपौ ५३
प्रबुद्धाश्च ऋषयः पप्रछुः केनैतं मंत्रपूतं वारि पीतम् ५४
अत्र हि राज्ञो युवनाश्वस्य पत्नी महाबलपराक्रमं पुत्रं जनयिष्यति
इत्याकर्ण्ये स राजा अजानता मया पीतमित्याह ५५
गर्भश्च युवनाश्वस्योदरे अभवत्क्रमेण च ववृधे ५६
प्राप्तसमयश्च दक्षिणांगुष्ठेन कुक्षिमवनिपतेर्निर्भिद्य निश्चक्राम ५७
स चासौ राजा ममार ५८
जातो नामैष कं धास्यतीति ते मुनयः प्रोचुः ५९
अथागत्य देवराजोब्रवीत् मामयं धास्यतीति ६०
ततो माधातृनामा सोभवत्
वक्त्रे चास्य प्रदेशिनी न्यस्ता देवेंद्रे ण न्यस्तातां पपौ ६१
तां चामृतस्राविणीमास्वाद्याह्नैव स व्यवर्द्धत ६२
ततस्तु मांधाता चक्रवर्त्ती सप्तद्वीपां महीं वुभुजे ६३
तत्रायं श्लोकः ६४
यावत्सूर्य उदेत्यस्तं यावच्च प्रतितिष्ठति
सर्वं तद्यौवनाश्वस्य मांधातुः क्षेत्रमुच्यते ६५
मांधाता शतबिंदोर्दुहितरं बिंदुमतीमुपयेमे ६६
पुरुकुत्समंबरीषं मुचुकुंदं च तस्यां पुत्रत्रयमुत्पादयामास ६७
पंचाशद्दुहितरस्तस्यामेव तस्य नृपतेर्बभूवुः ६८
एकस्मिन्नंतरे बह्वृचश्च सौभरिर्नाम महर्षिरंतर्जले द्वादशाब्दं कालमुवास ६९ तत्र चांतर्जले संमदो नामातिबहु- प्रजोतिमात्रप्रमाणो मीनाधिपतिरासीत् ७०
तस्य च पुत्रपौत्रदौहित्राः पृष्ठतोऽग्रतः पार्श्वयोः पक्षपुच्छशिरसां चोपरि भ्रमंतस्तेनैव सदाहर्निशमतिनिर्वृत्ता रेमिरे ७१
स चापत्यस्पर्शोपचीयमानप्रहर्षप्रकर्षो बहुप्रकारं तस्य ऋषेः पश्यतस्तैरात्मजपुत्रपौत्रदौहित्रादिभिः सहानुदिनं सुतरां रेमे ७२
अथांतर्जलावस्थितस्सौभरिरेकाग्रतस्समाधिमपहायानुदिनं तस्य सत्स्यस्यात्मजपुत्रपौत्रदौहित्रादिभिस्सहातिरमणीयतामवेक्ष्याचिंतयत् ७३
अहो धन्योयमीदृशमनभिमतं योन्यंतरमवाप्यैभिरात्मजपुत्रपौत्रदौहित्रादिभिस्सह रममाणोतीवास्माकं स्पृहामुत्पादयति ७४
वयमप्येवं पुत्रादिभिस्सह ललितं रमिष्याम इत्येवमभिकांक्षन् स तस्मादंतर्जलान्निष्क्रम्य संतानाय निवेष्टुकामः कन्यार्थं मांधातारं राजानमगच्छत् ७५
🥀🌻आगमनश्रवणसमनन्तरं चोत्थाय तेन राज्ञा सम्यगर्घ्यादिना संपूजितः कृतासनपरिग्रहः सौभरिरुवाच राजानम् ७६
सौभरिरुवाच
निवेष्टुक्
आमोऽस्मिनरेन्द्र कन्यां प्रयच्छ मे मा प्रणयं विभांक्षीः
न ह्यर्थिनः कार्यवशादुपेताः ककुत्स्थवंशो! विमुखाः प्रयांति ७७
अन्येपि संत्येव नृपाः पृथिव्यां मांधातरेषां तनयाः प्रसूताः
किं त्वर्थिनामर्थितदानदीक्षाकृतव्रतश्लाघ्यमिदं कुलं ते ७८
शतार्धसंख्यास्तव संति कन्यास्तासां ममैकां नृपते प्रयच्छ
यत्प्रार्थनाभंगभयाद्बिभेमि तस्मादहं राजवरातिदुःखात् ७९
श्रीपराशर उवाच
इति ऋषिवचनमाकर्ण्य स राजा जराजर्जरितदेहमृषिमालोक्य प्रत्याख्यानकातरस्तस्माच्च शापभीतो बिभ्यत्किंचिदधोमुखश्चिरं दध्यौ च ८०
सौभरिरुवाच
नरेंद्र कस्मात्समुपैषि चिंतामसह्यमुक्तं न मयात्र किंचित्
यावश्यदेया तनया तयैव कृतार्थता नो यदि किं न लब्धा ८१
श्रीपराशर उवाच
अथ तस्य भगवतश्शापभीतस्सप्रश्रयस्तमुवाचासौ राजा ८२
राजोवाच
भगवन् अस्मत्कुलस्थितिरियं य एव कन्याभिरुचितोऽभिजनवान्वरस्तस्मै कन्या प्रदीयते भगवद्याच्ञा चास्मन्मनोरथानामप्यतिगोचरवर्त्तिनी कथमप्येषा संजाता तदेवमुपस्थिते न विद्मः किं कुर्म इत्येतन्मयाऽचिंत्यत इत्यभिहिते च तेन भूभुजा मुनिरचिंतयत् ८३
अयमन्योऽस्मत्प्रत्याख्यानोपायो वृद्धोयमनभिमतः स्त्रीणां किमत कन्याकानामित्यमुना संचिंत्यैतदभिहितमेवमस्तु तथा करिष्यामीति संचिंत्य मांधातारमुवाच ८४
यद्येवं तदादिश्यतामस्माकं प्रवेशाय
कंन्यांतःपुरं वर्षवरो यदि कन्यैव काचिन्मामभिलषति तदाहं दारसंग्रहं करिष्यामि अन्यथा चेत्तदलमस्माकमेतेनातीतकालारंभणेनेत्युक्त्वा विरराम ८५
ततश्च मांधात्रा मुनिशापशं कितेन कन्यांतःपुरवर्षधरस्समाज्ञप्तः ८६
तेन सह कन्यांतःपुरं प्रविशन्नेव भगवानखिलसिद्धगंधर्वेभ्योतिशयेन कमनीयं रूपमकरोत् ८७
प्रवेश्य च तमृषिमंतःपुरे वर्षधरस्ताः कन्याः प्राह ८८
भवतीनां जनयिता महाराजस्समाज्ञापयति ८९
अयमस्मान् ब्रह्मर्षिः कन्यार्थं समभ्यागतः ९०
मया चास्य प्रतिज्ञातं यद्यस्मत्कन्या या काचिद्भगवंतं वरयति तत्कन्याच्छंदे नाहं परिपंथानं करिष्यामीत्याकर्ण्य सर्वा एव ताः कन्याः सानुरागाः सप्रमदाः करेणव इव मृगयूथपतिं तमृषिमहमहमिकया वरयांबभूवुरूचुश्च ९१
अलं भगिन्योहमिमं वृणोमि वृणोम्यहं नैष तवानुरूपः
ममैष भर्त्ता विधिनैव सृष्टस्सृष्टाहमस्योपशमं प्रयाहि ९२
वृतो मयायं प्रथमं मयायं गृहं विशन्नेव विहन्यसे किम्
मया मयोतिक्षितिपात्मजानां तदर्थमत्यर्थकलिर्बभूव ९३
यदा मुनिस्ताभिरतीवहार्दाद्वृतस्स कन्याभिरनिंद्यकीर्तिः
तदा स कन्याधिकृतो नृपाय यथावदाचष्ट विनम्रमूर्त्तिः ९४
श्रीपराशर उवाच
तदवगमात्किंकिमेतत्कथमेतत्किं किं करोमि किं मयाभिहितमित्याकुलमतिरनिच्छन्नपि कथमपि राजानुमेने ९५
कृतानुरूपविवाहश्च महर्षिस्सकला एव ताः कन्यास्स्वमाश्रममनयत् ९६
तत्र चाऽशेषशिल्पकल्पप्रणेतारं धातारमिवान्यं विश्वकर्माणमाहूय सकलकन्यानामेकैकस्याः प्रोत्फुल्लपंकजाः कूजत्कलहंसकारंडवादिविहंगमाभिरामजलाशयास्सोपधानाः
सावकाशास्साधुशय्यापरिच्छदाः प्रासादाः क्रियंतामित्यादिदेश ९७
तच्च तथैवानुष्ठितमश्षोशिल्पविशेषाचार्यस्त्वष्टा दर्शितवान् ९८
ततः परमर्षिणा सौभरिणाज्ञप्तस्तेषु गृहेष्वनिवार्यानंदकुंदमहानिधिरासांचक्रे ९९
ततोऽनवरतेन भक्ष्यभोज्यलेह्याद्युपभोगैरागतानुगतभृत्यादीनहर्निशमश्षोगृहेषु ताः क्षितीशदुहितरो भोजयामासुः १००
एकदा तु दुहितृस्नेहाकृष्टहृदयस्स महीपतिरतिदुःखितास्ता उत सुखिता वा इति विचिंत्य तस्य महर्षेराश्रमसमीपमुपेत्य स्फुरदंशुमालाललामां स्फटिकमयप्रासादमालामतिरम्योपवनजलाशयां ददर्श १०१
प्रविश्य चैकं प्रासादमात्मजां परिष्वज्य कृतासनपरिग्रहः प्रवृद्धस्नेहनयनांबुगर्भनयनोब्रवीत् १०२
अप्यत्र वत्से भवत्यास्सुखमुत किंचिदसुखमपि ते महर्षिस्स्नेहवानुत न स्मर्यतेस्मद्गृहवास इत्युक्ता तं तनया पितरमाह १०३
तातातिरमणीयः प्रासादोत्रातिमनोज्ञमुपवनमेते कलवाक्यविहंगमाभिरुताः प्रोत्फुल्लपद्माकरजलाशयाः मनोनुकूलभक्ष्यभोज्यानुलेपनवस्त्रभूषणादिभोगो मृदूनि शयनासनानि सर्वसंपत्समेतं मे गार्हस्थ्यम् १०४
तथापि केन वा जन्मभूमिर्न स्मर्यते १०५
त्वत्प्रसादादिदमश्षोमतिशोभनम् १०६
किं त्वेकं ममैतद्दुःखकारणं यदस्मद्गृहान्महर्षिरयम्मद्भर्त्ता न विष्क्रामति ममैव केवलमतिप्रीत्या समीपपरिवर्त्तिनीनामन्यासामस्मद्भगिनीनाम् १०७
एवं च मम सोदर्योतिदुःखिता इत्येवमतिदुःखकारणमित्युक्तस्तया द्वितीयं प्रासादमुपेत्य स्वतनयां परिष्वज्योपविष्टस्तथैव पृष्टवान् १०८
तयापि च सर्वमेतत्तत्प्रासादाद्युपभोगसुखं भृशमाख्यातं ममैव केवलमतिप्रीत्या पार्श्वपरिवर्त्तिनीनामन्यासामस्मद्भगिनीनामित्येवमादिश्रुत्वा समस्तप्रासादेषु राजा प्रविवेश तनयां तनयां तथैवावृच्छत् १०९
सर्वाभिश्च ताभिस्तथैवाभिहितः परितोषविस्मयनिर्भरविवशहृदयो भगवंतं सौभरिमेकांतावस्थितमुपेत्य कृतपूजोब्रवीत् ११०
दृष्टस्ते भगवन् सुमहानेष सिद्धिप्रभावो नैवंविधमन्यस्य कस्यचिदस्माभिर्विभूतिभिर्विलसितमुपलक्षितं यदेतद्भगवतस्तपसः फलमित्यभिपूज्य तमृषिं तत्रैव तेन ऋषिवर्येण सह किंचित्कालमभिमतोपभोगान् बुभुजे स्वपुरं च जगाम १११
कालेन गच्छता तस्य तासु राजतनयासु पुत्रशतं सार्धमभवत् ११२
अनुदिनानुरूढस्नेहप्रसरश्च स तत्रातीवममताकृष्टहृदयोऽभवत् ११३
अप्येतेऽस्मत्पुत्राः कलभाषिणः पद्भ्यां गच्छेयुः अप्येते यौवनिनो भवेयुः अपि कृतदारानेतान् पश्येयमप्येषां पुत्रा भवेयुः अप्येतत्पुत्रान्पुत्रसमन्वितान्पश्यामीत्यादिमनोरथाननुदिनं कालसंपत्तिप्रवृद्धानुपेक्ष्यैतच्चिंतयामास ११४
अहो मे मोहस्यातिविस्तारः ११५
मनोरथानां न समाप्तिरस्ति वर्षायुतेनाप्यथ वापि लक्षैः
पूर्णेषुपूर्णेषु मनोरथानामुत्पत्तयस्संति पुनर्नवानाम् ११६
पद्भ्यां गता यौवनिनश्च जाता दारैश्च संयोगमिताः प्रसूताः
दृष्टाः सुतास्तत्तनयप्रसूतिं द्र ष्टुं पुनर्वांच्छति मेंऽतरात्मा ११७
द्र क्ष्यामि तेषामिति चेत्प्रसूतिं मनोरथो मे भविता ततोन्यः
पुर्णेपि तत्राप्यपरस्य जन्म निवार्यते केन मनोरथस्य ११८
आमृत्युतो नैव मनोरथानामंतोस्ति विज्ञातमिदं मयाद्य
मनोरथासक्तिपरस्य चित्तं न जायते वै परमार्थसंगि ११९
स मे समाधिर्जलवासमित्रमत्स्यस्य संगात्सहसैव नष्टः
परिग्रहस्संगकृतो मयायं परिग्रहोत्था च ममातिलिप्सा १२०
दुःखं यदैवैकशरीरजन्म शतार्द्धसंख्याकमिदं प्रसूतम्
परिग्रहेण क्षितिपात्मजानां सुतैरनेकैर्बहुलीकृतं तत १२१
सुतात्मजैस्तत्तनयैश्च भूयो भूयश्च तेषां परिग्रहेण
विस्तारमेष्यत्यतिदुःखहेतुः परिग्रहो वै ममताभिधानः १२२
चीर्णं तपो यत्तु जलाश्रयेण तस्यार्द्धिरेषा तपसॐतरायः
मत्स्यस्य संगादभवच्च यो मे सुतादिरागो मुषितोस्मि नेन १२३
निस्संगता मुक्तिपदं यतीनां संगादश्षोआः! प्रभवंति दोषाः
आरूढयोगो विनिपात्यतेधस्संगेन योगी किमुताल्पबुद्धिः १२४
अहं चरिष्यामि तदात्मनोर्थे परिग्रहग्राहगृहीतबुद्धिः
यदा हि भूयः परिहीनदोषो जनस्य दुःखैर्भविता न दुःखी १२५
सर्वस्य धातारमचिंत्यरूपमणोरणीयांसमतिप्रमाणम्
सितासितं चेश्वरमीश्वराणामाराधयिष्ये तपसैव विष्णुम् १२६
तस्मिन्नश्षोऔ!जसि सर्वरूपिण्यव्यक्तविस्पष्टतनावनंते
ममाचलं चित्तमपेतदोषं सदास्तु विष्णावभवाय भूयः १२७
समस्तभूतादमलादनंतात्सर्वेश्वरादन्यदनादिमध्यात्
यस्मान्न किंचित्तमहं गुरूणां परं गुरुं संश्रयमेमि विष्णुमा १२८
श्रीपराशर उवाच
इत्यात्मानमात्मनैवाभिधायासौ सौभरिरपहाय पुत्रगृहासनपरिग्रहादिकमश्षोमर्थजातं सकलभार्यासमन्वितो वनं प्रविवेश १२९
तत्राप्यनुदिनं वैखानसनिष्पाद्यमश्षोक्रियाकलापं निष्पाद्य क्षपितसकलपापः परिपक्वमनोवृत्तिरात्मन्यग्नीन्समारोप्य भिक्षुरभवत् १०३
भगवत्यासज्याखिलं कर्मकलापं हित्वानं तमजमनादिनिधनमविकारमरणादिधर्ममवाप परमनन्तं परवतामच्युतं पदम् १३१
इत्येतन्मांधातृदुहितृसंबंधादाख्यातम् १३२
यश्चैतत्सौभरिचरितमनुस्मरति पठति पाठयति शृणोति श्रावयति धरत्यवधारयति लिखति लेखयति शिक्षयत्यध्यापयत्युपदिशति वा तस्य षट् जन्मानि दुस्संततिरसद्धर्मो वाड्मनसोरसन्मार्गाचरणमश्षोहेतुषु वा ममत्वं न भवति १३३



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यमुना कवच:- सौभरि उवाच:
यमुनायाश्च कवचं सर्वक्षाकरं नृणाम् । चतुष्पदार्थदं साक्षाच्छृणु राजन् महामते ॥१॥
कृष्णां चतुर्भुजां पुण्डरीकदलेक्षणाम् । रथस्थां सुन्दरीं ध्यात्वा धारयेत कवचं तत: ॥२॥

भावार्थ:-  महर्षि सौभरि बोले –हे नरेश ! यमुनाजीका कवच मनुष्योकी सब प्रकारसे सक्षा कसनेवाला तथा साक्षात् चारों पदार्थोंको देनेवाला है, तुम इसे सुनो – यमुनाजीके चार भुजाएँ है । वे श्यामा (श्यामवर्णा एवं षोडश वर्षकी अवस्थासे युक्त) है । उनके नेत्र प्रफल्ल कमलदलके समान सुन्दर एवं विशाल है । वे परम सुन्दर है और दिव्य रथपर बैठी हुई हैं । उनका ध्यान करके कवच धारण करे, स्नान करके पूर्वाभिमुख हो मौनभावसे कुशासनपर बैठे और कुशोंद्वारा शिखा बाँधकर संध्या-वन्दन करनेके अनन्तर ब्रह्मण (अथावा द्विजमात्र) स्वस्तिकासनसे स्थित हे कवचका पाठ करे ।

कवच-
स्नात: पूर्वमुखो मौनी कृतसंध्य: कुशासने । कुशैर्बद्धशिखो विप्र: पठेद् वै स्वस्तिकासन:॥३॥
यमुना मे शिर: पातु कृष्णा नेत्रद्वयं सदा । श्यामा भ्रूभङ्गदेशं च नासिकां नाकवासिनी ॥४॥
कपोलौ पातु मे साक्षात् परमानन्दरूपिणी । कृष्णवामांससम्भूता पातु कर्णद्वयं मम ॥५॥
अधरौ पातु कालिन्दी चिबुकं सूर्यकन्यका । यमस्वसा कन्धरां च हृदयं मे महानदी ॥६॥
कृष्णप्रिया पातु पृष्ठं तटिनी मे भुजद्वयम् । श्रोंणीतटं च सुश्रोणी कटिं मे चारुदर्शना ॥७॥
ऊरुद्वयं तु रम्भोरूर्जानुनी त्वङ्घ्रिभेदिनी । गुल्फौ रासेश्वरी पातु पादौ पापापहारिणी ॥८॥
अन्तर्बहिरधश्चोर्ध्वं दिशासु विदिशासु च । समन्तात् पातु जगत: परिपूर्णतमप्रिया ॥९॥

भावार्थ:- यमुना मेरे मस्तक की रक्षा करे और कृष्णा सदा दानों नेत्रोंकी । श्यामा भ्रूभंग-देशकी और नाकवासिनी नासिकाकी रक्षा करें । साक्षात् परमानन्दरूपिणी मेरे दोनों कपोलोंकी रक्षा करें । कृष्णवामांससम्भूता (श्रीकृष्णके बायें कंधे से प्रकट हुई वे देवी) मेरे दोनों कानोंका संरक्षण करें । कालिन्दी अधरोंकी और सूर्यकन्या चिबुक (ठोढी) की रक्षा करें । यमस्वसा (यमराजकी बहिन) मेरी ग्रीवाकी और महानदी मेरे हृदयकी रक्षा करें । कृष्णप्रिया पृष्ठ –भागका और तटिनी मेरी दोनों भुजाओंका रक्षण करें । सुश्रोणी श्रोणीतट (नितम्ब) की और चारुदर्शना मरे कटिप्रदेशकी रक्षा करें । रम्भरू दोनों ऊरुओं (जाँघो) की और अङ्घ्रिभेदिनी मेरे दोनों घुटनोंकी रक्षा करें । रासेश्वरी गुल्फों (घट्ठयों) का और पापापहारिणी पादयुगलका त्राण करें । परिपूर्णतमप्रिया भीतर-बहार, नीचे-ऊपर तथा दिशाओं और विदिशाओंमें सब ओरसे मेरी रक्षा करें ॥

फलश्रुति:-
इदं श्रीयमुनायाश्च कवचं पामाद्भुतम् । दशवारं पठेद् भक्त्या निर्धनो धनवान् भवेर् ॥१०॥
त्रिभिर्मासै: पठेद् धिमान् ब्रमाचारी मिताशन: । सर्वराज्याधिपत्यत्वं प्राप्यते नात्र संशय: ॥११॥
दशोत्तशतं नित्यं त्रिमासावधि भक्तित: । य: पठेत् प्रयतो भूत्वा तस्य किं किं न जायते ॥१२॥
य: पठेत् प्रातरुत्थाय सर्वतीर्थफलं लभेत् । अन्ते व्रजेत् परं धाम गोलोकं योगिदुर्भम् ॥१३॥

भावार्थ:- यह श्रीयमुना का परम अद्भुत कवच है । जो भक्तिभाव से दस इसका पाठ करता है, वह निर्धन भी धनवान् हो जाता है । जो बुद्धिमान् मनुष्य ब्रह्मचर्यके पालनपूर्वक परिमित आहारका सेवन करते हुए तीन मासतक इसका पाठ करेगा, बह सम्पूर्ण राज्योंका आधिपत्य प्राप्त कंर लेगा, इसमें संशय नहीं है । जो तीन महीनकी अवधितक प्रतिदिन भक्तिभावसे शुद्धचित्त हो इसका एक सौ दस बार पाठ करगा, उसको क्या-क्या नहीं मिल जायगा ? जो प्रात:काल उठकर इसका पाठ करेगा, उसे सम्पूर्ण तीर्थोमें स्नानका फल मिल जायगा तथा अन्तमें वह योगिदुर्लभ परमधाम गोलोक में चला जायगा ॥ 

(गर्गसंहिता, माधुर्य खण्ड, १६। १२-१४)

"इति श्रीगर्गसंहिता माधुर्यखण्डे श्रीसौभरि-मांधाता संवादे यमुना कवचम् सम्पूर्णम्"
(श्रीगर्गसंहिता में माधुर्यखण्ड के अन्तर्गत श्रीसौभरि-मांधाताके संवाद में यमुना कवच )

ओमन सौभरि भुर्रक, भरनाकलां, मथुरा

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अंगिरसगोत्री आदिगौड़ सौभरि ब्राह्मण समाज को Online Website के जरिये जोड़ने की कोशिश



अंगिरसगोत्री आदिगौड़ सौभरि ब्राह्मण समाज को डिजिटल प्लेटफॉर्म "Online Website" के जरिये जोड़ने की कोशिश की है। इसके निर्माण से स्वजनों की उन्नति एवं सामाजिक भाई-चारा को स्थापित करने में निश्चित रूप से सफलता मिलेगी । इस छोटी सी पहल को विस्तृत रुप देने के लिए विशेष सहयोगी सुनील शर्मा, रामनगर (राजस्थान) की देखरेख में आगे बढाया जायेगा और इनके अलावा स्वसमाज जितने भी वेब डैवलपर हैं उनसे भी इस सामाजिक कार्य के लिए 'काम के सहयोग' की आशा करते हैं।



 हमारा उद्देश्य दुनिया के विभिन्न स्थानों व कार्यो में लगे हुए स्वसमाज के बन्धुओं को समाज में एक-दूसरे को जानने, अपनी बात रखने व सामाजिक समस्याओं पर चर्चा करने के लिये एक प्लेटफार्म उपलब्ध करवाना है । आप सभी से आदरपूर्वक निवेदन करते हैं कि आप भी इस वैबसाइट पर सामाजिक भाई-चारे का परिचय देंगे । इस वेबसाइट की प्रमुख विशेषताएँ बिंदुवार निम्नानुसार रहेंगी:-

1- सौभरि समाज का इतिहास:- समाज का संक्षिप्त इतिहास बताया जाएगा, यदि आप समाज के इतिहास के सम्बन्ध कोई लेख देना चाहते है तो saubharibrahman@gmail.com पर ईमेल कर सकते हैं, आपके नाम व फोटो सहित आपका लेख स्वसमाजिक पत्रिका "सौभरिदर्पण" में पब्लिश किया जायेगा
2- स्वसमाज के महान व्यक्तित्व:- समाज के ऐतिहासिक व्यक्तित्व जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य कर समाज को गौरवान्वित किया है, ऐसे ऐतिहासिक व्यक्तित्वों को नई पीढ़ी जाने इस हेतु उनके द्वारा किये गये कार्यों का संक्षिप्त विवरण उपलब्ध करवायाजाएगा ।
3- सौभरेय डायरेक्टरी:- विभिन्न स्थानों व कार्यो में लगे हुए स्वसमाज के बन्धओं को समाज में एक-दूसरे को जानने हेतु अपने समस्त परिचितों की जानकारी इसमें जोडें / जुड़ने के लिए प्रेरित करें |
4- सामाजिक संगठन :- सौभरेय समाज से सम्बंधित पंजीकृत/अपंजीकृत सभी प्रकार के संगठन/ विकास समितियां/सामूहिक विवाह समितियां/मंदिर संचालन समितियां या ट्रस्ट आदि की कार्यकारिणी के समस्त पदाधिकारियों का विवरण(फोटो, नाम, पद व मोबाइल न.) PDF में अपलोड किया जायेगा ताकि सामाजिक विकास में भागीदार समाजसेवकों की सभी को जानकारी हो सके अत: आपके आस-पास कार्यरत ऐसे सभी संगठनों का विवरण हमें ईमेल करें ।
5- इवेंट &प्रोग्राम:- समाज के लोगों द्वारा अलग-अलग स्थानों पर होने वाले कार्यक्रमों की वीडियो भेजें, हम इसको वेबसाइट पर अपलोड करेंगे ।
6- वैवाहिकी :-वर-वधु दोनों की योग्यता को ध्यान में रखकर रिश्ता किया जाना चाहिए, ताकि वर-वधु का जोड़ा कामयाबी की नई ऊंचाइयों पर पहुंच कर समाज का नाम रोशन करे । सौभरेय ब्राह्मण समाज के हित को ध्यान में रखकर समाज के विवाह योग्य वर-वधुओं का पंजीयन करने या पंजीकृत को देखने की सुविधा रखी गई है।
7- फोटो गैलेरी :- सामाजिक गतिविधियों, कार्यक्रमों इत्यादि की फोटो इसमें अपलोड की जायगी |
8- सुझाव:- आपके सामाजिक हित में किसी भी प्रकार के सुझाव हमें ईमेल कर हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे, ऐसी मेरी समाज के सभी बुद्धिजीवियों से अपेक्षा है ।
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सभी स्वसमाज के बन्धुओं से निवेदन है कि आपके मिलने व जानने वाले बंधुओं के नाम व मोबाइल नंबर डायरेक्टरी में जुडवाएँ |
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विकिपीडिया पर 'सौभरि अहिवासी ब्राह्मण' वाले पेज पर स्वसमाज की विस्तृत जानकारी अपलोड करने की आवश्यकता-



महर्षि सौभरि जी व अन्य स्वसमाज के प्रवर ऋषियों की कथा विकिपीडिया पर बहुभाषी पृष्ठों के अनुवादों के लिए सहायतार्थ आपके विचार/सुझाव अभिनंदनीय हैं । टोपिकवाइज क्या-क्या मूल विषय होने चाहिये तथा कौन-कौन से ऐसे स्वसमाज के चिन्ह व वस्तुएं हैं जो इन पेजों पर संलग्न करने लायक हैं । अनेक भाषओं में अनुवाद होने से अन्य भाषाभाषी बड़ी आसानी हमारे गोत्र प्रवर्तक व प्रवरों के बारे पढ़ सकते हैं । बहु-भाषी जानकारी से साफ़ तौर पर अलग-अलग देशों के उपयोगकर्ता व लोगों तक पहुँचाया जा सकेगा ।

स्वसमाज के अनेक योगदानकर्ताओं द्वारा विकिपीडिया पर लिखा जा सकता है जो ज्ञान को बाँटने एवं उसका प्रसार करने में विश्वास रखते हैं। आप जिस लेख को बहुत कम जानकारी डालकर भी आरम्भ करेंगे तो कल उसे कोई और व्यक्ति कुछ नई जानकारी डालकर बढ़ा देगा फिर कोई और, और इस प्रकार कुछ दिनों बाद वह लेख ज्ञान की छोटी-छोटी बूँदों से भरकर परिपूर्ण हो जाएगा जिससे अनेक उत्सुक पाठकों की ज्ञानरुपी प्यास बुझेगी। जिस प्रकार आप जो प्रयास किसी अन्य के लिए करेंगे जिससे उसका ज्ञानवर्धन होगा, उसी प्रकार अन्य लोग भी समान प्रयास कर अनेक लेख बनाएंगे जिससे आपका एवं कई अन्य लोगों का ज्ञानवर्धन होगा। इस प्रकार जब कई लोग स्वयं से ज्ञान की छोटी-छोटी बूँदे समर्पित करेंगे तो ज्ञान का एक ऐसा सागर बन जाएगा जिससे आने वाली समस्त पीढ़ियों के साथ हम सब की ज्ञान रुपी जिज्ञासा शान्त होगी।
 विकिपीडिया पर पहले से ही 2012 से पेज बना हुआ है लेकिन हमको उसमें विषयवस्तु जोड़ने की आवश्यकता है जिससे पेज पर विस्तृत जानकारी दी जा सके । जैसे- सृष्टि-गोत्रदाता-प्रवर-गाँव-संतति-विरासत-बदलाव- रीति-रिवाज-वर्तमान स्थिति ।

: ब्रजवासी ओमन सौभरि भुर्रक, भरनाकलाँ (मथुरा)

Tuesday, 14 January 2020

सौभरि ब्राह्मण समाज द्वारा स्वजनों के विकास प्रोत्साहन लिए कुछ कदम उठाना परम् आवश्यक है



इक्कीसवीं सदी का समाज, “कहां है, कैसा है, कैसा बनने वाला है, कहां पहुँचने वाला है” यह एक विशद विषय था लेकिन इस सदी ने समाज में “नवजागरण का सूत्रपात” किया । जाति संसार के आधुनिक शिक्षा से प्रभावित लोगों ने सामाजिक रचना, रीति-रिवाज व परम्पराओं को तर्क की कसौटी पर कसना आरम्भ कर स्वजनों में एक प्रबल राष्ट्रीय चेतना को जन्म दिया तथा यह चेतना उत्तरोत्तर बलवती होती गई और और धीरे -धीरे ये सामाजिक तथा परंपरागत सुधारों मे नियोजित हो गई। इस शिक्षा के प्रभाव में आकर ही स्वजनों ने अन्य जातिगत सभ्यता और रीति-रिवाज के बारे में ढेर सारी जानकारियाँ एकत्र कीं तथा ‘अपनी सभ्यता से अन्य समाजों क़ी तुलना’ कर सच्चाई को जाना। इन समाज सुधारकों में एक संस्था “अखिल भारतीय सौभरेय ब्राह्मण संघ ” ने अहम् भूमिका निभायी है | इसे ‘प्रगतिशील समाज के निर्माण का उद्देश्य’ के लिए सामने रखा गया, जिससे समाज में पनपी समस्याओं, अन्धविश्वासों, कुरीतियों का निराकरण होकर स्वजनों का एकीकरण जाए। फलतः इसके अन्तर्गत कृषि मे विकास, शिक्षा में प्रगति, स्वास्थ्य व पोषण में विकास, स्त्रियों की दशा में सुधार, वैवाहिक स्थिति में सुधार आदि जैसे महत्वपूर्ण कार्य हुए। यह एक समाज की वो माला है जो बीजरूपी स्वजनों को पिरोये हुए है | निश्चित ही नई सदी में बहुत सारी चीजें काफी चमकदार दिख रहीं है। बीस साल या पचास साल पहले के मुकाबले समाज काफी आगे दिखाई दे रहा है। यहाँ पर कुछ ऐसे घटक हैं जिन्होंने पुनर्जागरण क्रांति को सफल बनाने की कोशिश की है । वैसे कृषि हमारे मूल व्यवसायों में से एक हैं,रीढ़ कि हड्डी है ।



समाज की ओर से जो बढावा दिया जाना चाहिए वो प्रमुख कार्य-
1- सौभरेय शूरमाओं को समय-समय पर सम्मानित करना जिन्होंने सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, साहित्य, कला, संस्कृति इत्यादि क्षेत्रों में योगदान दिया हो ।
2- 10th,12th कक्षा के मेधावी छात्रों के साथ-साथ राजकीय व केंद्रीय नौकरियों में जगह बनाने वाले बच्चों को पुरस्कृत करना ।
3- समस्त सौभरि ब्राह्मण समाज को एक वेबसाइट के जरिये सेंट्रलाइज्ड करना व वैबफॉर्म के जरिये डेटा एकत्रित करना जिसमें आने वाला नया स्वजन यूजर नाम, नम्बर, मेल आइडी,स्थान व उपगोत्र का विवरण भर सकें ।
4- मासिक व वार्षिक पत्रिकाओं का प्रकाशन { सौभरेय दर्पण पत्रिका} व गांवों को छोड़कर शहरों की ओर पलायन किये हुए लोगों द्वारा होलीमिलन समारोह का आयोजन ।
5- समाज में व्याप्त कुरीतियां व रुढियों का उन्मूलन जैसे, दहेजप्रथा, बालविवाह, अशिक्षा क्योंकि अशिक्षित व रुढियों में जकड़ा हुआ समाज कभी भी विकास नहीं कर सकता ।
6- क्षेत्रीय स्तर पर ब्लड डोनेशन, आँखों के ऑपरेशन इत्यादि के लिये चिकित्सीय कैम्प लगवाना
7- प्रांतीय प्रतिनिधि सम्मान समारोह एवं परिचय सम्मेलन ।
8- ब्रह्मा जी लेकर सौभरि जी व आज के अपने स्वसमाज तक के ऊपर एक डॉक्यूमेंट्री तैयार करवाना ।
9- दाऊजी मन्दिर अथवा गोवर्धन कुन्ज में पुस्तकालय की व्यवस्था व स्वसमाज की बहुमूल्य रचनाओं व वस्तुओं के संग्रह के लिये 'मिनी संग्रहालय का निर्माण' ।
10- "अखिल भारतीय सौभरेय ब्राह्मण" सर्वसमाज का वार्षिक सम्मेलन का आयोजन करवाना ।
11- मृत्युभोज पर पूर्णतया प्रतिबंध एवं सामूहिक विवाह सम्मेलन ।
12- सामुदायिक भवन, धर्मशाला व समाज की विरासतों की देखभाल के लिये जन-जन की भागीदारी करवाना ।
13- किसान गौरव सम्मान
14- स्वसमाज के विद्वानों, पुरोहितों व भागवताचार्य को सम्मानित करना ।



तीनों प्रदेशों(उत्तरप्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश) के अंतर्गत आने वाले सभी स्वसमाज के गाँवों से ऐसे प्रतिभावान जो डॉक्टर, इंजीनियर, छात्र-छात्राएं, कलाकार, संगीतकार, खिलाड़ी, बिजनेसमैन, समाजसेवी, अध्यापक, प्रशासनिक अधिकारी जिन्होंने कड़ी मेहनत कर अपने परिवार व समाज का नाम रोशन किया है । हम उनके लग्न, संघर्ष, अचीवमेंट्स आदि आपके समक्ष इस पेज के माध्यम से रखने की कोशिश करेंगे ताकि नई पीढ़ी के बच्चे व युवा उनसे प्रेरित होकर अपने परिवार व समाज  का नाम रोशन कर पाएं ।

वैसे "प्रतिभा" परिचय की मोहताज नहीं होती है । एक प्रतिभाशाली व्यक्ति में एक, दो, कम और अक्सर कई क्षेत्रों के बारे में उच्च क्षमता होती है। किसी भी समाज के उत्थान की पहली सीढ़ी 'हौसला अफजाई का एकजुट समर्थन' है, क्योंकि उसी हौसले से समाज की युवा पीढ़ी के लोग ही हर क्षेत्र में प्रगति कर सकते हैं। किसी भी व्यक्ति की प्रगति उसके परिवार व समाज पर बहुत निर्भर करती है। इसलिए बच्चों को वो सुविधाएं प्रदान करें जो जरूरतन हों ताकि वे हर क्षेत्र में आगे बढ़ें। सच्ची प्रतिभा जल एवं वायु के वेग की भाँति होती है कोई कितना भी प्रतिबंधित करे कभी न कभी, कहीं न कहीं से बाहर आ ही जाती है । ऐसे हमारे स्वसमाज के होनहारों को समाज से परिचित कराने की जरूरत है। इससे प्रतिभावानों व समाज का  सीना गर्व से चौड़ा होता है और हौसला दोगुना । समाज इनके सपने और इनके हौसलों की उड़ान को सम्मान देकर पंख लगाने जैसा काम कर सकता है।
आप सभी स्वजनों से अनुरोध है कि आप अपने-अपने गांव से ऐसी प्रतिभाओं को चिन्हित करें व उनके नाम भेजें ताकि उन प्रतिभाओं को आप सबसे रूबरू करा सकें। वो प्रतिभावान आप में से भी कोई भी हो सकता है।



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समाज के तीनों अक्षरों के मेल से बनता है "सभ्य मानव जगत" और इन्हीं तीनों शब्दों का सूक्ष्म रूप है 'समाज' और इसमें भी एक समाज की छोटी इकाई 'स्वसमाज' जो कि  अपने लोगों का ऐसा समूह होता है जो बाहर के लोगों के मुकाबले अपने लोगों से काफी ज्यादा मेलजोल रखता है। किसी स्वसमाज के अंतर्गत आने वाले व्यक्ति एक दूसरे के प्रति परस्पर स्नेह तथा सहृदयता का भाव ज्यादा रखते हैं। दुनिया के सभी समाज अपनी एक अलग पहचान बनाते हुए अलग-अलग रस्मों-रिवाज़ों का पालन करते हैं। एक ही समाज लोग अन्य प्रदेशों में निवास करने के बाद भी इनके रहन-सहन, वेश-भूषा, याज्ञिक अनुष्ठानों व पूजा प्रचलन, खान-पान, बोलीभाषा आदि मिलती जुलती प्रतीत होती हैं । समाज के अंदर मनाये जाने वाले त्योहार समाज के परिवारों के मिलन के बीच की कड़ी होते हैं  । यदि यूं कहें कि इस मिलन से पारिवारिक और सामाजिक सामंजस्य बढ़ता है तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी । स्वसमाज द्वारा की गई इस पहल से समाज को एक मंच  पर लाया जा सकता है और इससे सामाजिक व पारिवारिक रिश्तों की कड़ी और अधिक मजबूत होगी ।

रोजगार की तलाश में आज गांवों से हर कोई पलायन कर शहरों में बसता जा रहा है हमारा समाज भी इस पलायन से अछूता नहीं है । अच्छे रोजगार,बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा  व्यवस्था व अच्छे रहन सहन की सुविधाओं के लिए समाज के लोग भी शहरों में बस रहे है चूँकि गांवों की अपेक्षा शहरों में जातीय समाज के लोगों से मिलना जुलना सीमित रहता है, रिश्तेदारों से भी थोड़ी दूरियां बन जाती है और सबसे ज्यादा परेशानी तब आती है जब बच्चे बड़े होकर रिश्ते करने लायक हो जाते है ऐसे में सीमित संपर्कों के चलते रिश्ते तलाशने और भी मुश्किल हो जाते हैं । वैसे भी हर व्यक्ति इस सम्बन्ध में अपने पारिवारिक सदस्यों व रिश्तेदारों पर निर्भर रहता है जिनका भी दायरा सीमित होता है । कई बार किसी का बच्चा उतना पढ़ा लिखा होता है कि उसके लिए जीवन साथी की तलाश अपने सीमित दायरे में करना बहुत मुश्किल हो जाता है । समाज को ऐसी ही मुसीबतों से निजात दिलाने के लिए एक सौभरेय ब्राह्मण वैवाहिक वेब साईट की शुरुआत की जरुरत है। इस वेब साईट में अपने बच्चों को रजिस्टर कर उनके लायक प्रोफाइल देखकर रिश्ते के लिए पसंद की प्रोफाइल के बच्चे के परिजनों से संपर्क कर रिश्ता किया जा सकता है । इस वेब साईट की सहायता से  समाज के योग्य युवाओं के लिए योग्य वर तलाशने का जरुरी व महत्तवपूर्ण मंच साबित होगा ।

आज समाज में रीतिरिवाज, अन्धविश्वास, अशिक्षा, दहेजप्रथा, बालविवाह, गरीबी, अधिकारों का हनन, शोषण, कुरीतियाँ, दिखावा आदि बुराइयों का बोलबाला जगह-जगह दिखाई पड़ ही जाता है। ये सभी कारक समाज के विकास में बाधक हैं। इन बुराइयों के प्रसार में हम सब जिम्मेदार हैं शायद यह कहना गलत नहीं होगा क्योंकि जब तक दिखावा-प्रदर्शन व सामाजिक कुरीतियों पर रोक नहीं लगेगी तब तक सामाजिक बुराइयों का निर्मूलन नहीं होगा और इससे समाज के सर्वांगीण विकास का जो सपना है वो महज एक सपना ही बना रहेगा। मुद्दों की जानकारी फैलाने के लिए आप सोशल मीडिया का यूज कर सकते हैं। जानकारी भरे आर्टिकल्स पोस्ट करें, आप जो भी कुछ कर रहे हैं, उसके बारे में लिखें ।
आयोजित होने वाले स्वसमाज कार्यक्रमों को अटेंड करने, सपोर्ट तथा फंड डोनेट करने के लिए अपने फ्रेंड्स को बुलाएँ। फेसबुक, ट्विटर, इन्स्टाग्राम आदि ये सभी शुरुआत करने के लिए काफी अच्छे प्लेटफॉर्म साबित होंगे। आप स्वसमाज द्वारा किए जाने वाले कामों को सपोर्ट करने के लिए मौजूदा NGO व चैरिटी को ऑनलाइन मनी डोनेट कर सकते हैं, हालांकि ऐसा करने से पहले, एक बार आपको उनके द्वारा इन पैसों को खर्च करने के तरीकों के ऊपर रिसर्च जरूर कर लें । आप चाहें तो सीधे NGO व चैरिटी द्वारा किये गए शोशलफंडिंग का जायज़ा लेने स्वयं भी उन जगहों पर जा सकते हो जहाँ पर ये काम कर रहे हैं और वहाँ देखें कि उनके पास में इस फंड को यूज करने के सारे प्लान्स तैयार हैं या नहीं। अक्सरकर लोग पैसे को इस्तेमाल करने तरीके को जाने बिना आपको ऐसे ही पैसे नहीं दे देंगे। स्वसमाज की स्वयंसेवी संस्थाएँ एक लंबे से अग्रणी भूमिका निभाती रही हैं इन्होंने जनता के प्रति सेवा, सरोकार और घनिष्ठता के उत्कृष्ट गुणों का परिचय दिया है। इसके अलावा नये कार्यक्रमों को प्रारम्भ करने एवं उनका सफलतापूर्वक क्रियान्वयन करने की क्षमता भी दर्शाई है ।
समाज में रहने वाले लोगों के अनुभव सकारात्मक बदलाव लाने के लिए बेहद जरूरी हैं । व्यक्ति समाज को बनाने-बिगाड़ने की तो खूब बातें करता है लेकिन बड़ी विडम्बना है कि खुद को छोडकर पूरा समाज बदल देना चाहता है। समाज को तभी बदला जा सकता है जब हमारी मानसिकता बदलेगी।

किसी भी समाज के उत्थान के लिए सबसे महत्वपूर्ण तीन चीजें है जो निम्न लिखित हैं-
 1- समय 2 - परिश्रम 3- धन
अगर आप 24 घंटे में से 1 घंटे का भी समय निकल कर अपने समाज के लोगों से फ़ोन के माध्यम से, फेसबुक के माध्यम से, पत्राचार से या फिर अधिक समय मिले तो समाज के लोगों से मिलकर के समाज के बारे में चर्चा कर सकते हैं ।
परिश्रम का अर्थ है कि एक वर्ष में कम से कम एक बार तो हम अपने समाज के लोगों से मिलने दूसरे जिलों या प्रदेशों में जाकर सम्मेलन या बैठक  के जरिये लोगों से संवाद करें, और ये हो सकता है । यदि हम यही सोचेंगे कि समाज के लिए कौन दौड़ धूप करे तो हमें कुछ भी हासिल नहीं होगा |
यह तो आप सभी भलीभांति जानते ही हैं कि किसी भी संगठन को मजबूत बनाने के लिए धन की आवश्यकता बहुत जरूरी है और आपका कर्तव्य है कि अपने सामाजिक संगठन को मासिक या सालाना आर्थिक मदद ज़रूर करें । अपने रोज़ के खर्चे में से मात्र 1₹  बचा के यदि जोड़ें तो वर्ष में 365 दिन होते हैं 1 रूपये के हिसाब से यह धनराशि पप्रति व्यक्ति द्वारा 365 रूपये हो जाती है जो कि सामाजिक सहयोग के लिए काफी मददगार साबित होगी । समाज के उत्थान के लिए हमें मिलकर आगे आना होगा 'विकास मुहिम' की इस आवाज को मजबूत व बुलन्द करना होगा, तभी हम सार्थक परिणाम ला सकते हैं।


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🌷स्वसमाज के लिए बहुत से विचार अक्सरकर मन में आते हैं। ऐसे सैकड़ों प्रश्न हैं जिन पर आप अपनी राय दे सकते हैं जो निम्नलिखित हैं-
1- क्या समाज की कार्यकारिणी में सदस्य केवल समाज के सम्मानित एवं वरिष्ठ व्यक्ति होने चाहिए?
2- क्या सामाजिक सोच केवल एक उम्रदराज व्यक्ति की ही है ?
3- क्या समस्त जिलेवार  इकाईयों को कम से कम वर्ष में एक बार कार्यकारिणी की बैठक आवश्यक करनी चाहिए ?
3- क्या समाज को मजबूत बनाने के लिए सामाजिक संगठन बनाना आवश्यक है?
4- क्या स्वसमाज में ऐसे किसी सामाजिक संघठन की वास्तव में आवश्यकता है जो समाज के नैतिक मूल्यों की परवाह व रीति रिवाजों की देख-रेख करे?
5- क्या अलग-अलग संघठन से समाज में कुछ फायदा हो सकता है?
6-क्या हम सभी समाज के बारे में गम्भीर हैं ?
सामाजिक कार्यो का एक समग्र मॉडल होना चाहिए, जिससे बेहतर परिणाम प्राप्त हो सके और समाज का हित हो?
 7- क्या ऐसा सामाजिक फॉरम होना चाहिए जिससे समाज के बच्चे-बच्चे को सामाजिक जानकारियाँ समय-समय पर प्राप्त होती रहें?
8- क्या हमारा समाज एक मंच पर एकत्रित हो सकता है?
9- क्या स्कूलों, धर्मशालाओं के निर्माण से समाज को लाभ है?
10- क्या आज तक सभी समाज के लोग स्वसमाज के लिये हितचिंतक नहीं थे?
11- क्या समाज में वही व्यक्ति समाज के लिए कार्य कर सकता है जिसका घर में जिम्मेदारी का भार कम है?
12- क्या समाज की युवा पीढ़ी समाज के बारे में  भलीभांति जानती है?
क्या अलग-अलग सोच और द्वेष से समाज कभी हट पायेगा?
13-क्या आज के डिजिटल जमाने में सोशल मीडिया के के जरिये घर पर बैठे-बैठे समाज को नई दिशा दे सकते हैं ?
14- क्या आज अस्तित्व में कोई ऐसा सामाजिक संघठन हैं जिनकी समाज को जरूरत है?
15- क्या कोई भी ऐसा व्यक्ति समाज में नहीं है जो कि समाज को एक विचार और नियम के सूत्र में बाँध के रख सके?
16- क्या अखिल स्वसमाज को नियंत्रण करने वाली कार्यकारिणी व प्रणाली है जो समाज को सही दिशा में ले जा सके ?
17- क्या समाज के कार्यकर्ता एक सामाजिक न हो कर सिर्फ दिखावटी रह गए हैं ?
18- क्या ऐसा व्यक्ति जो समाज के नियमों का उल्लंघन करे वो सामाजिक नहीं हो सकता?
क्या स्वसमाज की संस्था या कमैटी की देख-रेख में सामाजिक गतिविधि का संचालन होना चाहिए ?🌷


ओमन सौभरि भुर्रक (भरनाकलां, मथुरा)



AngiraRishi,forefather of Saubhri Rishi
Learn BrajBhasha Greeting

Friday, 10 January 2020

स्वसमाज की विरासतों की देखभाल व स्वजनों के कल्याणकारी सहायता हेतु ऑनलाइन सहयोग

स्वसमाज की विरासतों की देखभाल व स्वजनों के कल्याणकारी सहायता हेतु ऑनलाइन मदद पहुंचाने के उद्देश्य से एक पोर्टल व ऐप लॉन्च  किये जाने की आवश्यकता है। इस वेब पोर्टल व ऐप के जरिए कोई भी अपनी इच्छानुसार स्वसमाज की आर्थिक सहायता के लिए इस कोष (ब्रह्मर्षि सौभरेय ब्राह्मण फंड) में दान दे सकता है।
 इसके माध्यम से स्वसमाज के सातों सेंटरों (मथुरा, अलीगढ़/हाथरस, बरेली, सीतापुर, भिण्ड, जबलपुर, दिल्लीNCR) के खाते में वार्षिक 3-4 लाख तक की राशि भेजी जा सकेगी।ये एक ऐसा पोर्टल होगा जहाँ पर स्वजन अपनी इच्छानुसार आर्थिक सहयोग दे सकेंगे।



 इस पहल के जरिये लोगों को एक-एक करके धन एकत्रित करने के लिए जो कहना पड़ता है तथा फिर उनके नाम से पर्ची काटने का दबाव बनाना पड़ता है, उससे छुटकारा मिलेगा क्योंकि बहुत लोग इस' अनैच्छिक व्यवहार' को कठघरे में खड़ा करते हैं, उन्हें लगता है कि किसी से ज्यादा पैसे लिये जा रहे हैं और किसी से कम साथ ही झूठी घोषणा करने वालों से भी बचा जा सकेगा ।

 मान लो की हमारे स्वसमाज की जनसंख्या 2 लाख है और ये सब प्रतिव्यक्ति 10 रुपये भी सहयोग हेतु देते हैं तो 20 लाख रुपये व 100 करते हैं 20 करोड़ बडी आसानी से एकत्रित हो जाएंगेऔर इससे किसी की जेब पर भी ज्यादा खर्च नहीं आएगा और इन रुपयों के माध्यम से क्षेत्रीय स्वसामाजिक विकास कार्यों को पूरा किया जा सकता है । *इससे पहल के जरिये स्वसमाज के लोगों को जोड़ा जा सकता है, सबकी सहभागिता के तौर भी देखा जा सकता है । इस प्रक्रिया से उन लोगों से भी बचा जा सकेगा जो ज्यादा दान देते हों फिर उसके बाद उन्हें लगता हो कि हम ही समाज के सूत्रधार हैं और साथ ही वो लोग भी वंचित नहीं होंगे जो कहते हैं कि हमें कुछ पता ही नहीं । संग्रह के लिए पैसे की उगाही भले कम रुपयों में हो परन्तु सहभागिता सभी की नितांत आवश्यक है । तभी हम अधिक-अधिक स्वजनों को एक ही माला में सब बीज जैसे देख पाएंगे ।

इस फंड से यथासम्भव समाज के अभावग्रस्त विद्यार्थियों को उचित शिक्षा हेतु छात्रवृत्ति/अध्ययन ऋण आदि की व्यवस्था हो सकेगी। इसके अतिरिक्त  फंड से समाज में शिक्षा का प्रसार, प्रचार, कैरियर विकास, व्यक्तित्व विकास, सुसंस्कार एवं उत्तम शिष्टचार हेतु सामग्री प्रकाशन, शिविर, गोष्ठी इत्यादि का निरन्तर प्रयास हो सकेगा।



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सांसद निधि व विधायक निधि से हर समाज के उत्थान हेतु बारातघर, धर्मशाला, स्कूल व छात्रावास इत्यादि के लिये पैसा आवंटित किया जाता है। सरकारी योजनाओं के माध्यम से हम स्वसमाज (अंगिरसगोत्री सौभरेय ब्राह्मण समाज) के लिए इन कामों की अर्जी क्षेत्रवार वहाँ के निवासी (स्वजन) इकट्ठा होकर अपने विधायक व सांसद के लिये दे सकते हैं । इस योजना के तहत गाँवों के अलावा शहरों में भी अच्छी जगह पर जमींन अथवा भवन मुहैया कराया जाता है ।
जागरूक समाज इन योजनाओं का लाभ ले चुके हैं । अगर हम स्वसमाज की बात करें जहाँ हम बहुलता में रहते हैं वहाँ इन स्कूल व धर्मशाला इत्यादि का निर्माण होना चाहिए... जैसे यमुना के आर वाले गांवों में मथुरा, यमुना के पार वाले गाँवों में हाथरस या अलीगढ़, सीतापुर जिले के गाँवों के लिए सीतापुर , राजस्थान के गाँवों में अलवर अथवा जयपुर,  और मध्यप्रदेश में ग्वालियर और जबलपुर ।
 किसी निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले विधान सभा व विधान परिषद सदस्य बदल सकते हैं लेकिन "आवंटन" निर्वाचन क्षेत्र के लिए होता है इसलिए इस योजना के अन्तर्गत निर्माणाधीन कार्य पर कार्रवाई निरन्तर जारी रखी जाती है । विधायक निधि के धन का का प्रयोग विधानसभा में विकास कार्यों का संचालन करने में होता है । विधायकों को हर साल 'विधायक निधि' आवंटित की जाती है, जिसका इस्तेमाल विधायक की सलाह पर जिला प्रशासन "विकास कार्यों" के लिए जारी करता है।

 हालांकि स्वसमाज पूरी तरह से सम्पन्न है उन्हें किसी के सहारे की जरूरत नहीं लेकिन ये जो योजना वो सरकार की तरफ से है इसलिए यहाँ पर आपकी भागेदारी बनती है और इसका फायदा उठाना ही चाहिये ।




: अंगिरसगोत्री ब्राह्मण ओमन सौभरि भुर्रक (भरनाकलाँ)

Monday, 6 January 2020

महर्षि सौभरि जी विराजमान मूर्तिरूप


सौभरि ब्राह्मणों के यमुना के पश्चिम आर वाले 12 गांवों का विवरण

तहसील छाता, गोवर्धन, मथुरा (उत्तरप्रदेश) के यमुना के पश्चिम दिशा वाले 12 गाँवों का विवरण-
1.भरनाकलां-
मूल नाम- भरनाकलां
ब्लॉक- चौमुहाँ
थाना-बरसाना
जिला- मथुरा
संभाग/मंडल- आगरा
प्रदेश- उत्तरप्रदेश
देश -भारत
महाद्वीप-एशिया
भाषा-हिन्दी
मानक समय-IST(UTC+5:30)
समुद्र तल से ऊँचाई-184
दूरभाष कोड़- 05662
विधानसभा क्षेत्र- छाता
तहसील-गोवर्धन
लोकसभा क्षेत्र- मथुरा
जनसंख्या-4500
परिवार-450
साक्षरता-75%
स्कूल/कॉलेज- सरस्वती शिशु मंदिर, प्राइमरी विद्यालय, कैप्टन राकेश इंटर कॉलेज
बैंक- सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया
हॉस्पिटल-गवरमेंट अस्पताल
मंदिर-बाँके विहारी मंदिर
बाजार-शनि बाजार
विश्व के अन्य सभी देशों की तुलना में “भारत” वास्तव में आज भी गांवों का ही देश है। कला, संस्कृति, वेशभूषा के आधार पर आज भी ‘गांव’ देश की रीढ़ की हड्डी बने हुये हैं। प्रत्येक गांव का एक अपना ही महत्व होता है जिसका पता वहां रहने वाला ही जानता है। गांव में चक्की के मधुर गीत से ही सवेरा आरंभ होता है।
मेरा गांव भरनाकलां भी भारत के लाखों गांवों जैसा ही है । लगभग साढ़े चार सौ घरों की इस बस्ती का नाम भरनाकलां है !भरनाकलां गांव छाता-गोवर्धन रोड पर स्थित है । गांव के पूर्व में भरनाखुर्द, पश्चिम में ततारपुर, उत्तर में सहार, दक्षिण में पाली गांव स्थित है । गांव में खाद गोदाम भी है ।
गांव के तीनौं तरफ प्रमुख तालाब हैं इसके पूर्व में श्यामकुण्ड, पश्चिम में नधा एवं दक्षिण में मुहारी(मुहारवन) है ।
लोग हर क्षेत्र में कार्य करने में सक्षम होते जा रहे हैं।गांव में बारात के ठहरने के लिए बारात घर की भी व्यवस्था है ।  पीने के स्वच्छ जल की व्यवस्था गांववासियों ने बिना सरकार की सहायता लिए बगैर,स्वयं यहाँ के लोगों व्यवस्थित की गई है ।
अगर हम गांव की आबादी स्वसमाज के अनुसार देखते हैं तो करीब 50 प्रतिशत से ज्यादा की भागेदारी है और अगर अपने समाज के गोत्र के हिसाब से यहाँ, वर्गला, ईटोंइयाँ, कुम्हेरिया, पचौरी, भुर्र्क, तगर, परसैया आदि परिवार मिलते हैं । गाँव के उत्तर में कलकल करती हुई आगरा नहर बहती है । चारों और खेतों की हरियाली गाँव की शोभा बढ़ाती है । पूर्व और दक्षिण में भरतपुर फीडर(बम्बा)और पश्चिम में खार्ज बम्बा कृषि सिंचाई की पूर्ति करता है। गाँव से थोड़ी दूरी पर एक बड़ा सा बाँके विहारी जी का मंदिर है जिसके पास मुहारवन तालाब है । पाठशाला और अस्पताल गाँव के बाहर है । गाँव के सभी वर्णों के लोग यहाँ रहते हैं ।
गाँव में अधिकतर किसान रहते है ।मेरे गाँव में गेंहू, चना, मक्का,ज्वार, चावल, सरसों एवं गन्ने की उपज होती है । कुछ लोग भांग, तंबाखू का सेवन भी करते हैं अन्य जगहों की तुलना करने पर फिर भी मेरा गाँव अपने आप में अच्छा हैं । यहाँ प्रकर्ति की शोभा है, स्नेहभरे लोग हैं, धर्म की भावना है और मनुष्यता का प्रकाश है । रोजगार की वजह से दिल्ली की तरफ लोगों का पलायन बड़ी मात्रा में हो रहा है ।
हमारे गांव में जो आगरा नहर है वह नहर नहीं उसे ‘जीवन की धारा’ कहिए, क्योंकि जहाँ-जहाँ भी वह पहुंची है, सूखे खेतों में नया जीवन लहलहा उठा है। बंजर भूमि भी सोना उगलने लगी है। जब हम घर-द्वार से दूर किसी नगर में या वहां से भी दूर परदेश में होते हैं तो भी अपना गांव स्वप्न बनकर हमारे ह्रदय में समाया रहता है। रह-रहकर उसका स्मरण तन मन में उत्तेजना भरता रहता है।
यहाँ की दो-तिहाई से अधिक जनसंख्या गांवों में रहती है |आधे से अधिक लोगों का जीवन खेती पर निर्भर है इसलिए ‘गांवों के विकास’ के बिना देश का विकास किया जा सकता है, ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता | गाँव के अंदर ही बैंक, एटीएम व डाकघर स्थित है। यहाँ पक्की सड़कें एवं बिजली की उत्तम उचित व्यवस्था है ।
होली, दीवाली, रक्षाबंधन, दशहरा , शरद पूर्णिमा बडे धूमधाम से मनाये जाते हैं विशेषकर होली का त्यौहार बड़े ही हर्ष-उल्लास के साथ सब ग्रामवासी मनाते हैं । रंगवाली होली जिसे धुलैंडी बोलते हैं उसी दिन गाँव का मेला होता है । मेले वाले दिन सभी नाते- रिश्तेदार अपने-अपने रिश्तेदारों के यहाँ आते हैं । उस दिन गांव में दिन निकलते ही होली का खेल शुरू हो जाता है ।सब लोग हाथों में रंग, गुलाल लिए घरों से बाहर निकल कर सभी लोगों को रंग लगाते हैं और DJ और बाजे के साथ गांव की पूरी परिक्रमा करते हैं । ये एक जुलूस की तरह होता है । ये जुलूस होली के उत्सव में चार चांद लगा देता है । यह एकता का प्रतीक है । इसमें सभी धर्म-जाति के लोग होते हैं ।
क्षेत्रफल के हिसाब से वैसे गांव ‘तीन थोक’ में बँटा हुआ है, मेले की फेरी की शुरुआत 10 विसा के रामलीला स्थान से होती है । इसके बाद फेरी ‘पौठा चौक’से होते हुए ‘कुम्हरघड़ा हवा’की ओर बढ़ती है । इसके बाद 2.5 विसा की तरफ बढ़ते हैं जो कि ‘ईटोइयाँ परिवारों’ को रंग लगाते हुए आगे बढ़ते हुए शोभाराम प्रधान जी के घर के सामने लोग भांग का भोग लेते हैं ।
विश्राम लेने के बाद आगे बढ़ते हुए ‘कुम्हेरिया परिवारों’ की तरफ होते हुए 1.25 विसा में प्रवेश करते हैं, यहीं एक छोटा सा मंदिर भी है, सब लोग ठाकुर जी को रंग लगाते हैं । यहाँ आकर सारे ग्रामवासी ‘तीनों थोकौं’ इक्ट्ठे हो जाते हैं ।इस तरह से लोग धीरे -धीरे आगे रामलीला स्थान की तरफ ‘सेलवालों’ की पौरी से होते हुए चलते हैं ।
यहाँ से रास्ता थोड़ा सँकरा है इसलिए DJ वाली गाड़ी को निचले परिक्रमा मार्ग से निकालते हैं ।
इसके बाद फेरी का प्रवेश फिर से 10 विसे में होता है और रामलीला में मैदान पर आकर इस रंगवाली होली का समापन क़रते हैं । सब लोग अपने-अपने घरों को चले जाते हैं और नहा-धोकर दोपहर से लगने वाले मेले की तैयारी करते हैं । सब के यहाँ पर 12 बजे के बाद रिश्तेदार आने लगते हैं । चारों तरफ खुशियों का नजारा होता है ।
शाम को करीब 3 बजे से ‘ भरनाकलां काली कमेटी’ की तरफ से ‘काली’, पट्टेबाजी, घायल प्रदर्शनी व अलग-अलग अनौखी झाकियां निकाली जाती है । सुबह वाली ‘होली की फेरी’ की तरह ही इसे पूरे गांव में होकर निकालते हैं ।
6:30 बजे शाम तक इसका समापन उसी रामलीला स्थान पर आकर हो जाता है ।फिर से सब अपने -अपने घर चले जाते हैं और अतिथियों की आवभगत करते हैं । पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं का भी बराबर योगदान इस दिन रहता है । वह सुबह से आने वाले सगे संबंधियों के लिए व्यंजनों की व्यवस्था करती हैं ।
इसके बाद करीब 11 बजे से रात को लोकनृत्य, नौटंकी, रसिया दंगल आदि का प्रोग्राम सुबह 4 बजे तक होता है । इस तरह से हर साल यही परंपरा सदियों से चली आ रही है ।
इसी तरह से ब्रज के अन्य गॉंवों में क्रमवार होली के मेले के आयोजन होते हैं । इसी तर्ज पर होली पर आपस मिलने के बहाने घर छोड़कर रह रहे शहरों में रहनेवाले अपनी समाज के लोग प्रतिवर्ष मात्र, नोएडा, ग्वालियर इत्यादि जगहों पर ‘होली मिलन’ समारोह क़रते हैं ।
2.भरनाखुर्द-
भरनाखुर्द गांव आगरा नहर की तलहटी में बसा हुआ है । गांव में ब्रजक्षेत्र का सबसे बड़ा कुंड ‘सूरजकुण्ड’ इसी गांव में स्थित है । आधे से ज्यादा गांव टीले पर बसा हुआ है ।
गांव में 80%आबादी स्वजनों (सौभरी ब्राह्मण समाज) की है । गांव के प्रवेश द्वार के पास बच्चों की शिक्षा के लिए महर्षि सौभरि इंटरकॉलेज बना हुआ है ।
यह भूमि गोस्वामी कल्याणदेव जी की जन्मस्थली है जिनकी तपस्या से स्वयं ‘ब्रज के राजा कृष्ण के बड़े भ्राता’श्री बलदाऊ जी’ की मूर्ति स्वप्न में दिखी थी और इसके बाद ‘श्री दाऊजी मंदिर(बलदेव)’ का निर्माण कराया । यह स्थान मथुरा से 14KM दूर मथुरा-सादाबाद रोड पर स्थित है ।
आज उन्ही के प्रभाव से नए गांव’ दाऊजी’ की स्थापना हुई जहाँ उनके वंशज “दाउजी के मंदिर’ के पंडे-पुजारी हैं । यहाँ पर सम्पूर्ण देश-विदेशों से यजमान व दर्शनार्थी ‘रेवती मैया व दाउ बाबा के दर्शन करने आते हैं ।
सूरजकुण्ड होने की वजह से भरनाखुर्द गांव के निवासियों में सूर्य की तरह तेजवान व गर्मजोशी वाले हैं । इस गांव का मेला धुलैंडी के बाद चैत्र कृष्ण द्वितीया को मनाया जाता है । संयोगवश दाउजी का हुरंगा भी द्वितीया को ही मनाया जाता है ।
3.पेलखू-
पेलखू गांव भरनाकलां से 5 KM की दूरी पर स्थित है । यह गांव गोवर्धन तहसील के अन्तर्गत आता है । यहाँ पर स्वसमाज के अलावा गुर्जर भी बड़ी मात्रा में निवास करते हैं । स्वसमाज के अगर गोत्रों की बात की जाय तो “पधान पचौरी” व “भुर्रक” उपगोत्रों की बहुलता है ।करीब पूरे गांव में 500 घर के आसपास हैं जिनमें आधे स्वसौभरी जनों के हैं ।
अपने 12 गांव जो तहसील छाता और गोवर्धन के अंतर्गत आते हैं उनमें ‘पेलखू’ गांव ने शान्ति की मिसाल कायम की हैं क्योंकि स्वजनों के अलावा ‘गुर्जर’ भारी मात्रा में हैं । गांव पेलखू के पश्चिम में भरनाखुर्द, पूर्व में राल, उत्तर में शिवाल व दक्षिण में
कोनई गांव पड़ता है ।
4.मघेरा-
गांव मघेरा गोवर्धन-वृन्दावन मार्ग पर स्थित है । 12 गॉंवों से इकलौता गांव है जो कि मथुरा तहसील में आता है । गांव की सीमाएं गांव अझही, गांव राल, छटीकरा व गांव भरतिया से लगी हुई हैं । मघेरा गांव में स्वजन सौभरि ब्राह्मण समाज का बोलबाला है ।
उपगोत्र के हिसाब से ‘भुर्रक गोत्र’ बड़ी बहुलता में मिलता है । वो इस गांव के ‘भूमियां’ हैं जहाँ भी भुर्रक गोत्री अन्य गॉंवों व शहरों में रहते हैं वो सब यही के ‘मूल निवासी’ हैं । ज्यादातर यहाँ के लोग शहरों में निकले हुये हैं । अपने 12 गांवों की तुलना में यहाँ के निवासी सबसे ज्यादा ‘शहरी’ हैं ।
साक्षरता का जो अनुपात है, उसमें भी यह गांव अव्वल है । गांव का मेला को मनाया जाता है ।
5-पलसों-
पलसों गाँव सती स्वरूपा ‘श्री हरदेवी जी’ की कर्मस्थली व पुण्यस्थली है । यह गोवर्धन-बरसाना रोड़ पर स्थित गांव पलसों ‘परशुराम खेड़ा’ के नाम से भी जाना जाता है । शुरुआत से इस पावन गांव से बड़े-बड़े पहलवान होते रहे हैं । वर्तमान में तहसील गोवर्धन व छाता में पड़ने वाले सौभरि ब्राह्मण समाज के गांवों में जनसंख्या व क्षेत्रफल के हिसाब से दूसरे स्थान पर है ।
आसपास के गाँव जैसे, मडोरा, महरौली, भगोसा, डिरावली, छोटे नगले पलसों गांव की सीमा से लगे हुए हैं । गांव में उपगोत्रों के हिसाब से ‘परसईयाँ’ गोत्र बहुलता में पाया जाता है । 
गांव के समीप ही गोवर्धन- बरसाना सड़कमार्ग पर ‘श्री हरदेवी जी ‘ का मन्दिर बना हुआ है । पलसों एक बर्ष अंदर दो मेलों का आयोजन कराने वाला इकलौता स्वजातीय गांव है । होली के मेले का आयोजन चैत्र कृष्ण तृतीया को तथा ‘श्री सती हरदेवी जी’ का मेला श्रावण मास की शुक्ल अष्टमी को होता है ।
गांव के प्रवेशद्वार स्थित श्री शंकर इंटर कॉलेज आज भी शिक्षा के मामले में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है ।
गांव के पास ही पेट्रोल पंप व बैंक भी है जो लोगों जनसुविधा के हिसाब से आदर्श गांव की ओर इंगित करता है । गांव के बाहर चारागाहों की तरह पशुओं के बैठने का भी पूरा इंतज़ाम है जिसे ‘राहमीन’ कहते हैं ।
एक वृतांत के अनुसार परसों अथवा पलसों नामक गाँव गोवर्धन-बरसाना के रास्ते में स्थित है। ब्रजमण्डल स्थित भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े स्थलों में से यह एक है। जब अक्रूर जी, बलराम और कृष्ण दोनों भाईयों को मथुरा ले जा रहे थे, तब रथ पर बैठे हुए श्रीकृष्ण ने गोपियों की विरह दशा से व्याकुल होकर उनको यह संदेश भेजा कि मैं शपथ खाकर कहता हूँ कि परसों यहाँ अवश्य ही लौट आऊँगा तब से इस गाँव का नाम परसों हो गया।
6.सीह-
गांव सीह भी पलसों गांव से 2 KM दूर बरसाने की तरफ गोवर्धन-बरसाना रोड़ पर स्थित है ।
जैसा कि गांव का नाम है उसी से ज्ञात होता है कि यहाँ “सीहइयाँ’ उपगोत्र के लोग ‘भूमियां’ का ताज लिए हुए हैं । दो तिहाई लोग ‘सीहइयाँ’ उपगोत्र के हैं व इनके बाद उपगोत्र ‘सिरौलिया’ आते हैं ।
गांव में होली के मेले का आयोजन चैत्र कृष्ण चतुर्थी को मनाया जाता है
सबसे ज्यादा स्वजन ‘पुरोहिताई’ में इसी गांव से निकल कर देश के सभी हिस्सों में अपनी’ब्राह्मण कला संस्कृति’ का परिचय दे रहे हैं । गांव की सीमाएं पलसों, डिरावली, देवपुरा, डाहरौली, हाथिया गांव से सटी हुईं हैं ।
7.डाहरौली-
गांव डाहरौली गोवर्धन-बरसाना रोड़ पर स्थित है ।
जनसंख्या के हिसाब से छोटा गांव है । सीह की तरह ही पुरोहिताई में यह गांव भी अग्रणी है ।
राधारानी की जन्मस्थली बरसाना के बिल्कुल निकट है।
अन्य गांवों की तुलना में सीह, पलसों, डाहरौली तीनौं गांवों में हल्की से राजस्थान की झलक देखने को मिलती है । यहाँ जलस्तर थोड़ा नीचा है ।
होलीदहन से एक दिन पहले फ़ाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी को गांव के मेले का आयोजन होता है ।
8. भदावल-
गांव भदावल छाता–बरसाना रोड पर स्थित है । भदावल गांव की सीमाएं तहसील छाता, नगरिया, खानपुर आदि गांवों से लगी हुई है। होली पर मनाया जाने वाला मेला धुलैंडी (रंगवाली होली) के दिन होता है ।
आगरा नहर की तलहटी में बसा हुआ है ।
9.खानपुर-
खानपुर गांव छाता तहसील से 2 KM की दूरी पर बसा हुआ छोटा गांव है ।
गांव की स्थति अतीत में थोडी कमजोर थी लेकिन वर्तमान में अन्य स्वजातीय गांवों को विकास के मामले में कड़ी टक्कर दे रहा है।
लगभग सभी गांववासियों ने छाता में प्रॉपर्टी में इन्वेस्ट किया हुआ है ।
कृषि के अलावा ट्रैक्टरों का बिजनैस भी विकास को नया आयाम देता है ।
इसकी गांव की 5 गांवों में होती है और वो गांव हैं खायरा, भदावल, नगरिया, खानपुर, बिजवारी ।
गांव के मेले का आयोजन …..
10.नगरिया-
नगरिया गांव भी आगरा नहर से थोड़ा आगे छाता-बरसाना मार्ग पर स्थित है ।
उपगोत्रों के हिसाब से ‘दुरकी’ उपगोत्र के लोग यहाँ बहुसंख्यक हैं । जनसंख्या के लिहाज से यह 12 गांवों में सबसे छोटा गांव है ।
लेकिन कृषि के मामले में यह गांव सभी गाँवों से ऊपर है । होली पर मनाया जाने मेला….
11.-बिजवारी-
बिजवारी गांव बरसाना-नंदगांव मार्ग पर स्थित है ।
मुख्य रोड़ से आपको करीब 3 KM चलना पड़ता है गांव की ओर । यह भी छोटा सा गांव है और “रौसरिया उपगोत्री” यहाँ के भूमियां हैं ।
गांव के पास में ही बहुत मनोहर तालाब है ।
बिजवारी गांव की सीमाएं गांव खायरा, नन्दगांव आदि गांवों से लगी हुई हैं ।
होली के उपलक्ष्य में आयोजित होने वाले मेलों में बिजवारी का मेला सबसे पहले फाल्गुन शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है जिसे ‘बिजवारी छठ मेला’ के नाम से भी पुकारते हैं ।
वृतांत के अनुसार बिजवारी नन्दगाँव से डेढ़ मील दक्षिण-पूर्व तथा खायरा गाँव से एक मील दक्षिण में स्थित है। इस स्थान का श्रीकृष्ण तथा बलराम से घनिष्ठ सम्बंध है। प्रसंग जब अक्रूर जी, बलराम और कृष्ण दोनों भाईयों को मथुरा ले जा रहे थे, तब यहीं पर दोनों भाई रथ पर बैठे थे। उनके विरह में गोपियाँ व्याकुल होकर एक ही साथ “हे प्राणनाथ!” ऐसा कहकर मूर्च्छित होकर भूतल पर गिर गईं। उस समय सब को ऐसा प्रतीत हुआ, मानो आकाश से विद्युतपुञ्ज गिर रहा हो। विद्युतपुञ्ज का अपभ्रंश शब्द ‘बिजवारी’ है। अक्रूर जी दोनों भाईयों को लेकर बिजवारी से पिसाई, सहार तथा जैंत आदि गाँवों से होकर अक्रूर घाट पहुँचे और वहाँ स्नान कर मथुरा पहुँचे। बिजवारी और नन्दगाँव के बीच में अक्रूर स्थान है, जहाँ शिलाखण्ड के ऊपर श्रीकृष्ण के चरण चिह्न हैं। सौभरि जी के मंदिर के जो महंत हैं वो उन्ही के वंशज “सौभरेय ब्राह्मण” ही हैं ।
12-खायरा गाँव-(सौभरेय ब्राह्मण समाज का सबसे बृहदगाँव)-
खायरा गाँव-(सौभरेय ब्राह्मण समाज का सबसे बृहदगाँव)-
गांव खायरा छाता-बरसाना मार्ग पर स्थित है । यह स्वजाति सौभरि ब्राह्मण समाज व अपने इस क्षेत्र का सब से बड़ा तख्त गॉंव है । इस गांव ने “12 गांवों की राजधानी” के नाम से प्रसिद्धी पायी हुई है । लगभग 12000 की जनसंख्या वाले इस गांव में होली के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला मेला ब्रज की अंतिम होली के दिन चैत्र कृष्ण पंचमी को मनाया जाता है जिसे रंगपंचमी के नाम से भी जाना जाता है । यहां पर होली के मेले का आयोजन मुख्य रूप से ‘पड़ाव’ जगह पर होता है । इस दिन क्षेत्र के विधायक व प्रशासन अधिकारी मौजूद रहते हैं । इस दिन 12 गांवों के अलावा आसपास के गांवों से भी लोगों का तांता लगा रहता है । अच्छे से अच्छी मनोहर झांकियां निकाली जाती हैं साथ में पुरूस्कृत भी किया जाता है । रात्रि को स्वांग, रसियादंगल, डांस कॉम्पिटिशन इत्यादि तरह के मनोहारी खेल होते हैं ।
यह ब्रज के १२ वनों में से एक है। यहाँ श्री कृष्ण-बलराम सखाओं के साथ तर-तरह की लीलाएं करते थे। यहाँ पर खजूर के बहुत वृक्ष थे। यहाँ पर श्री कृष्ण गोचारण के समय सभी सखाओं के साथ पके हुए खजूर खाते थे।यहाँ खदीर के पेड़ होने के कारण भी इस गाँव का नाम ‘खदीरवन’ पड़ा है। खदीर (कत्था) पान का एक प्रकार का मसाला है। कृष्ण ने बकासुर को मारने के लिए खदेड़ा था। खदेड़ने के कारण भी इस गाँव का नाम ‘खदेड़वन’ या ‘खदीरवन’ है।
गांव का नाम भगवान कृष्ण के गौरवशाली इतिहास से भी जुड़ा हुआ है । यहाँ पर ब्रज के प्रसिद्ध वनों में एक खदिरवन भी यहीं स्थित है । इसी वन में कंस द्वारा भगवान कृष्ण को मारने के लिए भेजे गये बकासुर राक्षस का वध स्वयं बाल कृष्ण ठाकुर जी ने किया था । बकासुर एक बगुले का रूप धारण करके श्रीकृष्ण को मारने के लिए इसी वन में पहुंचा था जहाँ कान्हा और सभी ग्वालबाल खेल रहे थे। तब बकासुर ने बगुले का रूप धारण कर कृष्ण को निगल लिया और कुछ ही देर बाद कान्हा ने उस बगुले की चौंच को चीरकर उसका वध कर दिया।
एक वृतांत के अनुसार उस समय बकासुर की भयंकर आकृति को देखकर समस्त सखा लोग डरकर बड़े ज़ोर से चिल्लाये ‘खायो रे ! खायो रे ! किन्तु कृष्ण ने निर्भीकता से अपने एक पैर से उसकी निचली चोंच को और एक हाथ से ऊपरी चोंच को पकड़कर उसको घास फूस की भाँति चीर दिया। सखा लोग बड़े उल्लासित हुए।
‘खायो रे ! खायो रे !’ इस लीला के कारण इस गाँव का नाम ‘खायारे’ पड़ा जो कालान्तर में ‘खायरा’ हो गया।

ओमन सौभरि भुर्रक, भरनाकलां, मथुरा


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