Wednesday, 20 November 2024

अखिल भारतीय सौभरि वंशज (अहिवासी ब्राह्मण) समाज गाँवों विवरण-

 अखिल भारत में सौभरि ब्राह्मण समाज गाँवों की संख्या का विवरण-




जिला मथुरा (उत्तर प्रदेश) यमुना के आर वाले गांव-
1.खानपूर 2.भदावल 3. नगरिया 4.खायरा 5. बिजवारी 6.डाहरौली 7.सीह 8.पलसों 9. भरनाकलां 10.भरनाखुर्द 11.पेलखू 12.मघेरा 13- सुनरख 
यमुना के पार वाले जिला अलीगढ़, हाथरस, आगरा (उत्तर प्रदेश)
1.दिहौली 2.मलिकपुरा 3.आलमपुर 4.भांकरी 5.सोनोठ 6.अलीपुर 7.मड्राक 8.नगला अहिवासी 9.तिलौठी10. भोजगढ़ी11, पेठागांव 12. सासनी12.कोड़ा 13, जटौआ 14. महासिंह का नगला 15.हाथी की गढ़ी 16- दाऊजी 
गंगा पार के गांव बरेली (उत्तर प्रदेश)-
1.खुर्द नबाबपुरा 2.सुकटिया 3.पृथ्वीपुर4.पिपरिया वीरपुर 5.चंद्रपुरा 6.सीतापुर 7. 8.केशरपुर 9.जगन्नाथपुर 10.बारशेर 11.दलीपुर 12.हरदासपुर 13.माहमूडपुर 14.चकरपुर 15.गोटिया
बदायूँ (उत्तर प्रदेश)-
1.भोजपुर,2.गुरयारी
जिला सीतापुर उत्तर प्रदेश-
1-अहिवासी पुरवा 2- टेडवा चेलावला3- निभा ढेरा 4- भकरी कला 5-
 पकरिया6- गौरा अर्जुनपुर 7- खजुरिया अहिवासी 8- पिपरावा 9- भदसिया10- कलापुर 11- उमरिया 12-परसेहरामल जिला-जालौन, ओखलेपुरा ।

अलवर जिला में आने वाले गांव (राजस्थान)-
1. बदनगढ़ी 2. गारु 3.नगला सीताराम 4.नगला खूबा 5.नगला केसरी 6.नतौज 7.लाठकी 8. भोजपुरा 9. अर्र्रूआ 10.सामौली 11.रामनगर 12. बालूपुरा 13.खैर मेडा, करीले का नगला 
भरतपुर जिला (राजस्थान)-
1. नयावास 2. मनोहरपुर 3. जहांगीरपुर 4. सितारा 5. अजयपुरा 6. बिसदे 7. सैंथरी 8. डीग 9. कुम्हेर 10. मूंडिया 11. पड़लवास 12. कुरकेंन 13.सरसई 14. उसरारौ 15.सिकरोरी  
भिंड जिला (मध्यप्रदेश)
1.काठा 2.रारी 3.मछर्या 4.बन्थारी 5.बिरखडी 6.मिहोना 7.चंडौंक 8.छिडी 9.बोहरा 10.शिकारपुरा 11.कौनरपुरा 12.अहिवासियों का पुरा 13.सोनी 14.महाराजपुरा 15.जगन्नाथपुरा 16.सीताराम की लवण 17.बिरखडी डांग 18.पिपडी 19.नौनेरा 20.खेरिया चदन 21.खेरिया बेर 22.तरौली 23.बरौली 24.भिंड
ग्वालियर जिला (मध्यप्रदेश)-
1. रंगवन
जबलपुर जिला (मध्यप्रदेश) –
1.डिढोरा 2.उड़ना 3.भोरडा 4.मेढी 5.अमरपुर 6.खेड़ा 7.पथरोरा 8.पाटन 9.जटवा 10.जूरी 11.जूरीखुर्द 12.कटरा बेलखेड़ा 13.कौनरपुर
14.पथरिया 15.चंडवा 16 मेहंगवा17 सिंगौरी 18.राइयाखेड़ा 19.नोनी 20 खामदेही 21.भेड़ाघाट 22.शाहपुरा 23.बामनोढा 24.सुरई 25.भरदा 26.कुआखेड़ा 27.मेली 28.पिंडराई 29.गुबरा
30.जमखार 31.बेलखेड़ा बड़ा 32.कूड़ा 33.झालोंन 34.बदराई 35- सुनाचर
नरसिंहपुर जिला (मध्यप्रदेश)-
1.गातेगाँव श्रीधाम 2.बगलाइ 3.कोरेगांव 4 चांडाली 5.करेली
हरदा जिला (मध्यप्रदेश)- 1.हरदा 2. ऊडा 3.भाटरपेटिया 4.डोलरिया 5.टेमागांव 6.झाडबीड़ा 7.झिरिखेड़ा 8.घोघडामाफी9. बंदीमुहाड़िया10.सिराली 11.टिमरनी 12.गोंदागांवकलां 13.सुरजना 14.रनहाई
आगर जिला(मध्यप्रदेश)
1.आगर मालवा 2.बडागाँव
शाजापुर जिला (मध्यप्रदेश)
1.पोलायकला
शिहोड़ जिला (मध्यप्रदेश)
1.नसरुल्लागंज 2.मन्झली 3.बीरखेडी
होशंगाबाद जिला (मध्यप्रदेश)-
1. होशंगाबाद
2.सिवनी मालवा
विदिशा (मध्यप्रदेश)-
1.विदिशा 2. गंजबासोदा
Total- 160 से ज्यादा गांव हैं ।
साभार: पंडित ओमन सौभरि भुर्रक, गाँव-भरनाकलां, गोवर्धन, मथुरा(उत्तर प्रदेश) ।

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Monday, 7 October 2024

स्वसमाज के सभी गांवो की जानकारी इन मानकों के अनुसार

 गांव का परिचय 

क्षेत्रफल 

जनसंख्या 

समाज/वर्ग

शिक्षा 

घरों की संख्या 

स्कूल/कॉलेज

बैंक 

हॉस्पिटल 

मन्दिर 

ग्राम्य देवी 

ग्राम्य देवता/भूमिया 

तालाब/पोखर 

नहर 

बंबा/बंबी 

गांव के प्रधानों के नाम 

कुआ 

भाषा 

पहनावा 

खान- पान 

व्यापार/कृषि की फसलें

गांव का मेला/रीति -रिवाज 

गांव के प्रसिद्द जन

 गांव के थोक अथवा सैक्टर

गांव की पाग 

गांव में स्वसमाज के गोत्रों की संख्या

वीकली मार्केट

 गांव की धर्मशाला 

रामलीला कमेटी

सौभरि समाज में भात , विवाह, छोछक आदि की प्रचलित परंपराएं

 सनातन धर्म में सद्गृहस्थ (परिवार निर्माण) की जिम्मेदारी उठाने के योग्य शारीरिक, मानसिक परिपक्वता आ जाने पर युवक-युवतियों का विवाह संस्कार कराया जाता है।विवाह दो आत्माओं का पवित्र बन्धन है। दो प्राणी अपने अलग-अलग अस्तित्वों को समाप्त कर एक सम्मिलित इकाई का निर्माण करते हैं। भारतीय संस्कृति के अनुसार विवाह कोई शारीरिक या सामाजिक अनुबन्ध मात्र नहीं हैं, यहाँ दाम्पत्य को एक श्रेष्ठ आध्यात्मिक साधना का भी रूप दिया गया है। इसलिए कहा गया है 'धन्यो गृहस्थाश्रमः'। सद्गृहस्थ ही समाज को अनुकूल व्यवस्था एवं विकास में सहायक होने के साथ श्रेष्ठ नई पीढ़ी बनाने का भी कार्य करते हैं।

अतएव पति-पत्नी को एक-दूसरे से आकर्षण लाभ मिलने की बात न सोचकर एक-दूसरे के प्रति आत्म-समर्पण करने और सम्मिलित शक्ति उत्पन्न करने, उसके जीवन विकास की सम्भावनाऐं उत्पन्न करने की बात सोचनी चाहिए। चुनाव करते समय तक साथी को पसन्द करने न करने की छूट है। जो कुछ देखना, ढूँढ़ना, परखना हो, वह कार्य विवाह से पूर्व ही समाप्त कर लेना चाहिए। जब विवाह हो गया, तो फिर यह कहने की गुंजाइश नहीं रहती कि भूल हो गई, इसलिए साथी की उपेक्षा की जाए। जिस प्रकार के भी गुण-दोष युक्त साथी के साथ विवाह बन्धन में बँधें, उसे अपनी ओर से कर्त्तव्यपालन समझकर पूरा करना ही एक मात्र मार्ग रह जाता है। इसी के लिए विवाह संस्कार का आयोजन किया जाता है। समाज के सम्भ्रान्त व्यक्तियों की, गुरुजनों की, कुटुम्बी-सम्बन्धियों की, देवताओं की उपस्थिति इसीलिए इस धर्मानुष्ठान के अवसर पर आवश्यक मानी जाती है कि दोनों में से कोई इस कर्तव्य-बन्धन की उपेक्षा करे, तो उसे रोकें और समझाएं ।

▪️बिचौलिए के सहायता से विवाह के लिए लड़का ढूढना

▪️लडकी दिखाना 

▪️गोद भराई/रोका /मंगनी 

▪️लग्न/भेंट - लग्न पत्रिका औपचारिक सगाई समारोह और जोड़े की आसन्न शादी की घोषणा है। इस दौरान, युगल एक लिखित वचन का आदान-प्रदान करते हैं जिसमें कहा जाता है कि विवाह समारोह उनके द्वारा चुनी गई तारीख को बाद में होगा। समारोह में शादी की तारीख और समय को अंतिम रूप दिया जाता है, जिसमें आमतौर पर एक हिंदू पुजारी होता है, जिसे पंडित के रूप में भी जाना जाता है, जो विवाह का विवरण और इसमें शामिल सभी परिवार के सदस्यों के नाम लिखता है। यह हिंदू विवाह रिवाज विशेष दिन(दिनों) से महीनों पहले किया जाता है।

▪️भात न्यौतना

▪️तेल उबटन 

▪️ लडकी वालों के यहां मेंहदी रचाई - मेहंदी समारोह दुल्हन के परिवार द्वारा आयोजित किया जाता है और आम तौर पर शादी से एक या दो दिन पहले होता है।" "इस परंपरा से दुल्हन को शादीशुदा जीवन की शुरुआत में सौभाग्य और अच्छी सेहत मिलने की उम्मीद की जाती है। मेहंदी पार्टी दुल्हन के लंच के समान है और दुल्हन के जीवन में महत्वपूर्ण महिलाओं के लिए इकट्ठा होने, सलाह और यादें साझा करने और बंधन बनाने का एक शानदार तरीका है। पारंपरिक मेहंदी समारोह में केवल महिला परिवार के सदस्य शामिल होते हैं ।

▪️मांडा 

▪️भात पहनाई

▪️बारात

जग बारात का न्यौता 

निकासी

बसों द्वारा प्रस्थान 

लडकी वाले गांव में प्रवेश 

धूरगोला संकेत 

बारात की चढ़ाई 

नाश्ता/पानी 

लड़के का गांव की किसी लडकी या बहिन - बेटी द्वारा स्वागत 

जनवासे पर ठहराव 

लडकी के घर पर पहली बार लड़के का प्रवेश 

खांड कटोरा 

दहेज 

मिलनी 

दोबारा जानवासे पर 

बारात का खाना 

बारात को दक्षिणा 

सींक 

बारात की विदाई 

वरमाला के लिए कन्या का आगमन - दूल्हे के विवाह में प्रवेश करने और तिलक लगाकर स्वीकार करने के बाद, कन्या आगमन के दौरान दुल्हन प्रवेश करती है। कन्या आगमन हिंदी में "लड़की के आगमन" या "दुल्हन के आगमन" के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है। दुल्हन के जुलूस के दौरान, होने वाली दुल्हन अक्सर फूलों की चादर के नीचे चलती है, एक चादर जो आमतौर पर फूलों से सजी होती है जो दुल्हन को उसके परिवार की सुरक्षा छोड़कर अपने दूल्हे के पास जाने का प्रतीक है, जिसे उसके भाई पकड़ते हैं। प्रियजन, अक्सर दुल्हन की मौसी और चाचा, आम तौर पर जुलूस में शामिल होते हैं। इसके बाद जल्द ही दुल्हन को मंडप में ले जाया जाता है, जहाँ दूल्हा, उसके प्रियजन और पंडित बैठते हैं। वरमाला के दौरान, जिसे मिलनी माला या जय माला के नाम से भी जाना जाता है, जोड़े एक दूसरे को फूलों की माला पहनाते हैं। माला आमतौर पर चमकीले रंग के चमेली के फूलों, गुलाब या गेंदे के फूलों से बनी होती है। माला का आदान-प्रदान जोड़े द्वारा एक दूसरे को अपने परिवार में स्वीकार करने का प्रतीक है। जो लोग इस हिंदू विवाह अनुष्ठान को मज़ेदार बनाना चाहते हैं, वे यह देखने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं कि कौन पहले दूसरे व्यक्ति को माला पहना सकता है।

कन्यादान 

सप्तपदी अथवा लडका - लडकी के ७ फेरे - हिंदू विवाह समारोह का ग्रंथीबंधन वह हिस्सा है जब जोड़ा "शादी के बंधन में बंधता है।" इस रस्म के दौरान, दूल्हे का दुपट्टा दुल्हन के पल्लू या साड़ी से बांधा जाता है, जबकि वे देवताओं से प्रार्थना करते हैं कि उनका विवाह मज़बूत और स्वस्थ हो। दो कपड़ों को एक साथ बांधना जोड़े की आत्माओं को पवित्र विवाह के ज़रिए नए जीवन में एक साथ जुड़ने का प्रतिनिधित्व करता है। हिंदू विवाह रिवाज के दौरान, जोड़ा "पवित्र अग्नि के चारों ओर सात कदम उठाएगा, जिसे सात फेरे या सप्तपदी के नाम से भी जाना जाता है, ये हिंदू विवाह की शपथ हैं जो जोड़ा पवित्र अग्नि के चारों ओर चक्कर लगाते समय लेता है। प्रत्येक शपथ और कदम विवाह में एक चरण को दर्शाता है जिसका सामना जोड़ा करेगा। ये शपथ हिंदू/वैदिक अनुष्ठानों का हिस्सा हैं और इन्हें बहुत गंभीरता से लिया जाता है। ये शपथ दो आत्माओं के बीच मिलन को पवित्र बनाती हैं।"

जूता छुपाई - जूता छुपाई हिंदू विवाह की एक मज़ेदार जूता-संबंधी परंपरा है जिसे केशव ने हमारे लिए समझाया है। जब दूल्हा मंडप में पहुंचता है, तो उसे प्रवेश करने के लिए अपने जूते उतारने पड़ते हैं क्योंकि मंडप में सब कुछ पवित्र माना जाता है। यह दुल्हन की बहनों, चचेरी बहनों आदि (सभी महिलाओं) के लिए दूल्हे के जूते चुराने का सुनहरा अवसर होता है। जब तक वह महिलाओं को पैसे [या उपहार] नहीं देता, तब तक उसे अपने जूते वापस नहीं मिलेंगे ।

लडकी की विदाई 

▪️ लडकी का ससुराल में गृहप्रवेश /द्वार रोकाई

हिंदू विवाह की एक और मजेदार परंपरा है द्वार रोकाई। जब नया जोड़ा दूल्हे के घर पहुंचता है, तो दूल्हे की बहन को घर में उनके प्रवेश को रोकने का काम सौंपा जाता है। फिर दूल्हे को अपनी बहन को नकद या उपहार देकर घर में प्रवेश करना होता है।

दहलीज पुजाई 

मुँह दिखाई - स्वागत समारोह और उपहार मुंह दिखाई, "चेहरा दिखाने" की परंपरा के साथ जारी रहते हैं। मुंह दिखाई आमतौर पर शादी की रात घर पर होती है और तब परिवार की महिलाएं दुल्हन का चेहरा दिखाती हैं और उसे उपहार और मिठाइयाँ देती हैं। सास इसमें एक बड़ा हिस्सा होती है और दुल्हन को अपने नए परिवार के सामने अपना चेहरा "दिखाने" में मदद करती है।

देवता पूजवाना 

आंचलगांठ 

कढ़ाई खेल

चूल्हा पूजाई 

रिश्तेदारी में भोजन का निमंत्रण

▪️दशई 

▪️ विदाई - विदाई, जिसे बिदाई भी लिखा जाता है, हिंदू विवाह से जुड़ी सबसे भावनात्मक परंपराओं में से एक मानी जाती है। यह भव्य विदाई कब होगी यह परिवार की पसंद और मूल पर निर्भर करता है, लेकिन इसके चरण बहुत समान रहते हैं। बाहर निकलते समय, दुल्हन अपने माता-पिता की ओर बिना देखे पाँच बार चावल, फूलों की पंखुड़ियाँ और सिक्कों का मिश्रण फेंकती है। यह रस्म बेटी की अपने परिवार के प्रति कृतज्ञता को दर्शाती है और वर्षों से उनके द्वारा की गई दयालुता के लिए उन्हें वापस भुगतान करने का एक तरीका है। फेंकी गई वस्तुएँ धन और समृद्धि का प्रतीक हैं।

▪️ जैमौ, लड्डू/सकलपारे 

▪️ शोहगी 

▪️होली मेला

▪️छोछक/ कुआ पूजन

Monday, 3 June 2024

माता के शक्तिपीठ व स्थानों के नाम

माता के शक्तिपीठ-

भारत भूमि तथा अन्य देशों में माता के शक्तिपीठों की संख्या व स्थान:- 



उत्तर प्रदेश राज्य- 

 मणिकर्णिका घाट, वाराणसी - यहां माता सती की मणिकर्णिका गिरी थी। यहां माता के विशालाक्षी और मणिकर्णी स्वरूप की पूजा होती है।

माता ललिता देवी शक्तिपीठ, प्रयागराज - इलाहाबाद स्थित इस जगह पर माता सती के हाथ की अंगुली गिरी थी। यहां माता ललिता के नाम से जानी जाती हैं। 

रामगिरी, चित्रकूट में माता सती का दायां स्तन गिरा था। इस स्थान पर माता शिवानी के रूप में पूज्यनीय हैं।

वृंदावन में उमा शक्तिपीठ स्थित है। इसे कात्यायनी शक्तिपीठ के नाम से भी जानते हैं। यहां माता के बाल के गुच्छ और चूड़ामणि गिरे थे।

देवी पाटन मंदिर, बलरामपुर में माता का बायां स्कंध गिरा था। इस शक्तिपीठ में माता मातेश्वरी के रूप में विराजमान हैं।

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बिहार- 

मिथिला शक्तिपीठ- भारत नेपाल सीमा पर माता सती का बायां कंधा गिरा था। यहां माता को देवी उमा कहा जाता है।

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 मध्यप्रदेश - 

 हरसिद्धि देवी शक्तिपीठ- मध्य प्रदेश में देवी के दो शक्तिपीठ हैं। इनमें से एक हरसिद्धी देवी शक्तिपीठ है, जहां माता सती की कोहनी गिरी थी। यह रूद्र सागर तालाब के पश्चिमी तट पर स्थित है।

 शोणदेव नर्मता शक्तिपीठ- मध्यप्रदेश के अमरकंटक में माता का दया नितंब गिरा था। यहां पर नर्मदा नदी का उद्गम होने के कारण यहां माता को नर्मता स्वरूप में पूजा जाता है।

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हिमाचल प्रदेश - 

नैना देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में शिवालिक पर्वत पर देवी सती की आंख गिरी थी। यहां माता देवी महिष मर्दिनी कही जाती हैं। 

ज्वाला जी शक्तिपीठ-  हिमाचल के कांगड़ा में देवी की जीभ गिरी थी, इस कारण इसका नाम सिधिदा या अंबिका पड़ा।

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 पंजाब - 

त्रिपुरमालिनी माता शक्तिपीठ- पंजाब के जालंधर में छावनी स्टेशन के पास माता का बायां स्तर गिरा था। 

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जम्मू कश्मीर - 

 अमरनाथ के पहलगांव, कश्मीर में माता सती का गला गिरा था, यहां महामाया की पूजा होती है।

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हरियाणा - 

हरियाणा के कुरुक्षेत्र में माता के पैर की एड़ी गिरी थी। यहां माता सावित्री का शक्तिपीठ स्थित है।

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राजस्थान - 

मणिबंध- अजमेर के पुष्कर में गायत्री पर्वत पर माता सती की दो पहुंचियां गिरी थीं। यहां माता के गायत्री स्वरूप की पूजा की जाती है। 

बिरात- राजस्थान में माता अंबिका का मंदिर है। यहां माता सती के बाएं पैर की उंगलियां गिरी ।

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गुजरात - 

 अंबाजी मंदिर- गुजरात में माता अम्बाजी का मंदिर है। मान्यता है कि यहां माता का हृदय गिरा था।

गुजरात के जूनागढ़ में देवी सती का आमाशय गिरा था। यहां माता को चंद्रभागा के नाम से जाना जाता है।

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महाराष्ट्र - 

महाराष्ट्र के जनस्थान पर माता की ठोड़ी गिरी थी। उसके बाद यहां देवी के भ्रामरी स्वरूप की पूजा होने लगी। 

माताबाढ़ी पर्वत शिखर शक्तिपीठ त्रिपुरा में उदरपुर के राधाकिशोरपुर गांव में है। इस स्थान पर माता का दायां पैर गिरा था। यहां माता को देवी त्रिपुर सुंदरी कहलाती हैं।

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 पश्चिम बंगाल - 

यहां पूर्व मेदिनीपुर जिले के तामलुक स्थित विभाष में देवी कपालिनी का मंदिर है। यहां माता की बायीं एड़ी गिरी थी।

बंगाल के हुगली में रत्नावली में माता सती का दायां कंधा गिरा था। इस मंदिर में माता को देवी कुमारी नाम से पुकारा जाता है। 

 मुर्शीदाबाद के किरीटकोण ग्राम में देवी सती का मुकुट गिरा था। यहां माता का शक्तिपीठ है और माता के विमला स्वरूप की पूजा की जाती है।

जलपाइगुड़ी के बोडा मंडल में सालबाढ़ी गांव में माता का बायां पैर गिरा था। इस स्थान पर माता के भ्रामरी देवी के रूप की पूजा की जाती है।

बहुला देवी शक्तिपीठ- वर्धमान जिले के केतुग्राम इलाके में माता सती का बायां हाथ गिरा था। 

 मंगल चंद्रिका माता शक्तिपीठ - वर्धमान जिले के उज्जनि में माता का शक्तिपीठ है। यहां माता की दायीं कलाई गिरी थी। 

पश्चिम बंगाल के वक्रेश्वर में देवी सती का भ्रूमध्य गिरा था। इस स्थान पर माता को महिषमर्दिनी कहा जाता है। 

नलहाटी शक्तिपीठ- बीरभूम के नलहाटी में माता के पैर की हड्डी गिरी थी। 

 फुल्लारा देवी शक्तिपीठ- पश्चिम बंगाल के अट्टहास में माता सती के होंठ गिरे थे। यहां माता फुल्लारा देवी कहलाती हैं। 

नंदीपुर शक्तिपीठ- पश्चिम बंगाल में माता सती का हार गिरा था। यहां मां नंदनी की पूजा की जाती है। 

युगाधा शक्तिपीठ- वर्धमान जिले के ही क्षीरग्राम में माता के दायें हाथ का अंगूठा गिरा। इस स्थान पर माता का शक्तिपीठ बन गया, जहां उन्हें देवी जुगाड्या के नाम से पुकारा जाता है। 

कलिका देवी शक्तिपीठ-मान्यताओं के मुताबिक, कालीघाट में माता के दाएं पैर की अंगूठा गिरा था। वे मां कालिका के नाम से यहां जानी जाती हैं।

कांची देवगर्भ शक्तिपीठ- पश्चिम बंगाल के कांची में देवी की अस्थि गिरी थीं। यहां माता देवगर्भ रूप में स्थापित हैं।

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असम - 

 कामाख्या शक्तपीठ- प्रसिद्ध शक्तिपीठों में गुवाहाटी के नीलांतल पर्वत पर स्थित कामाख्या जी है। कामाख्या में माता की योनि गिरी थी। यहां माता के कामाख्या स्वरूप की पूजा होती है।

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दक्षिण भारत - 

तमिलनाडु -  

भद्रकाली शक्तिपीठ- तमिलनाडु में माता की पीठ गिरी थी। इस स्थान पर माता का कन्याश्रम, भद्रकाली मंदिर और कुमारी मंदिर स्थित है। उन्हें श्रवणी नाम से पुकारा जाता है।

शुचि शक्तिपीठ- तमिलनाडु में कन्याकुमारी के पास शुचि तीर्थम शिव मंदिर स्थित है। यहां भी माता का शक्तिपीठ है, जहां उनकी ऊपरी दाढ़ गिरी थी। माता को यहां नारायणी नाम मिली है। 

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उड़ीसा - 

 विमला देवी शक्तिपीठ- उड़ीसा के उत्कल में देवी की नाभि गिरी थी। यहां माता विमला नाम से जानी जाती हैं।

आंध्रप्रदेश - 

सर्वशैल रामहेंद्री शक्तिपीठ-आंध्र प्रदेश में दो शक्तिपीठ हैं। एक सर्वशैल रामहेंद्री शक्तिपीठ, जहां माता के गाल गिरे थे। इस स्थान पर भक्त माता के राकिनी और विश्वेश्वरी स्वरूप की पूजा करते हैं।

श्रीशैलम शक्तिपीठ-आंध्र में ही दूसरी शक्तिपीठ कुर्नूर जिले में है। श्रीशैलम शक्तिपीठ में माता सती के दाएं पैर की पायल गिरी थी। यहां माता श्री सुंदरी के नास में स्थापित हैं। 

कर्नाटक

 कर्नाटक शक्तिपीठ- कर्नाटक में देवी सती के दोनों कान गिरे थे। इस स्थान पर माता का जय दुर्गा स्वरूप पूज्यनीय है।

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भारत से बाहर शक्तिपीठ- 

बांग्लादेश - 

चट्टल भवानी शक्तिपीठ- बांग्लादेश के चिट्टागौंग जिले में चंद्रनाथ पर्वत पर चट्टल भवानी शक्तिपीठ है। यहां माता सती की दायीं भुजा गिरी थी।

सुगंधा शक्तिपीठ- बांग्लादेश के शिकारपुर से 20 किमी दूर माता की नासिका गिरी थी। इस शक्तिपीठ में माता को सुगंधा कहा जाता है। इस शक्तिपीठ का एक अन्य नाम उग्रतारा शक्तिपीठ है।

 जयंती शक्तिपीठ -बांग्लादेश के सिलहट जिले में जयंतिया परगना में माता की बाईं जांघ गिरी थी। यहां माता देवी जयंती नाम से स्थापित हैं।

श्रीशैल महालक्ष्मी -बांग्लादेश के सिलहट जिले में माता सती का गला गिला था। इस शक्तिपीठ में महालक्ष्मी स्वरूप की पूजा होती है।

यशोरेश्वरी माता शक्तिपीठ -बांग्लादेश के खुलना जिले में यशोर नाम की जगह है, जहां मां सती की बाईं हथेली गिरी थी।

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श्रीलंका - 

 इन्द्राक्षी शक्तिपीठ- श्रीलंका के जाफना नल्लूर में देवी की पायल गिरी ती। इस शक्तिपीठ को इन्द्राक्षी कहा जाता है। 

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नेपाल - 

 गुहेश्वरी शक्तिपीठ- नेपाल मे पशुपतिनाथ मंदिर से कुछ दूरी पर बागमती नदी के किनारे यह शक्तिपीठ है। यहां मां सती के दोनों घुटने गिरे थे। यहां शक्ति के महामाया या महाशिरा रूप की पूजा होती है।

आद्या शक्तिपीठ- नेपाल में गंडक नदी के पास आद्या शक्तिपीठ है। मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती का बायां गाल गिरा था। यहां माता के गंडकी चंड़ी स्वरूप की पूजा होती है।

दंतकाली शक्तिपीठ- नेपाल के बिजयापुर गांव में माता सती के दांत गिरे थे। इस कारण इस शक्तिपीठ को दन्तकाली शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है।

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तिब्बत - 

 मनसा शक्तिपीठ- तिब्बत में मानसरोवर नदी के पास माता सती की दाईं हथेली गिरी थी। यहां उन्हें माता दाक्षायनी कहा जाता है। माता यहां एक शिला के रूप में स्थापित हैं। 

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पाकिस्तान

हिंगुलाज शक्तिपीठ- पाकिस्तान के बलूचिस्तान में देवी का हिंगुला शक्तिपीठ है। इस शक्तिपीठ में माता को हिंगलाज देवी के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि यहां माता सती का सिर गिरा था।


साभार-  ओमन सौभरि भुरर्क, भरनाकलां, मथुरा

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Monday, 27 May 2024

आदिगौड़ सौभरेय अहिवासी ब्राह्मणों के अवंटक/उपगोत्र/अल्ल :-

 आदिगौड़ सौभरेय अहिवासी ब्राह्मणों के अवंटक/उपगोत्र/अल्ल :-




1- बादर

2- सोती (श्रोती) 

3- पचौरी

4-भाट (भटेले) 

5- पधान 

6- रतिवार 

7- गौदाने (गौदानी)

8- तगारे

9- दीगिया (दीक्षित)

10- नुक़्ते (बरगला)

11- भुर्रक 

12- रमैया

13- कुम्हेरिया

14- इटोईया

15- सीहइयाँ

16- सैंथरिया

17- बसइया

18- नदीसरिया 

19- बजरावत

20- परसैंया

21- करिया

22- नालौठिया

23- दुरकी

24- विहोन्याँ

25- ओखले

26- करौतिया

27- मुडिनिया

28- गागर

29- डामर

30- गलवले

 31- छिरा

32- जयन्तिया

33- डिड्रोइया

 34- तैसिये 

35- दुर्गवार

36- दिरहरे 

37- अझैयां

 38- नायक

 39- उमाड़िया

40- कांकर

41- रौसरिया

42- औगन

43- सिरौलिया

44- पलावार (पल्हा) 

45- सिकरोरिया

 46- रमैया

47-गलजीते 

48- किलकिले 

49- तागपुरिया

 50- काठ


साभार-  ओमन सौभरि भुरर्क, भरनाकलां, मथुरा

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साभार:- ओमन ब्रजवासी 


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ब्रज मेट्रो रूट व घोषणा

ब्रजभाषा कोट्स 1

ब्रजभाषा कोट्स 2

ब्रजभाषा कोट्स 3

ब्रजभाषा ग्रीटिंग्स

ब्रजभाषा शब्दकोश

आऔ ब्रज, ब्रजभाषा, ब्रज की संस्कृति कू बचामें

ब्रजभाषा लोकगीत व चुटकुले, ठट्ठे - हांसी

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Thursday, 2 May 2024

राष्ट्रीय पुष्प कमल की महिमा

 कमल भारत का राष्ट्रीय पुष्प है। संस्कृत में कमल के अन्य नाम हैं - पद्म, पंकज, पंकरुह, सरसिज, सरोज, सरोरुह, सरसीरुह, जलज, जलजात, नीरज, वारिज, अंभोरुह, अंबुज, अंभोज, अब्ज, अरविंद, नलिन, उत्पल, पुंडरीक, तामरस, इंदीवर, कुवलय, वनज आदि आदि। 



भारत की पौराणिक गाथाओं में कमल का विशेष स्थान है। पुराणों में ब्रह्मा को विष्णु की नाभि से निकले हुए कमल से उत्पन्न बताया गया है और लक्ष्मी को पद्मा, कमला और कमलासना कहा गया है। चतुर्भुज विष्णु को शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण करने वाला माना जाता है। भारतीय मंदिरों में स्थान-स्थान पर कमल के चित्र अथवा संकेत पाए जाते हैं। भगवान्‌ बुद्ध की जितनी मूर्तियाँ मिली हैं, प्राय: सभी में उन्हें कमल पर आसीन दिखाया गया है। क्योंकि कमल बिना किसी दाग ​​के कीचड़ से उगते हैं, इसलिए उन्हें अक्सर पवित्रता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। कमल का पौधा उगाने के लिये मानसून का मौसम सबसे अच्छा रहता है, क्योंकि बारिश के बीच कमल के पौधे अच्छे से ग्रो कर जाते हैं ।


▪️पद्मालयां पद्मकरां पद्मपत्रनिभेक्षणाम्

     वन्दे पद्ममुखीं देवीं पद्मनाभप्रियाम्यहम्॥

अर्थ - विष्णु पुराण में इन्द्र द्वारा लक्ष्मी की स्तुति करते हुए कहा गया है- कमल के आसन वाली, कमल जैसे हाथों वाली, कमल के पत्तों जैसी आँखों वाली, हे पद्म (कमल) मुखी, पद्मनाभ (भगवान विष्णु) की प्रिय देवी, मैं आपकी वन्दना करता हूँ।

▪️एक पुराण का नाम ही पद्म पुराण है, ऐसा कहा जाता है कि पदम का अर्थ है-‘कमल का पुष्प’। चूंकि इसमें सृष्टि रचयिता ब्रह्माजी ने भगवान नारायण के नाभि कमल से उत्पन्न होकर सृष्टि-रचना संबंधी ज्ञान का विस्तार किया था, इसलिए इस पुराण को पदम पुराण की संज्ञा दी गई है।

▪️ महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित सभी अठारह पुराणों की गणना में ‘पदम पुराण’ को द्वितीय स्थान प्राप्त है। श्लोक संख्या की दृष्टि से भी इसे द्वितीय स्थान रखा जाता है।

▪️भारत की राजधानी दिल्ली में बने बहाई उपासना मंदिर का स्थापत्य पूरी तरह से खिलते हुए कमल के आकार पर आधारित है जिसके कारण इसे लोटस टेंपल भी कहते हैं।

▪️संस्कृत - सलिले हंस हसे कमलम् कमले तिष्ठति सरस्वति।

हिंदी अनुवाद → नीर में हंस है, हंस में कमल है, और कमल में स्वरस्वती माँ विराजती हैं।


साभार-  ओमन सौभरि भुरर्क, भरनाकलां, मथुरा

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अखंड या बृहद भारत अर्थात वैदिक भारतवर्ष

 अखंड भारत अर्थात वैदिक भारतवर्ष:- 





आज की इस पीढ़ी को न तो वेदों के बारे में पता है न ही महाग्रंथों के बारे में और न ही पुराणों के बारे में। उपनिषद का तो नाम भी मुश्किल से ही सुना होगा।

भारत कोई 70 वर्ष पुराना देश नहीं है। यह हजारों वर्षों पुरानी एक सभ्यता है जिसकी पहचान भौगोलिक अवस्थिति से होती है। भारत के रहने वाले इतने पुराने है कि इसे सनातन यानि जो सदा से यानि अविरल समय से चला आ रहा है।

विष्णु पुराण में स्पष्ट लिखा है :-

उत्तरं यत समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणं।

वर्ष तद भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।।

इसका अर्थ यह है कि “समुद्र के उत्तर से ले कर हिमालय के दक्षिण में जो देश है वही भारत है और यहाँ के लोग भारतीय हैं ।

ब्रह्म पुराण, अध्याय 18 में जम्बूद्वीप के महान होने का प्रतिपादन है-

तपस्तप्यन्ति यताये जुह्वते चात्र याज्विन।।

दानाभि चात्र दीयन्ते परलोकार्थ मादरात्॥ 21॥

पुरुषैयज्ञ पुरुषो जम्बूद्वीपे सदेज्यते।।

यज्ञोर्यज्ञमयोविष्णु रम्य द्वीपेसु चान्यथा॥ 22॥

अत्रापि भारतश्रेष्ठ जम्बूद्वीपे महामुने।।

यतो कर्म भूरेषा यधाऽन्या भोग भूमयः॥23॥

अर्थात भारत भूमि में लोग तपश्चर्या करते हैं, यज्ञ करने वाले हवन करते हैं तथा परलोक के लिए आदरपूर्वक दान भी देते हैं। जम्बूद्वीप में सत्पुरुषों के द्वारा यज्ञ भगवान् का यजन हुआ करता है। यज्ञों के कारण यज्ञ पुरुष भगवान् जम्बूद्वीप में ही निवास करते हैं। इस जम्बूद्वीप में भारतवर्ष श्रेष्ठ है। यज्ञों की प्रधानता के कारण इसे (भारत को) को कर्मभूमि तथा और अन्य द्वीपों को भोग- भूमि कहते हैं।

 इसी तरह अगर शक्तिपीठों का भौगोलिक स्थिति देखे तो वे बलूचिस्तान से लेकर त्रिपुरा, कश्मीर से कन्याकुमारी / जाफना तक फैले हुए हैं। यह एक बनावटी स्थिति नहीं है।

इतना ही नहीं जब हम अपने घरों में पुजा अर्चना के दौरान संकल्प लेते है तो उस दौरान प्रयोग में लाया जाने वाला मंत्र भी यही कहता है, जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते। इस पंक्ति में मनुष्य के रहने के स्थान तथा उसके बारे में जानकारी दी जाती है जो पूजा करा रहा है।

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ईरान – ईरान में आर्य संस्कृति का उद्भव 2000 ई. पू. उस वक्त हुआ जब ब्लूचिस्तान के मार्ग से आर्य ईरान पहुंचे और अपनी सभ्यता व संस्कृति का प्रचार वहां किया। उन्हीं के नाम पर इस देश का नाम आर्याना पड़ा। 644 ई. में अरबों ने ईरान पर आक्रमण कर उसे जीत लिया।

कम्बोडिया – प्रथम शताब्दी में कौंडिन्य नामक एक ब्राह्मण ने हिन्दचीन में हिन्दू राज्य की स्थापना की।

वियतनाम – वियतनाम का पुराना नाम चम्पा था। दूसरी शताब्दी में स्थापित चम्पा भारतीय संस्कृति का प्रमुख केंद्र था। यहां के चम लोगों ने भारतीय धर्म, भाषा, सभ्यता ग्रहण की थी। 1825 में चम्पा के महान हिन्दू राज्य का अन्त हुआ।

मलेशिया – प्रथम शताब्दी में साहसी भारतीयों ने मलेशिया पहुंचकर वहां के निवासियों को भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति से परिचित करवाया। कालान्तर में मलेशिया में शैव, वैष्णव तथा बौद्ध धर्म का प्रचलन हो गया। 1948 में अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हो यह सम्प्रभुता सम्पन्न राज्य बना।

इण्डोनेशिया – इण्डोनिशिया किसी समय में भारत का एक सम्पन्न राज्य था। आज इण्डोनेशिया में बाली द्वीप को छोड़कर शेष सभी द्वीपों पर मुसलमान बहुसंख्यक हैं। फिर भी हिन्दू देवी-देवताओं से यहां का जनमानस आज भी परंपराओं के माधयम से जुड़ा है।

फिलीपींस – फिलीपींस में किसी समय भारतीय संस्कृति का पूर्ण प्रभाव था पर 15वीं शताब्दी में मुसलमानों ने आक्रमण कर वहां आधिपत्य जमा लिया। आज भी फिलीपींस में कुछ हिन्दू रीति-रिवाज प्रचलित हैं।

लाओस, थाईलैंड, सिंगापुर, ब्रूनेई, मालदीव - 

अफगानिस्तान – अफगानिस्तान 350 इ.पू. तक भारत का एक अंग था। सातवीं शताब्दी में इस्लाम के आगमन के बाद अफगानिस्तान धीरे-धीरे राजनीतिक और बाद में सांस्कृतिक रूप से भारत से अलग हो गया।

नेपाल – विश्व का एक मात्र हिन्दू राज्य है, जिसका एकीकरण गोरखा राजा ने 1769 ई. में किया था। पूर्व में यह प्राय: भारतीय राज्यों का ही अंग रहा।

भूटान – प्राचीन काल में भूटान भद्र देश के नाम से जाना जाता था। 8 अगस्त 1949 में भारत-भूटान संधि हुई जिससे स्वतंत्र प्रभुता सम्पन्न भूटान की पहचान बनी।

तिब्बत – तिब्बत का उल्लेख हमारे ग्रन्थों में त्रिविष्टप के नाम से आता है। यहां बौद्ध धर्म का प्रचार चौथी शताब्दी में शुरू हुआ। तिब्बत प्राचीन भारत के सांस्कृतिक प्रभाव क्षेत्र में था। भारतीय शासकों की अदूरदर्शिता के कारण चीन ने 1957 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया।

श्रीलंका – श्रीलंका का प्राचीन नाम ताम्रपर्णी था। श्रीलंका भारत का प्रमुख अंग था। 1505 में पुर्तगाली, 1606 में डच और 1795 में अंग्रेजों ने लंका

पर अधिकार किया। 1935 ई. में अंग्रेजों ने लंका को भारत से अलग कर दिया।

म्यांमार (बर्मा) – अराकान की अनुश्रुतियों के अनुसार यहां का प्रथम राजा वाराणसी का एक राजकुमार था। 1852 में अंग्रेजों का बर्मा पर अधिकार हो गया। 1937 में भारत से इसे अलग कर दिया गया।

पाकिस्तान – 15 अगस्त, 1947 के पहले पाकिस्तान भारत का एक अंग था।

बांग्लादेश – बांग्लादेश भी 15 अगस्त 1947 के पहले भारत का अंग था। देश विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान के रूप में यह भारत से अलग हो गया। 1971 में यह पाकिस्तान से भी अलग हो गया ।






साभार-  ओमन सौभरि भुरर्क, भरनाकलां, मथुरा

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