Sunday, 30 July 2023

भारतीय षडदर्शनों को जानिए

विज्ञान और जन सामान्य के जीवन को बेहतर बनाने के लिए शास्त्र लिखे गए तो विज्ञान और गणित के गूढ़तम रहस्यों के जवाब देने के लिए भी शास्त्र लिखे गए। वैदिक ज्ञान की अद्वितीय पुस्तक भगवद्गीता के ज्ञान का आधार वेद, उपनिषद और दर्शन शास्त्र ही है। भगवद्गीता गीता २-३९ और १३-४ मेंश्री कृष्ण कहा है कि :

एषा तेSभिहिता सांख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां श्रुणु।

बुद्धया युक्तो यथा पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि।।

अर्थ- हे अर्जुन! यह बुध्दि(ज्ञान) जो सांख्य के अनुसार मैंने तुझे कही है, अब यही बुध्दि मैं तुझे योग के अनुसार कहू¡गा, जिसके ज्ञान से तू कर्म-बन्धन को नष्ट कर सकेगा।

स्पष्टतः यदि हिंदू दर्शन शास्त्रों, खास तौर पर इन षड्दर्शनों का अध्ययन कर लिया जाए तो समस्त ज्ञान विज्ञान का सार हमें इसमें मिल जाएगा। वेद ज्ञान को समझने व समझाने के लिए दो प्रयास हुए:

1. ब्राह्यण और उपनिषदादि ग्रन्थ।

2. दर्शनशास्त्र

ब्राह्यण और उपनिषदादि ग्रन्थों में अपने-अपने विषय के आप्त ज्ञाताओं द्वारा अपने शिष्यों, श्रद्धावान व जिज्ञासु लोगों को मूल वैदिक ज्ञान सरल भाषा में विस्तार से समझाया है। 

▪️इसी तरह वेद ज्ञान को तर्क से समझाने के लिए छइ दर्शन शास्त्र लिखे गये। सभी दर्शन मूल वेद ज्ञान को तर्क से सिद्ध करते है। प्रत्येक दर्शन शास्त्र का अपना-अपना विषय है। प्रत्येक दर्शन अपने लिखने का उद्देश्य अपने प्रथम सूत्र में ही लिख तथा अन्त में अपने उद्देश्य की पूर्ति का सूत्र देता है।

सृष्टि की रचना क्यों और किसलिए हुई? भारतीय दर्शन इस प्रश्न का जवाब बहुत पहले दे चुका है । इसके अलावा चार्वाक दर्शन, बौद्ध दर्शन, जैन दर्शन जैसे अनेक दर्शन कालांतर में लोकप्रिय हुए, लेकिन ये सभी इन छः दर्शनों के इर्द-गिर्द ही घूमते हैं। यही वजह है कि आज भी दर्शन शास्त्र का मूल स्त्रोत यही छः दर्शन माने जाते हैं। 

दरअसल, ये सभी आस्तिक दर्शन कहे जाते हैं यानी ईश्वरवादी दर्शन। हिंदू परंपरा का मूल ही ईश्वर विश्वास है। इसके बावजूद अनीश्वरवादी और भौतिकवादी दर्शनों को भी भारतीय परंपरा में स्थान मिला। यहीं सनातन परंपरा सबसे वैज्ञानक परंपरा सिध्द होती है। यहां किसी का निषेध नहीं है, लेकिन तर्क-वितर्क और उच्चतम सत्य की ही स्वीकार्यता अवश्य है। 


भारत में प्रचलित ये छः दर्शन इस प्रकार हैं- 

सांख्य दर्शन 

योग दर्शन 

न्याय दर्शन 

वैशेषिक दर्शन 

मीमांसा दर्शन 

वेदान्त दर्शन


१ सांख्य दर्शन:- इस दर्शन को सबसे अधिक सम्मान प्राप्त रहा क्योंकि ये सबसे गूढ़ प्रश्न का उत्तर देने में सक्षम रहा। प्रकृति-पुरुष का संबंध, कार्य-कारण का सिद्धांत, मनुष्य को मिलने वाले त्रितापों आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक के कारण और निवारण। ये बहुत ही वैज्ञानिक दर्शन है। महर्षि कपिल ने इसकी रचना की थी। बौध्द धर्म का मूल भी यही दर्शन है। 

सांख्य दर्शन प्रकृति से सृष्टि रचना और संहार के क्रम को विशेष रूप से मानता है। साथ ही इसमें प्रकृति के परम सूक्ष्म कारण तथा उसके सहित 24 कार्य पदाथों का स्पष्ट वर्णन किया गया है। पुरुष 25वां तत्व माना गया है, जो प्रकृति का विकार नहीं है। इस प्रकार प्रकृति समस्त कार्य पदार्थों का कारण तो है, परंतु प्रकृति का कारण कोई नहीं है, क्योंकि उसकी शाश्वत सत्ता है। पुरुष चेतन तत्व है, तो प्रकृति अचेतन। पुरुष प्रकृति का भोक्ता है, जबकि प्रकृति स्वयं नहीं है।

२ योग दर्शन - योग दर्शन व्यवहारिक पहलू है और सांख्य दर्शन थ्योरेटिकल पहलू। 

इसमें ईश्वर, जीवात्मा और प्रकृति का स्पष्ट रूप से वर्णन किया गया है। इसके अलावा योग क्या है, जीव के बंधन का कारण क्या है? चित्त की वृत्तियां कौन सी हैं? इसके नियंत्रण के क्या उपाय हैं इत्यादि यौगिक क्रियाओं का विस्तृत वर्णन किया गया है। यह दर्शन चार पदों में विभक्त है जिनके सम्पूर्ण सूत्र संख्या १९४ है। ये चार पद है: समाधिपाद, साधनपाद, विभूतिपाद और कैवल्यपाद।

योग दर्शन के प्रथम दो सूत्र है।

अथ योगानुशासनम् ।। १ ।।

अर्थात योग की शिक्षा देना इस समस्त शास्त्र का प्रतिपाद्य विषय समझना चाहिए।

योगश्चित्तवृत्ति निरोध: ।। २ ।।

अर्थात् चित्त या मन की स्मरणात्मक शक्ति की वृत्तियों को सब बुराई से दूर कर, शुभ गुणो में स्थिर करके, पश्रमेश्वर के समीप अनुभव करते हुए मोक्ष प्राप्त करने के प्रयास को योग कहा जाता है।

अष्टांग योग: क्लेशों से मुक्ति पाने व चित्त को समहित करने के लिए योग के ८ अंगों का अभ्यास आवश्यक है। इस अभ्यास की अवधि ८ भागों में विभक्त है- १. यम, २. नियम, ३. शासन, ४. प्राणायाम, ५. प्रत्याहार, ६. धारणा, ७. ध्यान और ८. समाधि

३ न्याय दर्शन - इस दर्शन में पदार्थों के तत्वज्ञान से मोक्ष प्राप्ति का वर्णन है। पदार्थों के तत्वज्ञान से मिथ्या ज्ञान की निवृत्ति होती है। फिर अशुभ कर्मो में प्रवृत्त न होना, मोह से मुक्ति एवं दुखों से निवृत्ति होती है। इसमें परमात्मा को सृष्टिकर्ता, निराकार, सर्वव्यापक और जीवात्मा को शरीर से अलग एवं प्रकृति को अचेतन तथा सृष्टि का उपादान कारण माना गया है और स्पष्ट रूप से त्रैतवाद का प्रतिपादन किया गया है। न्याय वह साधन है जिसकी सहायता से किसी प्रतिपाद्य विषय की सिद्ध या किसी सिद्धान्त का निराकरण होता है-

नीयते प्राप्यते विविक्षितार्थ सिद्धिरनेन इति न्याय:।।

अत: न्यायदर्शन में अन्वेषण अर्थात् जाँच-पड़ताल के उपायों का वर्णन किया गया है।

इस ग्रन्थ में पांच अध्याय है तथा प्रत्येक अध्याय में दो दो आह्रिक हैं। कुल सूत्रों की संख्या ५३९ हैं। सत्य की खोज के लिए सोलह तत्व है। उन तत्वों के द्वारा किसी भी पदार्थ की सत्यता (वास्तविकता) का पता किया जा सकता है। 

ये सोलह तत्व है-

(१) प्रमाण, (२) प्रमेय, (३)संशय, (४) प्रयोजन, (५) दृष्टान्त, (६) सिद्धान्त, (७)अवयव, (८) तर्क (९) निर्णय, (१०) वाद, (११) जल्प, (१२) वितण्डा, (१३) हेत्वाभास, (१४) छल, (१५) जाति और (१६) निग्रहस्थान

इन सबका वर्णन न्याय दर्शन में है और इस प्रकार इस दर्शन शास्त्रको तर्क करने का व्याकरण कह सकते हैं। वेदार्थ जानने में तर्क का विशेष महत्व है। अत: यहदर्शन शास्त्र वेदार्थ करने में सहायक है।

दर्शनशास्त्र में कहा है-

तत्त्वज्ञानान्नि: श्रेयसाधिगम:।।

अर्थात्- इन सोलह तत्वों के ज्ञान से निश्रेयस् की प्राप्ति होती है।(सत्य की खोज में सफलता प्राप्ति होती है)।

न्याय दर्शन के चार विभाग-

१. सामान्य ज्ञान की समस्या का निराकरण

२. जगत की समस्या का निराकरण

३. जीवात्मा की मुक्ति

४. परमात्मा का ज्ञान

४ वैशेषिक दर्शन - इसमें धर्म के अनुष्ठान पर जोर दिया गया है और ये धर्म छः प्रमुख पदार्थों से मिलकर बना है। द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय। यह दर्शन भी परमात्मा को सर्वोच्च सत्ता मानता है और मनुष्य और परमात्मा दोनों के चैतन्य होने के बावजूद परमात्मा के श्रेष्ठ होने के प्रश्न पर भी महत्वपूर्ण जानकारी देता है। इसमें प्रकृति व पुरुष के हमारे जीवन में उपस्थिति का उल्लेख किया गया है। जिसमें व्यक्ति का तीनों गुणों का समावेश है (सत्व, रजस, तमस) सांख्य दर्शन के अनुसार सृष्टि का निर्माण प्रकृति व पुरुष से हुआ है।


५- मीमांसा दर्शन (पूर्व) :- परिवार की व्यवस्था क्या होनी चाहिए और राष्ट्र के प्रति हमारे क्या कर्तव्य हैं जैसे महत्वपूर्ण सिध्दांतों का प्रतिपादन ये महान दर्शन करता है। 

इस दर्शन में वैदिक यज्ञों में मंत्रों का विनियोग तथा यज्ञों की प्रक्रियाओं का वर्णन किया गया है। ये दर्शन समझना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि राष्ट्र की उन्नति के लिए पुरातन ज्ञान कितना महत्वपूर्ण है इस बात के प्रमाण इससे हमें मिलते हैं। वैदिक अनुष्ठान और मंत्रों की परंपरा को आगे बढ़ाने पर इसीलिए जोर दिया गया है। राष्ट्र की उन्नति के परम ध्येय के लिए ये दर्शन वैदिक परंपरा को आगे बढ़ाए जाने का प्रतिपादन करता है। जिस प्रकार संपूर्ण कर्मकांड मंत्रों के विनियोग पर आधारित हैं, उसी प्रकार मीमांसा दर्शन भी मंत्रो के विनियोग और उसके विधान का समर्थन करता है। धर्म के लिए महर्षि जैमिनि ने वेद को भी परम प्रमाण माना है। उनके अनुसार यज्ञों में मंत्रों के विनियोग, श्रुति, वाक्य, प्रकरण, स्थान एवं समाख्या को मौलिक आधार माना जाता है। ये दर्शन ब्रह्म और जीव के भेद को स्पष्ट करता है। 

 ६ वेदांत (उत्तर मीमांसा):- पहली जिज्ञासा कर्म धर्म की जिज्ञासा थी और दूसरी जिज्ञासा जगत् का मूल कारण जानने ज्ञान की थी। इस दूसरी जिज्ञासा का उत्तर ही ब्रह्यसूत्र अर्थात् उत्तर मीमांसा है। चूँकि यह दर्शन वेद के परम ओर अन्तिम तात्पर्य का दिग्दर्शन कराता है, इसलिए इसे वेदान्त दर्शन के नाम से ही जाना जाता हैं । व्यास रचित ब्रह्मसूत्र को वेदान्त दर्शन का मूल ग्रंथ माना जाता है। उत्तर मीमांसा के नाम से भी इसी दर्शन को जाना जाता है। इस दर्शन में ब्रह्म को जगत का कर्ता-धर्ता व संहारकर्ता माना जाता है। ब्रह्म ही जगत के निमित्त का कारण है। ब्रह्म सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, आनंदमय, नित्य, अनादि, अनंतादि गुण विशिष्ट शाश्वत सत्ता है। साथ ही जन्म मरण आदि क्लेशों से रहित और निराकार भी है।

वेदस्य अन्त: अन्तिमो भाग ति वेदान्त:।

यह वेद के अन्तिम ध्येय ओर कार्य क्षेत्र की शिक्षा देता है। इस दर्शन में चार अध्याय, प्रत्येक अध्याय में चार-चार पाद (कुल १६ पाद) और सूत्रों की संख्या ५५५ है।


साभार-  ओमन सौभरि भुरर्क, भरनाकलां, मथुरा

संबंधित लिंक...

ब्रजभाषा सीखिए

ब्रज के भोजन और मिठाइयां

ब्रजभूमि का सबसे बड़ा वन महर्षि 'सौभरि वन'

ब्रज मेट्रो रूट व घोषणा

ब्रजभाषा कोट्स 1

ब्रजभाषा कोट्स 2

ब्रजभाषा कोट्स 3

ब्रजभाषा ग्रीटिंग्स

ब्रजभाषा शब्दकोश

आऔ ब्रज, ब्रजभाषा, ब्रज की संस्कृति कू बचामें

ब्रजभाषा लोकगीत व चुटकुले, ठट्ठे - हांसी

-----------------------------------------------------------------


No comments:

Post a Comment