निगम कर्म, ज्ञान तथा उपासना का स्वरूप बतलाता है तथा आगम इनके उपायभूत साधनों का वर्णन करता है। जन कल्याणार्थ महादेव ने आगमों का उपदेश पार्वती को स्वयं दिया।
वैदिक धर्म में उपास्य देवता की भिन्नता के कारण इसके तीन प्रकार है: वैष्णव आगम (पाँचरात्र तथा वैखानस आगम), शैव आगम (पाशुपत, शैवसिद्धांत, त्रिक आदि) तथा शाक्त आगम। द्वैत, द्वैताद्वैत तथा अद्वैत की दृष्टि से भी इनमें तीन भेद माने जाते हैं। अनेक आगम वेदमूलक हैं, परन्तु कतिपय तंत्रों के ऊपर बाहरी प्रभाव भी लक्षित होता है।
शैवागम २८ हैं-
(क) शिवागम
१ कामिक, २ योगज, ३ चिन्त्य, ४ कारण, ५ अजित, ६ दीप्त, ७ सूक्ष्म, ८ सहस्र, ९ अंशुमान, १० सुप्रभेद,
(ख) रुद्रागम
११ विजय, १२ निश्वास, १३ स्वायंभूव, १४ अनल , १५ वीर ,१६ रौरव, १७ मकुट, १८ विमल, १९ चंद्रज्ञान, २० बिंब,२१ प्रोद्गीत्, २२ ललित, २३ सिद्ध, २४ संतान, २५ शर्वोक्त, २६ पारमेश्वर, २७ किरण , २८ वातुल
इन २८ आगमों के २०४ उपागम है।
साभार- ओमन सौभरि भुरर्क, भरनाकलां, मथुरा
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