स्वसमाज के "Super 50 गाँव" जिनसे सभी उपगोत्रों का प्रादुर्भाव हुआ है उन सभी गाँवों के नाम उपगोत्र सहित यहाँ पर दिए जा रहे हैं । ये सभी गाँव देश के अलग-अलग क्षेत्रों में स्थित है । वैसे सभी 'सौभरी वंशजों' का निकास (उत्तपत्ति) गाँव सुनरख, वृन्दावन से हुई है ।
स्वसमाज के उपगोत्रों के "निकास गांव" उन गाँवों को मान लिया गया जब स्वसमाज के लोग गांव सुनरख वृंदावन को छोड़, मुगल बादशाह के अत्याचार की वजह से अलग-अलग गाँवों में विस्थापित हुए । उनका यह विस्थापन उपगोत्रों को ध्यान में रखकर किया गया यानी कि सगोत्र वाले लोगों के परिवारों को एक स्थान पर बसने दिया गया जिससे विवाह संबंध आदि में कोई समस्या ना आये । बाद इन सगोत्र वाले गाँवों में अन्य उपगोत्र वाले लोगों की बसावट जरूरत की हिसाब से हुई जैसे किसी की कोई संतान न होने की वजह से उसके रिश्तेदार जो कि अन्य उपगोत्र थे, या जो अन्य गांवों से अपनी बेचकर इस गांव नें रहने लगे गए हों, उसे आम बोलचाल की भाषा में नाठ पे आना बोलते हैं। इस प्रकार से एक ही गांव में अलग-अलग उपगोत्रों के स्वजन आपस में रहने लग गए। कुछ गॉंव जिनमें एक उपगोत्र बहुलता से रहता है ।
स्वसमाज के उपगोत्रों के "निकास गांव" उन गाँवों को मान लिया गया जब स्वसमाज के लोग गांव सुनरख वृंदावन को छोड़, मुगल बादशाह के अत्याचार की वजह से अलग-अलग गाँवों में विस्थापित हुए । उनका यह विस्थापन उपगोत्रों को ध्यान में रखकर किया गया यानी कि सगोत्र वाले लोगों के परिवारों को एक स्थान पर बसने दिया गया जिससे विवाह संबंध आदि में कोई समस्या ना आये । बाद इन सगोत्र वाले गाँवों में अन्य उपगोत्र वाले लोगों की बसावट जरूरत की हिसाब से हुई जैसे किसी की कोई संतान न होने की वजह से उसके रिश्तेदार जो कि अन्य उपगोत्र थे, या जो अन्य गांवों से अपनी बेचकर इस गांव नें रहने लगे गए हों, उसे आम बोलचाल की भाषा में नाठ पे आना बोलते हैं। इस प्रकार से एक ही गांव में अलग-अलग उपगोत्रों के स्वजन आपस में रहने लग गए। कुछ गॉंव जिनमें एक उपगोत्र बहुलता से रहता है ।
जैसे-
गॉंव सीह- सीहइयाँ
गाँव पलसों- परसईयां
भरनाकलां- बरगला
भरनाखुर्द- तगारे इत्यादि...
ओमन सौभरि भुर्रक, भरनाकलां, मथुरा
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