स्वसमाज के बन्धुजनों का गुण, स्वभाव, खान-पान, रहन-सहन, रंग-रूप, बोली-भाषा आदि के आधार पर एक विश्लेषण-
स्वसमाज के बहुत से ऐसे पहलू हैं जिन्हें आप नकारात्मक व सकरात्मक दृष्टि से देखते हैं । स्वजनों का सबसे अच्छा गुण ये है कि अगर उनको पता चले कि ये फला आदमी अपनी समाज (बिरादरी) का है तो निश्चय ही वह आपकी सारी जानकारी जुटाने की पूरी कोशिश करेगा । ऐसा हमें अन्य समाज (जातियो) में देखने को नहीं मिलता । यहाँ कुछ ऐसे बिंदु दिये जा रहे हैं जिन्हें पढ़कर आप भी अपनी क्रिया-प्रतिक्रिया दीजियेगा...
1- पारंपरिक पहनावे में धोती, कुर्ता, स्वापी और थोड़ा साफ रंग वाले ज्यादा होते हैं ।
2- स्वजनों की मातृभाषा ब्रजभाषा है । ब्रजभाषा-हिंदी- संस्कृत - इंग्लिश सभी भाषाएँ समाज के लोग द्वारा जानी जाती हैं ।
3- स्वसमाज के लोग खाने-पीने के मामले में दूध, दही, घी, चूरमा इत्यादि बेहद पसंद करते हैं । आज भी स्वजन शुध्द शाकाहारी मिलेंगे ।
4- रिश्तेदारी में जब स्वजन जाते हैं एक बार खाने के लिए मना निकल गयी तो मना है । इस पर स्वसमाज का एक मत है और स्वलोक पखाना भी है ( "अहिवासी वाली ना)
5- यमुना आर- यमुना पार को लेकर मनोरंजन करते हैं कौन ज्यादा होशियार है ये बहस चलती रहती है ।
6- छोटी और कम चीज पर संतोष नहीं करते । तुरंत परिणाम की आशा करते हैं ।
7- चार उपगोत्र के लोग इकट्ठे हो जाते हैं रोमांटिक बातें (आपसी रिश्तों की बात जैसे तू मेरा साला, मामा इत्यादि) लग जाते हैं ।
8- अपना स्वजन कितना भी बड़ा क्यों न हो उससे लोग बिल्कुल नहीं घबराते और न ही उसके सामने गिल्टी महसूस करते हैं बाहर वाले से भले कुछ न कहें लेकिन अपने स्वजन द्वारा की गई एक ही गलती पर तुरंत ही हावी रहने की पुरजोर कोशिश करने से नहीं कतराते ।
9- बंजर भूमि में पैदावारी करने वाला हमारा समाज ही है । किसान गिरी में स्वसमाज बेहद मेहनती है ।
10- स्वजन आपस की बातचीत में पुरोहिताई करने वाले लोगों की जयजयकार भी करेंगे परंतु सब जातियों में खाने के लिये उनका तिरस्कार या चिढ़ाने से नहीं हिचकिचाते । बिल्कुल कमतर जाति में कर्मकांड व कार्यक्रम करने से कतराते हैं ।
11- किसी समस्या के समाधान में हम किसी अन्य जाति के व्यक्ति को बीच में लेकर नहीं आते । समाधान आपसी सहयोग के मध्येनजर करते हैं ।
12- इनकी चेहरे की बनावट, शारीरिक बनावट और क्षमता, भाषा, त्वचा के रंग, रीति-रिवाज और शारीरिक हाव-भाव ही इनका इतिहास और इनके मूल स्थान का ब्यौरा देने के लिए काफी हैं।
13- विवाह सम्बंध अपनी ही स्वजाति में ही करते हैं । दूसरे ब्राह्मणों से लडकी या लड़के का सम्बंध करने में बिल्कुल दिलचस्पी नहीं दिखाते ।
सर्वविदित है कि हमने अपने प्रतिद्वंद्वी लोगों से अपनी जमीन के मेढ़ों को लेकर काफी कोर्ट-कचहरी की है। पर इस पीढ़ी के युवा बच्चे इन सब बातों को छोड़कर पढ़ाई और नौकरी के लिए शहरों की ओर आ रहे हैं । पहले स्वसमाज बालविवाह का प्रचलन चरम पर था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिला है ।
स्वसमाज के डीएनए में किसी भी क्षेत्र काम करने की क्षमता है आज स्वजन हर क्षेत्र में रहकर 'चहुमुखी प्रतिभा' का परिचय दे रहे हैं ।
ओमन सौभरी भुर्रक, गांव- भरनाकलाँ, तह- गोवर्धन (मथुरा)
सौभरि जी बारे में और जानने के लिए क्लिक करें
श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जी
ब्रजराज बलदाऊ मन्दिर के संस्थापक श्री कल्याणदेवचार्य
माँ सती हरदेवी पलसों
श्री बलदाऊ जी मन्दिर, बल्देव, मथुरा
सौभरि ब्राह्मण समाज के गोत्र, उपगोत्र व गांवों के नाम के बारे में जानिए ।
स्वसमाज के बहुत से ऐसे पहलू हैं जिन्हें आप नकारात्मक व सकरात्मक दृष्टि से देखते हैं । स्वजनों का सबसे अच्छा गुण ये है कि अगर उनको पता चले कि ये फला आदमी अपनी समाज (बिरादरी) का है तो निश्चय ही वह आपकी सारी जानकारी जुटाने की पूरी कोशिश करेगा । ऐसा हमें अन्य समाज (जातियो) में देखने को नहीं मिलता । यहाँ कुछ ऐसे बिंदु दिये जा रहे हैं जिन्हें पढ़कर आप भी अपनी क्रिया-प्रतिक्रिया दीजियेगा...
1- पारंपरिक पहनावे में धोती, कुर्ता, स्वापी और थोड़ा साफ रंग वाले ज्यादा होते हैं ।
2- स्वजनों की मातृभाषा ब्रजभाषा है । ब्रजभाषा-हिंदी- संस्कृत - इंग्लिश सभी भाषाएँ समाज के लोग द्वारा जानी जाती हैं ।
3- स्वसमाज के लोग खाने-पीने के मामले में दूध, दही, घी, चूरमा इत्यादि बेहद पसंद करते हैं । आज भी स्वजन शुध्द शाकाहारी मिलेंगे ।
4- रिश्तेदारी में जब स्वजन जाते हैं एक बार खाने के लिए मना निकल गयी तो मना है । इस पर स्वसमाज का एक मत है और स्वलोक पखाना भी है ( "अहिवासी वाली ना)
5- यमुना आर- यमुना पार को लेकर मनोरंजन करते हैं कौन ज्यादा होशियार है ये बहस चलती रहती है ।
6- छोटी और कम चीज पर संतोष नहीं करते । तुरंत परिणाम की आशा करते हैं ।
7- चार उपगोत्र के लोग इकट्ठे हो जाते हैं रोमांटिक बातें (आपसी रिश्तों की बात जैसे तू मेरा साला, मामा इत्यादि) लग जाते हैं ।
8- अपना स्वजन कितना भी बड़ा क्यों न हो उससे लोग बिल्कुल नहीं घबराते और न ही उसके सामने गिल्टी महसूस करते हैं बाहर वाले से भले कुछ न कहें लेकिन अपने स्वजन द्वारा की गई एक ही गलती पर तुरंत ही हावी रहने की पुरजोर कोशिश करने से नहीं कतराते ।
9- बंजर भूमि में पैदावारी करने वाला हमारा समाज ही है । किसान गिरी में स्वसमाज बेहद मेहनती है ।
10- स्वजन आपस की बातचीत में पुरोहिताई करने वाले लोगों की जयजयकार भी करेंगे परंतु सब जातियों में खाने के लिये उनका तिरस्कार या चिढ़ाने से नहीं हिचकिचाते । बिल्कुल कमतर जाति में कर्मकांड व कार्यक्रम करने से कतराते हैं ।
11- किसी समस्या के समाधान में हम किसी अन्य जाति के व्यक्ति को बीच में लेकर नहीं आते । समाधान आपसी सहयोग के मध्येनजर करते हैं ।
12- इनकी चेहरे की बनावट, शारीरिक बनावट और क्षमता, भाषा, त्वचा के रंग, रीति-रिवाज और शारीरिक हाव-भाव ही इनका इतिहास और इनके मूल स्थान का ब्यौरा देने के लिए काफी हैं।
13- विवाह सम्बंध अपनी ही स्वजाति में ही करते हैं । दूसरे ब्राह्मणों से लडकी या लड़के का सम्बंध करने में बिल्कुल दिलचस्पी नहीं दिखाते ।
सर्वविदित है कि हमने अपने प्रतिद्वंद्वी लोगों से अपनी जमीन के मेढ़ों को लेकर काफी कोर्ट-कचहरी की है। पर इस पीढ़ी के युवा बच्चे इन सब बातों को छोड़कर पढ़ाई और नौकरी के लिए शहरों की ओर आ रहे हैं । पहले स्वसमाज बालविवाह का प्रचलन चरम पर था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिला है ।
स्वसमाज के डीएनए में किसी भी क्षेत्र काम करने की क्षमता है आज स्वजन हर क्षेत्र में रहकर 'चहुमुखी प्रतिभा' का परिचय दे रहे हैं ।
ओमन सौभरी भुर्रक, गांव- भरनाकलाँ, तह- गोवर्धन (मथुरा)
सौभरि जी बारे में और जानने के लिए क्लिक करें
श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जी
ब्रजराज बलदाऊ मन्दिर के संस्थापक श्री कल्याणदेवचार्य
माँ सती हरदेवी पलसों
श्री बलदाऊ जी मन्दिर, बल्देव, मथुरा
सौभरि ब्राह्मण समाज के गोत्र, उपगोत्र व गांवों के नाम के बारे में जानिए ।