Showing posts with label गरुड़. Show all posts
Showing posts with label गरुड़. Show all posts

Sunday, 8 August 2021

महर्षि सौभरि, कालिया नाग व गरुड़ की कथा


कालिया नाग पन्नग जाति का नाग था । नागों की माता कद्रू और कश्यप का पुत्र था । कालिया पहले रमण द्वीप में निवास करता था । किंतु पक्षीराज गरुड़ से उसकी शत्रुता हो गई तो जान बचाने के लिए वह यमुना नदी में कुण्ड में आकर रहने लगा था । यद्यपि जब गरूड़ नागों का संहार करने लगे तो गरूड और नागों के बीच एक समझौता हुआ कि गरूड़ को प्रत्येक माह में अमावस्या के दिन एक नियत वृक्ष के नीचे एक सर्प गरूड के आहार के लिए दिया जाएगा ।

सभी सर्प जाति इस नियम का पालन कर रही थी । कालिय नाग को अपने विष और बल का बड़ा घमंड था । उसने नागों की स्थापित परंपरा को ठुकरा दिया । उसने गरूड के लिए बलि देना तो दूर गरूड की बलि को स्वयं ही खा लिया. सर्प और नाग जाति इससे बड़ी क्रुद्ध हुई कि अपने वंश का होकर भी वह ऐसे कार्य कर रहा है. उन्हें गरूड़ के क्रोध का भय भी था । नागों ने गरूड़ को सारी बात बता दी ।

गरूड ने कालिया पर आक्रमण किया । कालिया ने अपने सौ फल फैलाए और गरूड पर विषप्रहार किया । गरूड तो अमृत कलश के वाहक रहे थे । उन पर विष का प्रभाव नहीं हुआ. कालिया ने अपने दांतों से गरूड़ पर प्रहार किया और पकड़ लिया । पीडा से गरूड़ ने अपने शरीर को जोर से झटका । उसका प्रभाव इतना अधिक था कि कालिया जाकर यमुना में गिरा । वह भागकर कालियदह कुंड तक चला आया क्योंकि गरूड़ यहां आ नहीं सकते थे ।

यमुना जी का यह कुण्ड गरुड़ के लिए सौभरि ऋषि के शाप के कारण प्रवेश से वर्जित था । एक बार गरूड़ को बहुत भूख लगी । वह इसे बर्दाश्त नही कर पा रहे थे । गरुड़ की नजर एक मछली पर पड़ी । सौभरी मुनि वहीं स्नान कर हे थे । मछली ने सौभरि से सहायता मांगी । सौभरि ने गरूड से कहा कि हो सके तो इस शरणागत मत्स्य को मत खाओ लेकिन गरूड से भूख सहन नहीं हुई । उन्होंने मना करने पर भी उस मछली को खा लिया । महर्षि सौभरि क्रोधित हो गए । उन्होंने गरुड़ को शाप दिया- यदि गरुड़ आप फिर कभी इस कुण्ड में घुसकर मछलियों को खाएंगे तो उसी क्षण मृत्यु हो जाएगी । तब से गरूड़ उधर नहीं जाते थे । कालिय नाग यह बात जानता था । इसीलिए वह यमुना के उसी कुण्ड में रहने आ गया था. उसके विष के प्रकोप के कारण वह कुंड कालियदह कहा जाने लगा । कालिया उसमें निर्भीक होकर अपनी असंख्य पत्नियों के साथ रहता था ।

मुनिवर ने सभी को आश्वस्त किया तथा मछली एवं अहिभक्षी गरुड को शाप दिया कि यदि उनके सुनरखस्थित क्षेत्र में पद रखा तो भस्म हो जाएगा। इस क्षेत्र को महर्षि ने अहिवास क्षेत्र घोषित कर दिया। तभी से महर्षि सौभरि “अहि“ को 'वास' देने के कारण अहिवासी कहलाये। इस प्रकार उस स्थल में अहि,मछली तथा सभी जीव जन्तु, शान्ति पूर्वक निवास करते रहे।

साभार: पंडित ओमन सौभरि भुर्रक, गाँव-भरनाकलां, गोवर्धन, मथुरा(उत्तर प्रदेश) ।

संबंधित लिंक...