प्रसिद्ध चित्रकार व शिक्षक पं.जगन्नाथ मुरलीधर अहिवासी जी का परिचय -
प्रसिद्ध चित्रकार पं. जगन्नाथ मुरलीधर अहिवासी का जन्म 1901 में ब्रज मंडल के पवित्र स्थल गोकुल में प्रतिष्ठित आदिगौड़ अहिवासी ब्राह्मण परिवार में हुआ था । इनके पिता पं. मुरलीधर अहिवासी अपने समय के प्रसिद्ध कथावाचक एवं भजनगायक थे ।
1926 में आपने जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स, मुंबई से चित्रकला मे शिक्षा प्राप्त की । इसके बाद इसी संस्था में आपको शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया। 1956 में सेवानिवृत्त होने तक आप इस संस्था में चित्रकारी विभाग के प्रमुख रहे । 1935 में आपको 'जी. सुलोमोन पदक' से सम्मानित किया गया था । भारतीय चित्रकला में आपके उल्लेखनीय कार्य के लिए "ललित कला अकादमी नई दिल्ली" ने आपको स्वर्ण पदक देकर सम्मानित किया था।
चित्रकला पर आपने पुस्तक भी लिखी जिनमें "रेखांजली" प्रमुख है, इस पुस्तक को बी.जी. नवलखी द्वारा 1961 में प्रकाशित किया गया। आपने नई दिल्ली, सचिवालय में भी भित्तिचित्र निष्पादित किये तथा आधुनिक भारतीय कला में आपके योगदान के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने आपकी बहुत प्रशंसा की थी ।
आपके द्वारा बनाए गए चित्र विभिन्न संग्रहालयों में प्रदर्शित है, जिनमे जहाँगीर आर्ट गैलेरी, बॉम्बे और लन्दन, अमेरिका की आर्ट गैलेरी प्रमुख हैं । 1941 में बच्चों के खेल विषय पर भारतीय समकालीन शैली में आपने केवल स्याही का प्रयोग कर कलाकृति बनाई थी जिसका शीर्षक था "चूहा और बिल्ली" जो कि बॉम्बे स्कूल ऑफ़ आर्ट्स के संग्रह में उपलब्ध है ।
आपकी कुछ प्रसिद्ध कृतियों में " संदेश ", "सुभद्रा और अर्जुन ", "मीरा का प्रस्थान " आदि प्रमुख है जो भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने चीन के प्रधानमंत्री चाउ. एन. लाइ को उनकी भारत यात्रा के अवसर पर भेंट की थी । 1956 से 1970 तक आप बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में "ललित कला विभाग" में प्रशिक्षक तथा भारत कला भवन के प्रबंधक रहे ।
आपने 29 दिसम्बर 1973 को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय स्थित अपने ही निवास स्थल पर आपने इस धरती लोक को छोड़ परमधाम को गमन किया। लम्बे कद, गौर वर्ण, सरल स्वभाव, सदा हँसमुख चेहरा, अपने छात्रों के बीच लोकप्रिय और सदा चित्रकारिता में व्यस्त रहना, ये आपकी विशेषता रही ।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित दृश्य कला संकाय में दो नई कला दीर्घाओं दीर्घाएं जिसमें पहली महामना मालवीय व दूसरी संकाय के पहले पं. आचार्य जगन्नाथ मुरलीधर अहिवासी के नाम से खोली गई हैं।
: अंगिरस गोत्री ओमन सौभरि भुर्रक, भरनाकलां
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